करता रहा ,अपने आप से वादा, जिंदगी में सफल बनने का, ना सोचा था -यह वादा आज इस तरह सताएगा।'' जी का जंजाल'' बन जाएगा। वादे की खातिर कोई रिश्ता ना रहा। आज पहुंचा, जिस मक़ाम पर ,कोई अपना ना रहा। वादा बहुत कठिन है निभाना,'' भीष्म पितामह ''का , राजपाट ना रहा , इसलिए वादा भी अंग्रेज बन गया। जो'' वायदे'' से '' प्रॉमिस'' बन गया, न निभाने के लिए....... शब्दों का भी बहुत महत्व है,'' भीष्म पितामह ''प्रतिज्ञा'' करके, ''कुरु वंश'' का सर्वनाश के बैठे।''वायदे '', को जिसने भी निभाया ,दूसरे के अहित के साथ ,स्वयं भी सुख न पाया। ''प्रॉमिस ''में अवश्य ही कुछ न कुछ मिस रहता है ,फिर चाहे प्रेम हो ,साथ हो ,दोस्ती हो।
प्राचीन समय में शब्दों की कीमत थी, मुंह से निकले शब्द ही पत्थर की लकीर हुआ करते थे। आज वायदे तो क्या शब्दों की कीमत भी कुछ नहीं रही ? आज शब्दों की कीमत कौड़ियों के भाव, विचारणीय शब्द, बहुमूल्य शब्द,'' फेसबुक'' पर ''व्हाट्सएप ''और ''प्रतिलिपि'' पर पड़े हैं। क्योंकि अब जुबान की ही कीमत नहीं रही , चमड़े की जबान जो हो गई है, फिसल जाया करती है। शब्दों की कीमत कैसे आकेंंगें ? जब इस बेशकीमती इंसानी जीवन की ही कोई कीमत नहीं रही।
सर उठाकर जीना, अपने आप पर गर्व करना लोग, जैसे भूल ही गए हैं। उस समय पर लोग अपने, धर्म और कुल पर भी गर्व करते थे। शब्दों की खातिर ,पहले सर कट जाया करते थे ,जो मर -मरकर जी रहे हैं , वादा करते हैं , प्रतिदिन अपने आप से ,खुद ब खुद विष पी रहे हैं। फिर कैसे किसी से वादा निभाएंगे, खुद ही अपने जाल में फंस जाएंगे। स्वार्थी रिश्तों की भरमार है, किसके लिए अपनी जान जोखिम में डलवाएंगे ? इसीलिए तो आज, ''प्रॉमिस डे'' बन गया है। कैसे वो वादा निभाएंगे ? एक दिन के लिए ही सही ,उसी दिन वादा करेंगें और खेल समझकर भूल जाएंगे।