एक लड़की ,जब तक अपने घर में है ,तब तक उसका रिश्ता ,बहन ,बेटी ,बुआ के रिश्तों से जुडा होता है। विवाह के पश्चात ,लड़की से औरत के रूप में ,उसकी पद्दोन्नति होती है ,इसके साथ ही ,उससे नए रिश्ते बनते और जुड़ते हैं। जिसमें सबसे नजदीकी रिश्ता , पति-पत्नी का है , सबसे पहले वही रिश्ता बनता है तब वह उस दूसरे घर की बहू ,पत्नी ,चाची ,ताई ,भाभी ,मामी जैसे रिश्तो से जुड़ जाती है। एक यही रिश्ता बनता है ,पति-पत्नी का, उसके पश्चात बाकि के सभी रिश्ते स्वतः ही बन जाते हैं , इन्हें बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इतने रिश्तों के बावजूद भी वह पूर्ण नहीं कहलाती। इन सबमें सर्वोपरि है -''माँ का रिश्ता ''जो उसे पूर्णता की ओर ले जाता है।
''मां ''कितना अद्भुत और महत्वपूर्ण शब्द है ? इस शब्द के साथ बढ़ते हैं ,उत्तरदायित्व, बढ़ती हैं सीमाएं , मन के अंदर जो खालीपन रह जाता है ,उसकी पूर्णता का एहसास होता है , बढ़ती है ,ममता ! वो ''ममत्वभाव ''जो अभी तक न जाने किस कोने में छुपा बैठा था ? अब उभरकर बाहर आने का प्रयास कर रहा है। ये ममता एक औरत में ही नहीं होती वरन हर माँ में होती है , ये ममता जानवरों और पक्षियों में भी दिखती है , जानवर भी अपने बच्चे के लिए ,इंसानो से भी लोहा ले लेते हैं। इसका एक जीता -जगता उदाहरण- एक हिरणी की कहानी है ,जो अपने बच्चे को बचाने के लिये ,उस बहेलिये के पीछे -पीछे, चलती जाती है , बहेलिये ने उसे डांटा और भगा दिया किंतु कुछ देर बाद देखता है ,कि वह फिर से उसके पीछे-पीछे आ रही है। हिरनी उससे कुछ कह नहीं सकती थी किंतु अपनी ममता के कारण ,अपने बच्चे को भी नहीं छोड़ना चाहती थी , उसके लिए फिर चाहे उसकी जान ही, क्यों ना चली जाए ? एक स्थान ऐसा आता है जब वह हिरनी उसकी ,गाड़ी के आगे लेट जाती है , उसका मौन ही सब कुछ कह रहा था , बहेलिया के सामने वह खड़ी थी उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उसकी ममता को देखकर उस बहेलिया का कलेजा भी पसीज़ गया। उसकी ममता के सामने,बहेलिये का हृदय उसे कचोटने लगा और तब उसने उसके बच्चे को छोड़ दिया , अपने बच्चे को लेकर ,वह खुशी-खुशी जंगल में चली जाती है।
इस कहानी को बताने का मेरा उद्देश्य यही था, कि'' ममत्व भाव '', सिर्फ इंसानों में ही नहीं वरन पशु -पक्षियों में भी होता है। मां अपने बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरती ? इसलिए' मां' के रिश्ते को महत्व दिया गया है और मां को पूजनीय माना गया है। उसका बच्चा चाहे जैसा भी हो , उसे सबसे प्यारा लगता है। जिन माँ ओं ने ,यह सम्मान पाया है , वह अपने त्याग, अपनी मेहनत, अपनी ममता के बलबूते पर पाया है। अपनी ममता में कभी-कभी मां इतनी भी अंधी हो जाती है , यहां तक कि वह स्वार्थी भी बन जाती है।
किंतु आज के समय में ,परिवर्तन हुआ है , आज की नारी की सोच बदली है , जिस स्थान को मां ने अपने प्रेम अपनेपन प्यार से, ममता से हासिल किया ,वह स्थान , शायद आने वाली पीढ़ी प्राप्त न कर सके, क्योंकि आज की आधुनिक नारी, पहली बात तो....... ये हैं,उसका विवाह से ही विश्वास उठता जा रहा है विवाह में ही विश्वास नहीं कर रही है , इसी कारण विवाह के लिए भी उम्र बढ़ती जा रही है, और यदि किसी ने विवाह कर भी लिया , तो परिवार को आगे बढ़ाने से पहले,चार बार सोचते हैं , अपने बच्चों को वह सब सुविधाएं देना चाहते हैं जिनसे वह मैहरूम रहे। इस कारण परिस्थितियों के चलते ,वह बच्चों से ही मैहरूम रह जाते हैं। अधिकांश लड़कियां अब 'मां' नहीं बनना चाहती हैं , पहले गरीबी में भी आठ -आठ ,दस -दस बच्चे पल जाते थे किंतु आज के समय में ,बढ़ती महंगाई ,बढ़ते खर्चों को देखते हुए, एक बच्चा पालना भी मुश्किल हो जाता है। यदि किसी के बच्चा हो भी गया तो ,उसे समय नहीं दे पाते हैं ,दोनों पति- पत्नी बाहर कमाने के लिए निकल जाते हैं। अकेला बच्चा आधुनिक और बेजान चीजों के साथ , पलकर बड़ा होता है, कोई उससे उसकी मन की भावनाओं को जानना नहीं चाहता , किसी को समय ही नहीं है ,कि दो घड़ी पास बैठकर बात भी कर सकें। अकेले बच्चे के अंदर क्या चल रहा है? जानने का प्रयत्न ही नहीं करते हैं ?महंगे खिलौने , जरूरत का सभी महंगा सामान उस बच्चे के आसपास होता है , आया भी साथ में होती है , नहीं होता है तो, मां का अपनापन, प्यार उसकी ममता ! आधुनिकता और सुविधाओं की होड़ में ,मां की ममता न जाने कहां लुप्त होती जा रही है ? जो नारी पहले मां बनना अपना सौभाग्य समझती थी आज उसे वह झंझट और परेशानी लगता है।
आज की नारी यह नहीं समझ रही है , यह सौभाग्य भी हर किसी को प्राप्त नहीं होता , कहानी किस्सों में भी सुना होगा ,कि बड़े-बड़े राजा -महाराजा एक संतान के लिए तड़पते रहते थे ,मंदिरों में, दरगाहों में , औलाद के लिए दुआएं और मन्नते मांगते थे। हर नारी को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं होता , उन महिलाओं से पूछिए ! जो मां बनने के लिए तड़पती रहती हैं , डॉक्टरों के अस्पतालों के चक्कर लगाती रहती हैं , यह ''कुदरत की नियामत है ,जो नारी के रूप में तुम्हें संवारा है , तुम प्रकृति हो , नवसृजन के लिए तुम्हें चुना है , इससे मुख ना मोड़िये। आवश्यकताएं तो जीवन भर पूर्ण नहीं होंगी किंतु अपने उत्तरदायित्वों से मुख न मोड़िये। अपनी ममता को सूखने मत दीजिए , खुलकर बरसाइये , अंत में यही कहूंगी -
''नारी तेरे रूप अनेक, सब रूपों में'' मां ''है भारी , माँ की ममता सब रिश्तों से न्यारी।''