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हवेली का रहस्य (भाग १)

15 अक्टूबर 2022

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कामिनी ,हाँ  !ये ही तो नाम है ,अंगूरी देवी की छोटी बहु का। वो एक पढ़ी -लिखी ,समझदार लड़की है ,अंगूरी देवी का बेटा भी पढ़ा -लिखा अफसर है। निहाल सिंह ,किन्तु कामिनी तो उसे निहाल ही कहती है । अंगूरी देवी को इस तरह ,पत्नी अपने पति का नाम पुकारे ,उसे पसंद नहीं। अंगूरी देवी ,गोरी -चिट्टी ,मजबूत कद -काठी की महिला हैं ,उनकी आवाज़ भी बहुत बुलंद है। वैसे तो वो बहुत शांत रहती हैं किन्तु कोई भी कार्य उनके विरुद्ध हो जाये तो किसी की भी ख़ैर नहीं ,शहर में आ जातीं तो हर कोई प्रयास करता कि उन्हें किसी की भी बात पर क्रोध न आ जाये। आ गया तो ,उनकी आवाज़ पूरे मौहल्ले में गूंज उठती। नौकरों की तो बस ख़ैर नहीं  ,एक लाइन में खड़े कर दिए जाते ,जब तक गलती करने वाले का पता न चल जाये। 

उनकी बड़ी बहु वृंदा भी पैसे वाले परिवार से है ,उसके परिवार वाले  जाने -माने चौधरी रहे हैं किन्तु इस परिवार से कम पैसे वाले ।अंगूरी देवी को अपनी सम्पत्ति पर और अपने रुतबे पर घमंड है किन्तु वृंदा भी ,किसी से अपने को कम नहीं आंकती।इसी कारण  किसी की नहीं सुनती , यही वज़ह है , अंगूरी देवी और वृंदा में तना -तनी रहती। कामिनी तो कॉलिज में पढ़ती थी ,जब उसकी मुलाक़ात निहाल सिंह से हुई। निहाल ,कहने को तो चौधरियों के खानदान  से है ,उसके परिवार वाले कई गांव के जमींदार रह चुके हैं ,किन्तु अब इतनी ज़मीने  नहीं रही ,समय के साथ बिक भी गयी और अब संभालने वाले भी तो नहीं रहे। 
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                   निहाल के पिता चौधरी तपन सिंह बड़े ही शांत और सरल स्वभाव के हैं ,जितनी उनकी पत्नी तेज़ तर्रार है उतने ही वे उसके विपरीत हैं। कम शब्दों में ही अपनी बात कह देते हैं ,उन्हें ज्यादा बोलते किसी ने नहीं देखा किन्तु तपन सिंह के पिता किशोरी लाल भी कुछ अंगूरी देवी जैसे ही थे। बुलंद आवाज़ ,बात -बात पर अपनी बंदूक उठा लेते। अपने इलाक़े में उनका काफी दबदबा था। हों भी क्यों न ?तीन गांवों की जमीनें संभाल रहे थे। तपन के विनम्र व्यवहार के कारण परेशान थे ,ये कैसे ,इतनी जमीनें संभाल लेगा ?आजकल तो समय बदल रहा है ,पहले तो लोग डर भी जाते थे किन्तु अब तो ''आँखें दिखाते हैं ''किन्तु जबसे अंगूरी देवी तपन सिंह की  ज़िंदगी में आई ,तो तपन सिंह के पिता किशोरी लाल को  थोड़ी उम्मीद बंध गयी।कहने को तो वो पर्दे में रहती थी किन्तु  अंगूरी देवी की चाल -ढाल ,उसके व्यवहार की तेजी ,उसकी होशियारी उनकी नजरों से छिपी नहीं। सम्पूर्ण  हवेली का कार्यभार अंगूरी देवी ने हाथों हाथ संभाल लिया था। किशोरी लाल जितने अपने बेटे से निराश थे उतने ही बहु की कार्यकुशलता से प्रसन्न थे।बस उन्हें इच्छा थी कि तपन का बेटा आ जाये और मेरी नजरों के सामने ही सब संभालने योग्य हो जाये। किशोरी लाल की इच्छा थी ,बेटा नहीं तो पोता ही उनके जीते जी इस सम्पत्ति को संभालने लायक हो जाये। 
               अंगूरी देवी के एक नहीं दो-दो बेटे हुए किन्तु उनका मुख किशोरी लाल जी नहीं देख सके। उनमें से छोटा निहाल सिंह या यूँ कहें कामिनी का पति है। कामिनी जितनी हँसमुख और मिलनसार है ,उतना ही निहाल सिंह शर्मिला ,झेंपू और चुप रहने वाला है। उसने जब पहली बार कामिनी को देखा तो देखता ही रह गया किन्तु अपने इस  व्यवहार के लिए स्वयं ही झेंप गया। कामिनी ने महसूस किया कि ये लड़का नीचे ही नीचे नज़र किये उसको देखता रहता है।कामिनी अपनी सहेलियों संग दोपहर का खाना खा रही थी ,उसने देखा दूर एक कोने में निहाल बैठा है ,उसने अपनी सहेलियों की तरफ इशारा किया और बोली -देखो झेंपू ,शायद बेचारा खाना नहीं लाया। अकेला बैठा है ,चलो उसे बुला लेते हैं। उसकी बात सुनकर प्रीति बोली -तुझे क्यों दर्द हो रहा है ?बैठा है तो बैठा रहने दे ,अमीर बाप का बेटा है ,भूख लगेगी तो बाहर से लाकर खा लेगा या फिर अपने कॉलिज में 'केंटीन 'तो है ही। प्रीति की बात सुनकर कामिनी खड़ी थी ,बैठ गयी ,बोली -क्या तू इसे जानती है ?प्रीति बोली -ये चौधरियों के ख़ानदान  से है ,इसके दादा और पिता के पास तीन -तीन गाँवों में जमीनें हैं ,और गॉँव में तो बहुत बड़ी हवेली है। अविश्वास से कामिनी बोली -तू इतना सब कैसे जानती है ?प्रीति बोली -ये सब मेरे भइया ने बताया। कामिनी ने पूछा -फिर ये सबसे इतना अलग -थलग क्यों रहता है ?क्या इसे अपने बाप -दादा की ज़ायदाद पर अहंकार है। रूचि बात को बीचमे ही काटते हुए बोली -तू क्यों इसमें रूचि दिखा रही है ?कामिनी हंसकर बोली -रूचि तो तू है ,उसकी बात सुनकर ,सभी बड़े जोरों से हंस पड़ीं। 
                  सारी सहेलियां तो अपनी पढ़ाई में थीं किन्तु कामिनी का मन निहाल के बारे में और ज्यादा जानने का इच्छुक था। किन्तु किसी से भी अपने दिल की बात बताना नहीं चाह रही थी वरना सभी उसकी हँसी उड़ाती। वैसे तो वो भी चौधरियों के परिवार से है किन्तु अब इतने अमीर नहीं हैं जितने प्रीति ने निहाल के विषय में बताया। अपने विचारों को उसने एक झटका दिया और सोचा -''मैं इसके विषय में इतना क्यों सोच रही हूँ ?क्यों उसके विषय में जानना चाहती हूँ ?उसने अपने आपसे ही प्रश्न किया। और अपना ध्यान अपनी पढ़ाई में लगाने का प्रयत्न करने लगी। उसने घर आकर अपने मम्मी -पापा से बताया ,तो पापा को भी आश्चर्य हुआ कि इतना सीधा और साधारण से दिखने वाला लड़का ,चौधरियों के परिवार में कहाँ से आ गया। ज्यादातर तो बिगड़े हुए और बाप -दादा के पैसे की मड़क [घमंड ] में रहते हैं। कामिनी को पता नहीं क्यों ?उससे अपनापन का जुड़ाव सा हो गया ,शायद उसके सीधेपन के कारण या फिर वो भी चौधरी है। इन प्रश्नों के जबाब वह  स्वयं भी अपने -आपको नहीं दे पा  रही थी । 
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             एक दिन निहाल ने कामिनी से किसी विषय से संबंधित कॉपी मांगी। वो उसे कॉपी देना चाहती थी किन्तु उसके मुँह से न निकला। निहाल चुपचाप चला गया। कामिनी अपने आप से ही लड़ने लगी ,मैंने उसे 'नोट्स ' देने से क्यों इंकार किया ?कौन सा मुझसे ,ज़मीन -जायदाद मांग रहा था ?देखने में तो ये कहीं  से भी जमींदार सा नहीं लगता ,रंग -रूप भी साधारण है। व्यवहार में भी झेंपू है। यदि इस तरह देखा जाये तो इसमें कोई योग्यता नहीं ,कोई विशेष व्यक्तित्व भी नहीं ,फिर भी पता नहीं ,क्या चीज मुझे इसकी ओर खींचने पर विवश करती है। घर में भी ,एक -दो बार तो उसका ज़िक्र कर ही देती ,चाहे बुराई ही क्यों न हो ?
                  एक दिन उसकी एक ही दोस्त आई ,उस दिन भी निहाल ऐसे ही अकेला बेंच पर बैठा था। कामिनी अपनी उस दोस्त को लेकर उसी बेंच पर जा बैठी। अपना डिब्बा खोला ,उसके खाने की खुशबू चारों ओर फैल गयी। दोनों खाने लगीं ,तभी निहाल की तरफ देखकर ,कामिनी बोली -लीजिये !निहाल ने न में गर्दन हिलाई किन्तु उस अचार की महक से उसके मुँह में पानी आ गया। कामिनी ने एक बार और कहा -शर्माइये मत ,खा लीजिये ,और उसके जबाब का इंतजार किये बग़ैर एक परांठा और अचार सब्जी ,डिब्बे के ढक्कन पर रखकर उसके आगे रख दी। स्वयं भी खाने लगी ,आज उसे अपने इस व्यवहार से प्रसन्नता मिली किन्तु कीर्ति जो उसकी सहेली  उसके साथ थी ,बोली -तुझे क्या आवश्यकता थी ?उसे इस तरह खाना देने की। आज कामिनी का मन अत्यंत प्रसन्न था ,बोली -ऐसे क्या अच्छा लगता है कि हमारे बराबर में कोई भूखा बैठा रहे और हम खाएं। अच्छा !उस दिन दीपक हमारे साथ ही बैठा था ,तब तो तूने एक बार भी नहीं पूछा ,उसे स्मरण कराते कीर्ति बोली। अरे ,वो तो एक ही दिन तो नहीं लाया ,वैसे तो प्रतिदिन लाता है ,एक दिन नहीं खायेगा तो कमजोर नहीं हो जायेगा कामिनी लापरवाही से बोली। 
            अच्छा, उस निहाल की तुझे बड़ी चिंता है। उसकी बात बीच में ही काटते हुए कामिनी बोली -पता नहीं बेचारा खाकर भी आता है या नहीं ,और लेकर भी कभी नहीं आता। कीर्ति बोली -तुझे कबसे उसकी फ़िक्र होने लगी ?पता नहीं ,कहकर कामिनी अपनी कक्षा में चली गयी। अब तो अक्सर कामिनी अपनी मम्मी से एक -दो परांठा ज्यादा रखवाकर लाती और किसी न किसी बहाने निहाल को खिला ही देती। अब तो निहाल भी उसे नजरें चुराकर नहीं ,नज़र भरकर देख ही लेता। एक दिन बोला -तुम मेरे लिए इतना क्यों सोचती और करती हो ?उसके इस प्रश्न का उत्तर तो स्वयं कामिनी के पास भी नहीं था ,बोली -मैं खाना खाती तो तुम्हें देखती तो अच्छा नहीं लगता ,सोचा साथ ही खा लें। निहाल  मुस्कुरा दिया। 
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          एक बार कॉलिज के कुछ लड़के -लड़की बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं। वे सब चले जाते हैं ,एक जगह पर कुछ लड़के लड़कियों को छेड़ते हैं ,उनके साथ आये लड़के ,उनका विरोध भी करते हैं किन्तु वे ठहरे छटे हुए बदमाश  ,उन्होंने तो चाकू निकाल लिया। सभी सहमकर एक तरफ खड़े हो गए। तभी एक मोटरसाइकिल उधर से निकली। सबने देखा ,वो तो वो ही झेंपू ,शर्मिला निहाल था और वो आगे निकल गया। उसे देख सबकी उम्मीदें उस पर लगी थीं किन्तु वो तो आगे गया। रूचि बोली -व्यर्थ में ही उम्मीद लगाई ,ये क्या हमें बचाएगा ?कुछ देर पश्चात फिर से वही मोटरसाइकिल उनकी तरफ आने लगी। वे लोग अब सतर्क हो गए। निहाल नजदीक आकर फ़ोन पर बातें करता हुआ ,बोल रहा था -हाँ -हाँ ,ठीक है। उसने अपने कॉलिज के दोस्तों को देखकर भी अनदेखा किया। किसी को भी नहीं पता था कि उसके पास मोटरसाइकिल भी है और फ़ोन भी। वो बदमाश असमंजस में थे कि ये कौन है ?और क्या कर रहा है ?निहाल ने देखा दूर सहमी बैठी कामिनी उसे देख रही है। पहले तो वो लोग उन्हें छेड़ रहे थे फिर उनसे पैसा और लड़की लेकर उड़नछू हो जाना चाहते थे। तभी ये पता नहीं कौन है ?उन्होंने सोचा -इसने तो स्वयं ही अपनी मौत बुलाई है ,इसकी मोटरसाइकिल कब काम आएगी ?निहाल सड़क के दूसरे किनारे पर था और वे लोग दूसरी तरफ पेड़ों की ओट लिए थे किन्तु परेशान थे ,ये कोई पुलिसवाला तो नहीं। 
 

अपने दोस्तों को बचाने के लिए निहाल क्या करता है ?उन्हें छुड़ा भी पायेगा या नहीं ,पढ़िए- भाग २ 
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हमारे जीवन में अथवा समाज में हम कुछ ऐसा देखते या सुनते हैं जिन पर कई बार हम सहमत होते हैं और कई बार सहमत नही होते तब उस विषय पर हमारे विचार हमारी सोच उसके पक्ष या विपक्ष में हमें लिखने पर बाध्य कर देती है। कई बार किसी चीज की जानकारी हम लेख द्वारा ही जान सकते हैं या किसी को जानकारी दे भी सकते हैं। अपने विचारों से किसी को अवगत कराना चाहेंगे तब भी लेख ही ऐसा माध्यम है। उन विचारों से कुछ लोग सहमत हो सकते हैं, कुछ सहमत नहीं हो सकते सभी की अपनी अपनी सोच है। किसी को बाध्य नही किया जा सकता किंतु अपने लेखों द्वारा दूसरे व्यक्ति तक अपने विचार पहुंचाए अवश्य जा सकते हैं। अपनी समीक्षाओं द्वारा उन विचारों पर अपना मत सकते हैं।
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