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आल्हा

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आल्हा छंद "आलस्य"कल पे काम कभी मत छोड़ो, आता नहीं कभी वह काल।आगे कभी नहीं बढ़ पाते, देते रोज काम जो टाल।।किले बनाते रोज हवाई, व्यर्थ सोच में हो कर लीन।मोल समय का नहिं पहचाने, महा आलसी प्राणी दीन।।बोझ बने जीवन को ढोते, तोड़े खटिया बैठ अकाज।कार्य-काल को व्यर्थ गँवाते, मन म

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