रे दरपनरे दरपन, तू फिर इतना उदास क्यों है,ऋतु बदली है, पगले निराश क्यों है,फिर पुरवाई महकी बासंती आ गई ,फिर थकी –थकी सी यह सांस क्यों है,चेहरे पर गुलाबी गंध महकी-महकी है,मयूर संग आम्रपाली फिर प्यास क्यों है ,झुरमुट मालती के , रात-रानी संग,अश्क यह मुरझाया सा पलास क्यों ह