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मदन पाण्डेय 'शिखर' की डायरी

मदन पाण्डेय 'शिखर'

14 अध्याय
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madan pandey 'shikhar' ki dir

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पुस्तक के भाग

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नवीन वर्ष मंगलमय हो....

31 दिसम्बर 2015
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       शब्दनगरी  के नए परिवेश में ..... स्वयं को प्रस्तुत करते हुए...समस्त  शब्दनगरी परिवार को सपरिवार नवीन वर्ष २०१६ की अनगिनत और असीम  मंगल शुभकामनाएँ , 

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माँ .....

1 जनवरी 2016
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माँ..... जिस्म से रूह तक एक-एक रुओंहोती है,माँ तो माँ है सारी दुनियाँसे जुदा होती है,   उसकी प्यारी सी थपक आँखसुला देती है,वो तो माँ है जोदुवाओं  से दवा देती है I  ये जो शौहरत है बेखोफ़ जिगर,दौलत है,माँ के आँचल की हल्की सी हवाहोती है I     जग पल भर को रुके,सांस भले थमजाये,माँ की ममता बहते जल सी दुआहो

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.....जवानों को संदेश...

4 जनवरी 2016
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मोदी जी का  पाक दौरा - सैनिकों में  हलचलनेताओं की  छीटा- कसी , रक्तिम गंगा का जल,हमारे लहू  से हर बार विश्वासघात हो जाता है,फिर समझोते में, एक जवान शहीदहो जाता है,,,,         .....जवानों को संदेश.... ‘अँधेरी रात है, मशालों  को जलाते रहिये,सुई की नोंक भी, छालों पे लगातेरहिये, बिष-धर घायल , सीमा पे छो

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माँ और बेटे का प्यार .

6 जनवरी 2016
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माँ और बेटे का  प्यार ....लहू के रंग से सीमा कीमाटी शोभिता कर दीकटाए शीश पग पर,वीर कीहंसती चिता रख दीसुहागिन भारती के भालकी सिंदूर की लाली सुतों के ढेर की बैराजमाँ पर अर्पिता कर दी ईएक और माँ जो शहीद की पत्नी है हथेली पर हिना के रंग कोकुर्वन कर देतीवेंदी  चूड़ियाँ पायल,वतन के नाम कर  देतीगोली दुश्मनो

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दवा विक्रेता...

21 जनवरी 2016
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 ****** सत्य घटना............ कोई नहीं बताता मेरा इलाज क्या है,ज़िन्दगी छिपाती है मुझसे ये राज क्या है, अस्पताल की सीढ़ी पर, घुटनों बीच सिर दबाये,एक नन्ही सी  बच्ची ,कुछ बड-बड़ा रही थी, रुंधी –रुंधी सी आवाज,चेहरे पर मायूसी जैसे,माँ की मौत से झूझती रह-रह कर दुआ कर रही थी,  हे भगवन मेरी जान ले-लो,मेरी मा

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जगा कर तो देख....

10 फरवरी 2016
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सोई हुई कुमुदिनी को जगा कर तोदेख,वो जाग जाये, पहले हाथ लगा कर तोदेख,थक गई है सीपी, तपती रेत मेंबहुत,एक लम्हा हथेली पर, उठा कर तोदेख,ये मुहब्बत है समुन्दर, आँसूज्वार-भाटे,बहती हुई रेत है, नाम लिखा कर तोदेख,शमां कि हँसते-हँसते मिटा देतीहै वजूद ,इस पतंगे को मुहब्बत सिखा कर तोदेख...जिस्म कहता उठूँ ,तो द

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रानी लक्ष्मी बाई

16 फरवरी 2016
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शत-शत श्रधांजलि .....धन्य है बुन्देल भूमि, धन्य  रानी लक्ष्मी बाई धन्य  भागीरथी , मोरोपंत  की  छबीली थी,छूटा  जो सुहाग फिर झाँसी के  सुहाग हेतु,फिरंगों के संग  होली, लाल रंग खेली थी,सुन्दर,मुन्दर संग  बादलों सी उड़ गई,-तेवीस  की उम्र में वो तिरंगे सी पहेली थी,सिंहनी सी लड़ी,रूह काँप उठी गोरों की  तो,भ

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रे दरपन .....

8 सितम्बर 2017
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रे दरपनरे दरपन, तू फिर इतना उदास क्यों है,ऋतु बदली है, पगले निराश क्यों है,फिर पुरवाई महकी बासंती आ गई ,फिर थकी –थकी सी यह सांस क्यों है,चेहरे पर गुलाबी गंध महकी-महकी है,मयूर संग आम्रपाली फिर प्यास क्यों है ,झुरमुट मालती के , रात-रानी संग,अश्क यह मुरझाया सा पलास क्यों ह

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आँसुओं के भी दाम

9 सितम्बर 2017
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आँसुओं के भी दामलब्ज़ खुद ही बयान होते हैं,आँसुओं के भी दाम होते हैंIपंछी, रोको तो दौड़ते बादलों को, व्योम में कहाँ विराम होते हैं I चाँद तारों की दोस्ती रात भर, जुगनुओं के तो नाम होते है Iदुपहरी धूप, जिश्म की जलन, जैसे वर्षों की थकान होते हैं Iअर्श पर चाँदनी,त्रण पर म

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माँ मुझे अच्छे से प्यार कर लेना,

23 जून 2018
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बिटियां तो जैसे घर को सजाने के लिए होती हैं। ,और जब विदा होती हैं तोरुलाने के लिए होती हैं ।माँ मुझे अच्छे से प्यार कर लेना,माँ मुझे अच्छे से प्यार कर लेना, मेरी आँखों में अपना दुलारभर देना,दुनियाँ को सारी मैं ममता सिखाऊँ,ऐसा तुम मेरा श्रंगार कर देना । ....माँ मुझे अच्छे से मैं घुटनों चलू

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‘शिखर’ –परिचय

25 जुलाई 2018
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‘शिखर’ –परिचयमूंक हो भाव , वाणी प्रखर चाहिए,हो लहू नम्र ,खौला जिगर चाहिए, कूपतालों से निकलो समुन्दर चलो,जाह्नवी के लिए तो ‘शिखर’ चाहिए I धारनफ़रत की फिर से सिमट जायेगी,आंधियों की डगर फ़िर से छंट जायेगीतुमशिखर सी हरियाली ओढ़ो सही,प्रेम की बेल दिल से लिपट जायेगी ,

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आईने तो यों ही बदनाम होते हैं,

25 जुलाई 2018
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आईने तो यों ही बदनाम होते हैं,कुछ चेहरे भी, गुमनाम होते हैं बंद पलकों में रखते जिन्हें लोग-चर्चे अक्सर वही आम होते हैं । रिश्ते बहुत नाज़ुक हुआ करते हैं ,चंद सांसों में भी टूट जाते हैं,हम बहुत याद करते हैं जिनको- वही तो अक्सर रूठ जाते हैं ।यह तो कमबख्त हँसी हैं जो,द

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तुम्हें बच्चों की, याद नहीं आती है ,

3 दिसम्बर 2018
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वृद्ध दंपति द्वारा आत्महत्या... दुर्भाग्यपूर्ण घटना –हल्द्वानी...2018…( भाव= काल्पनिक )जैसे-जैसे आज शाम ढलने लगी, रोज़ की तरह दीपक की, लौजलने लगी,पत्नी की एकटक आँखें, डब- डबा रही थी,घर की एक-एक चीज़, आँखों में उतर-आ रही थी, दोनों नेमिलकर जाने कैसा , अभागा निर्णयले लिया,

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ॐ –शांति - पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि

15 फरवरी 2019
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ॐ –शांति - पुलवामा के शहीदों कोश्रद्धांजलिपुलवामा के वीरशहीदों को शत-शत श्रद्धांजलि है,कसम हमें एक बूँद भी, बन जाए अब अंजलि है,इतना साहस सेना की आँखों में धूल झोंकी है,शहीदों के लहूसे फिर लटपथ हुई ये चौकी है।सीज़ वार ,सर्जिकल स्ट्राइक, हल नहीं कायरता का ,छ्ल से घातकिया जो, निर्मम वीरों से

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