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अब्बो ले सुपवा बोलेला

21 मई 2016

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ताल तलहटी, गाँव क रहटी

कब फूटल किस्मत खोलेला

अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

दिन में खैनी साँझ क हुक्का

भोरे आइल साह क रुक्का

खेती में जब भयल ना कुछहु

अन्दाता फुक्के का फुक्का 

बिगरल माथा डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

बाढ़ में बहल गाँव पे गाँव

पहरी पर बनल मोरा ठांव

मदत लीहने शहरी  बाबू

अब कइसे पड़ी मोरा पाँव 

फ़ांस में , मुड़ी तोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

नन्हकी आपन भइल सयान

कब ले राखब ओकर धियान  

धावत धूपत घीसल पनही

बेटहा  के बा  ढेर  पयान

आस क थुन्ही डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

बंसखट भइल दुआरे सपना

बइठे वाला के बा अपना

नेह छोह के किस्मत फूटल

लेहल देहल भइल कलपना

मन , गगरी विष घोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

हम त बानी लइकी के बाप

सोचते छाती लोटत सांप

कइसे लागी हाँथे हरदी

सोचते बेरी गइली काँप

बेटवा माइ तोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

 

 

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी की अन्य किताबें

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रचनाएँ
udbodhan
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मन के कथ्य
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आवा इहें

3 नवम्बर 2015
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मचल कौवा झमार , आगे पीछे अनिहार ।  नीति कवनों विस्तार केचलावा इहें ।बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवाइहें ना ॥ इत पुरुखन के भूमि , नीमन कइने एका चूमी । रीति कवनों अभिसार के चलावाइहें । बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवाइहें ना ॥ छोड़ा घुमला के चाह , मने भरी के उछाह । प्रीति के रहिया बनवा इहें ।बचवा धरती छोड़ दोसरा क

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माथे की लकीरें

3 नवम्बर 2015
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माथे पर उभर आई लकीरें भविष्य को ही चिन्हित करती जा रही हैं पसीने से तर – बतर बिखरे लटियाए बाल नियति बन चुके हैं उनकी ।  हाथ की लकीरें बदल भी सकती हैं लेकिन नहीं बदल पाती माथे पर उभरी लकीरें अमिट हैं लक्ष्मण रेखा सी अडिग हैं चीन की दीवार सी ।  कर्म – नियति – भाग्य बन गए हैं नदी के किनारे जो कभी मिलते

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पगडंडी

3 नवम्बर 2015
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 टेढ़ी मेढ़ी धूल धूसरित रौंदी सी तल्ख धूप से क्रिसकाय असहाय बेचारी पगडंडी ।  निपट मूर्ख सी सहती गर्मी वर्षा शीत फिर भी सबकी मीत बेचारी पगडंडी ।  अनचाही घासों से अटी पटी कभी कलंकित कभी सुशोभित कभी बिलखती कभी प्रफुल्लित निभाती रहती रीत बेचारी पगडंडी ।  देखी !सबकी हार , जीत समय के साथ बदलती भक्ति अस्मिता

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भाषा बम

19 नवम्बर 2015
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केकर के दुलरुवा बाटे  ,सुनल जाई गुनल जाई । नीमन लागी त ठीके बा , नाही त भर मन धुनल जाई ॥  पाकल खेत आ बनल लईकी,दोसरा भरोष न छोडल जाई । जे भी संगे आ खाडियाई ,मय बिरोध पर तोड़ल जाई ॥  माहौल बने त बन जायेदा भाषा बम भी फोड़ल जाई । बिन पेनी के लोटा नीयन ,केहु क चदरी ओढ़ल जाई ॥  साम दाम आ दंड भेद पर ,नवका राग

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बंदरबाँट

6 दिसम्बर 2015
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कुछ तीतर कोकुछ बटेर को बाकी मेरा अहम खा गया ।  कुछ बंदो कोकुछ चंदों कोबाकी पर कुछ रहम आ गया ।  कुछ तोड़ फोड़ कुछ कहासुनीबाकी पर वाक आउट छा गया ।  कुछ आरक्षण कुछ संरक्षण बाकी पर स्टे आ गया ।  कुछ झूठों कोकुछ रूठों को बाकी तो मीडिया पा गया ।  कुछ लूट कोकुछ छूट को बाकी को परदेश भा गया ।  कुछ सोने कोकुछ र

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का भइल

15 दिसम्बर 2015
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न किसाने सुखी न मजूरी भली न शिक्षा क केहरो मशाले जली बरिअइए भर कुरसी चढ़ल बानी हम ।  घुम अइली हम कबके सउसें नगर केनियों मिलल न हमरा नीमन डगर  न जाने कबसे किनारे पड़ल बानी हम । आम बउरल भी बा , अ डलियो झुकल सब चलत बा समय से ना कुछों रुकल   बाउर मन ले संकोचे गड़ल बानी हम ।  कहीं लउकल न हमरा धरम के झगड़ा नत

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बुढ़िया माई

31 दिसम्बर 2015
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१९७९ - १९८० के साल रहलहोई , जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी । एगो लमहरइयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी , जवना के अगर केहुकबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई । साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी , जेकर लेखाओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए । जात धर

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पठानकोट

5 जनवरी 2016
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विश्वासघातकब तक सहोगे बताओ अब ।  मंतब्य पूरारक्तरंजित माटीदीख रही है ।  मरा गरीब बेआंच युवराज आखिर क्यों ।  फँसती पेंचकंहरते आदमी लगी है आग ।  किसकी जांचकिसके लिए होगी तरीका वही ।  कोसना बंदमुहतोड़ जवाब देश की इच्छा । आतंकवाद एक ऑपरेशन उनके घर ।  आतंकियों के अटूट मंसूबों कोखत्म समझो ।  हुक्म सेना को

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गइल भइसिया पानी मे

11 जनवरी 2016
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राजनीति कS चकरी घूमल   आग लपेटल घानी में |गइल भइसिया पानी मे ॥  बागड़ बिल्ला नेता बनिहे करिया अक्षर वेद बखनिहे केहुके कब्जावल माल परमार पालथी शान बघरिहे ।     कुरसी से जब  पेट भरल ना       खइलस चारा सानी  मे ।       गइल भइसिया पानी मे ॥  सगरोंमचइहे हाहाकार करिहेकुल उलटा बेइपार  मरनअपहरन राहजनी पे  एह

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बसंत दीदार

13 फरवरी 2016
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मन अगराइल सरसो फुलाइल बहे लागल बसंती बयारमोरा दिल गुलजार भइलें खुदही सेप्यार ।  नाचे मोर रोम रोम खिलल बा अब व्योम अमवों मोजराइल बा भँवरा गुन गुनाइल गोरी करेलीं अनंत शृंगार ।  दुअरे चइता गवाइल कुहूंकत कोइला सुनाइल अंग अंग महकाइल पिया मोर बेल्हमाइल देखत गोरिया निहार ।  बाग बगइचा हरियाइल हिया हुलसाइल आ

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अब्बो ले सुपवा बोलेला

21 मई 2016
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ताल तलहटी, गाँव करहटी कब फूटल किस्मत खोलेलाअब्बो ले सुपवाबोलेला |  दिन में खैनी साँझ कहुक्का भोरे आइल साह करुक्का खेती में जब भयल नाकुछहु अन्दाता फुक्के काफुक्का  बिगरल माथा डोलेला |अब्बो ले सुपवा बोलेला |  बाढ़ में बहल गाँव पेगाँव पहरी पर बनल मोरा ठांवमदत लीहने शहरी  बाबू अब कइसे पड़ी मोरा पाँव  फ़ांस

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चलती के बेरिया

21 मई 2016
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निहुरी ओढावले चदरिया||चलती के बेरिया || जवने दिन पडल हमरे ओहरवाआई, ठाढ नियरे चारोकंहरवा  घरवां में रोअतगुजरिया || चलती के बेरिया || लोर भरी अंखिया, अइनीसहेलिया आपन पराया जे निकसलमहलिया लोर बरसे अस बदरिया|| चलती के बेरिया || सून महल, सून गउवांके गलियामुरझाइल अब बगियनमें कलिया  कहवां हेराइलअंजोरिया ||

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