ताल तलहटी, गाँव क रहटी
कब फूटल किस्मत खोलेला
अब्बो ले सुपवा बोलेला |
दिन में खैनी साँझ क हुक्का
भोरे आइल साह क रुक्का
खेती में जब भयल ना कुछहु
अन्दाता फुक्के का फुक्का
बिगरल माथा डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |
बाढ़ में बहल गाँव पे गाँव
पहरी पर बनल मोरा ठांव
मदत लीहने शहरी बाबू
अब कइसे पड़ी मोरा पाँव
फ़ांस में , मुड़ी तोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |
नन्हकी आपन भइल सयान
कब ले राखब ओकर धियान
धावत धूपत घीसल पनही
बेटहा के बा ढेर पयान
आस क थुन्ही डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |
बंसखट भइल दुआरे सपना
बइठे वाला के बा अपना
नेह छोह के किस्मत फूटल
लेहल देहल भइल कलपना
मन , गगरी विष घोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |
हम त बानी लइकी के बाप
सोचते छाती लोटत सांप
कइसे लागी हाँथे हरदी
सोचते बेरी गइली काँप
बेटवा माइ तोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी