न किसाने सुखी न मजूरी भली
न शिक्षा क केहरो मशाले जली
बरिअइए भर कुरसी चढ़ल बानी हम ।
घुम अइली हम कबके सउसें नगर
केनियों मिलल न हमरा नीमन डगर
न जाने कबसे किनारे पड़ल बानी हम ।
आम बउरल भी बा , अ डलियो झुकल
सब चलत बा समय से ना कुछों रुकल
बाउर मन ले संकोचे गड़ल बानी हम ।
कहीं लउकल न हमरा धरम के झगड़ा
नत मंदिर न मस्जिद न कौनों रगड़ा
कइसन लोगन के बीचे जड़ल बानी हम ।
न गरीबी मिटल ना विकास आइल
न गाँवन के गली मे परकास आइल
कवनों पुन्ने प्रतापे बढ़ल बानी हम ।
कठकरेजन के संगे अड़ल बानी हम ।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी