केकर के दुलरुवा बाटे ,
सुनल जाई गुनल जाई ।
नीमन लागी त ठीके बा ,
नाही त भर मन धुनल जाई ॥
पाकल खेत आ बनल लईकी,
दोसरा भरोष न छोडल जाई ।
जे भी संगे आ खाडियाई ,
मय बिरोध पर तोड़ल जाई ॥
माहौल बने त बन जायेदा
भाषा बम भी फोड़ल जाई ।
बिन पेनी के लोटा नीयन ,
केहु क चदरी ओढ़ल जाई ॥
साम दाम आ दंड भेद पर ,
नवका राग बजावल जाई ।
धरम जात के बात नहीं कुछ ,
सुतल भाग जगावल जाई ॥
कुरसी चाही, केनियों मिले ,
पार्टीन के हिलावल जाई ।
पाँच साल तक आँख मूद के ,
देश के बिलवावल जाई ॥
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी