मन अगराइल
सरसो फुलाइल
बहे लागल बसंती बयार
मोरा दिल गुलजार
भइलें खुदही से प्यार ।
नाचे मोर रोम रोम
खिलल बा अब व्योम
अमवों मोजराइल बा
भँवरा गुन
गुनाइल
गोरी करेलीं अनंत शृंगार ।
दुअरे चइता गवाइल
कुहूंकत कोइला सुनाइल
अंग अंग महकाइल
पिया मोर बेल्हमाइल
देखत गोरिया निहार ।
बाग बगइचा हरियाइल
हिया हुलसाइल
आइल मदन त्योहार
मचलत बहियाँ क हार
सखी री ! इहे बसंत दीदार ।
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी