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आवा इहें

3 नवम्बर 2015

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मचल कौवा झमार , आगे पीछे अनिहार ।  

नीति कवनों विस्तार के चलावा इहें ।

बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवा इहें ना ॥

 

इत पुरुखन के भूमि , नीमन कइने एका चूमी ।

रीति कवनों अभिसार के चलावा इहें ।

बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवा इहें ना ॥

 

छोड़ा घुमला के चाह , मने भरी के उछाह ।

प्रीति के रहिया बनवा इहें ।

बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवा इहें ना ॥

 

सोच नीमन करा आपन , कइके लोभ क उद्यापन ।

सभके विकास ला बयार के बहावा इहें ।

बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवा इहें ना ॥

 

नाही कवनों रार इहवाँ , भरल बाटे प्यार इहवाँ

सुतल पौरुष के आई जगावा इहें ।

बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवा इहें ना ॥

 

 

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी की अन्य किताबें

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

जयशंकर जी, भोजपुरी में लिखी बहुत ही सुन्दर कविता है, आशा है कि थोड़ी भी भोजपुरी समझने वालों को यह बहुत पसंद आएगी ! भोजपुरी में और भी रचनाएँ लिखियेगा । धन्यवाद !

4 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
udbodhan
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मन के कथ्य
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आवा इहें

3 नवम्बर 2015
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मचल कौवा झमार , आगे पीछे अनिहार ।  नीति कवनों विस्तार केचलावा इहें ।बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवाइहें ना ॥ इत पुरुखन के भूमि , नीमन कइने एका चूमी । रीति कवनों अभिसार के चलावाइहें । बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवाइहें ना ॥ छोड़ा घुमला के चाह , मने भरी के उछाह । प्रीति के रहिया बनवा इहें ।बचवा धरती छोड़ दोसरा क

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माथे की लकीरें

3 नवम्बर 2015
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माथे पर उभर आई लकीरें भविष्य को ही चिन्हित करती जा रही हैं पसीने से तर – बतर बिखरे लटियाए बाल नियति बन चुके हैं उनकी ।  हाथ की लकीरें बदल भी सकती हैं लेकिन नहीं बदल पाती माथे पर उभरी लकीरें अमिट हैं लक्ष्मण रेखा सी अडिग हैं चीन की दीवार सी ।  कर्म – नियति – भाग्य बन गए हैं नदी के किनारे जो कभी मिलते

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पगडंडी

3 नवम्बर 2015
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 टेढ़ी मेढ़ी धूल धूसरित रौंदी सी तल्ख धूप से क्रिसकाय असहाय बेचारी पगडंडी ।  निपट मूर्ख सी सहती गर्मी वर्षा शीत फिर भी सबकी मीत बेचारी पगडंडी ।  अनचाही घासों से अटी पटी कभी कलंकित कभी सुशोभित कभी बिलखती कभी प्रफुल्लित निभाती रहती रीत बेचारी पगडंडी ।  देखी !सबकी हार , जीत समय के साथ बदलती भक्ति अस्मिता

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भाषा बम

19 नवम्बर 2015
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केकर के दुलरुवा बाटे  ,सुनल जाई गुनल जाई । नीमन लागी त ठीके बा , नाही त भर मन धुनल जाई ॥  पाकल खेत आ बनल लईकी,दोसरा भरोष न छोडल जाई । जे भी संगे आ खाडियाई ,मय बिरोध पर तोड़ल जाई ॥  माहौल बने त बन जायेदा भाषा बम भी फोड़ल जाई । बिन पेनी के लोटा नीयन ,केहु क चदरी ओढ़ल जाई ॥  साम दाम आ दंड भेद पर ,नवका राग

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बंदरबाँट

6 दिसम्बर 2015
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कुछ तीतर कोकुछ बटेर को बाकी मेरा अहम खा गया ।  कुछ बंदो कोकुछ चंदों कोबाकी पर कुछ रहम आ गया ।  कुछ तोड़ फोड़ कुछ कहासुनीबाकी पर वाक आउट छा गया ।  कुछ आरक्षण कुछ संरक्षण बाकी पर स्टे आ गया ।  कुछ झूठों कोकुछ रूठों को बाकी तो मीडिया पा गया ।  कुछ लूट कोकुछ छूट को बाकी को परदेश भा गया ।  कुछ सोने कोकुछ र

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का भइल

15 दिसम्बर 2015
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न किसाने सुखी न मजूरी भली न शिक्षा क केहरो मशाले जली बरिअइए भर कुरसी चढ़ल बानी हम ।  घुम अइली हम कबके सउसें नगर केनियों मिलल न हमरा नीमन डगर  न जाने कबसे किनारे पड़ल बानी हम । आम बउरल भी बा , अ डलियो झुकल सब चलत बा समय से ना कुछों रुकल   बाउर मन ले संकोचे गड़ल बानी हम ।  कहीं लउकल न हमरा धरम के झगड़ा नत

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बुढ़िया माई

31 दिसम्बर 2015
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१९७९ - १९८० के साल रहलहोई , जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी । एगो लमहरइयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी , जवना के अगर केहुकबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई । साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी , जेकर लेखाओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए । जात धर

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पठानकोट

5 जनवरी 2016
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विश्वासघातकब तक सहोगे बताओ अब ।  मंतब्य पूरारक्तरंजित माटीदीख रही है ।  मरा गरीब बेआंच युवराज आखिर क्यों ।  फँसती पेंचकंहरते आदमी लगी है आग ।  किसकी जांचकिसके लिए होगी तरीका वही ।  कोसना बंदमुहतोड़ जवाब देश की इच्छा । आतंकवाद एक ऑपरेशन उनके घर ।  आतंकियों के अटूट मंसूबों कोखत्म समझो ।  हुक्म सेना को

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गइल भइसिया पानी मे

11 जनवरी 2016
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राजनीति कS चकरी घूमल   आग लपेटल घानी में |गइल भइसिया पानी मे ॥  बागड़ बिल्ला नेता बनिहे करिया अक्षर वेद बखनिहे केहुके कब्जावल माल परमार पालथी शान बघरिहे ।     कुरसी से जब  पेट भरल ना       खइलस चारा सानी  मे ।       गइल भइसिया पानी मे ॥  सगरोंमचइहे हाहाकार करिहेकुल उलटा बेइपार  मरनअपहरन राहजनी पे  एह

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बसंत दीदार

13 फरवरी 2016
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मन अगराइल सरसो फुलाइल बहे लागल बसंती बयारमोरा दिल गुलजार भइलें खुदही सेप्यार ।  नाचे मोर रोम रोम खिलल बा अब व्योम अमवों मोजराइल बा भँवरा गुन गुनाइल गोरी करेलीं अनंत शृंगार ।  दुअरे चइता गवाइल कुहूंकत कोइला सुनाइल अंग अंग महकाइल पिया मोर बेल्हमाइल देखत गोरिया निहार ।  बाग बगइचा हरियाइल हिया हुलसाइल आ

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अब्बो ले सुपवा बोलेला

21 मई 2016
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ताल तलहटी, गाँव करहटी कब फूटल किस्मत खोलेलाअब्बो ले सुपवाबोलेला |  दिन में खैनी साँझ कहुक्का भोरे आइल साह करुक्का खेती में जब भयल नाकुछहु अन्दाता फुक्के काफुक्का  बिगरल माथा डोलेला |अब्बो ले सुपवा बोलेला |  बाढ़ में बहल गाँव पेगाँव पहरी पर बनल मोरा ठांवमदत लीहने शहरी  बाबू अब कइसे पड़ी मोरा पाँव  फ़ांस

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चलती के बेरिया

21 मई 2016
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निहुरी ओढावले चदरिया||चलती के बेरिया || जवने दिन पडल हमरे ओहरवाआई, ठाढ नियरे चारोकंहरवा  घरवां में रोअतगुजरिया || चलती के बेरिया || लोर भरी अंखिया, अइनीसहेलिया आपन पराया जे निकसलमहलिया लोर बरसे अस बदरिया|| चलती के बेरिया || सून महल, सून गउवांके गलियामुरझाइल अब बगियनमें कलिया  कहवां हेराइलअंजोरिया ||

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