कुछ तीतर को
कुछ बटेर को
बाकी मेरा अहम खा गया ।
कुछ बंदो को
कुछ चंदों को
बाकी पर कुछ रहम आ गया ।
कुछ तोड़ फोड़
कुछ कहासुनी
बाकी पर वाक आउट छा गया ।
कुछ आरक्षण
कुछ संरक्षण
बाकी पर स्टे आ गया ।
कुछ झूठों को
कुछ रूठों को
बाकी तो मीडिया पा गया ।
कुछ लूट को
कुछ छूट को
बाकी को परदेश भा गया ।
कुछ सोने को
कुछ रोने को
बाकी को कुछ याद आ गया ।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी