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अधुरा सपना

बहादुर बेदिया

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जीवन में कुछ करने को ठाना था दूर स्थित मंजिल को मुझे पाना था जिंदगी में यही तो अपना ठिकाना था इसी सोच लिए तो मुझे आगे बढ़ना था क्या यह मेरा सपना अधूरा था? शायद एक दिन इसे पूरा होना था मुझे अपनी मंजिल को गले लगाना था मंजिल की खोज में रास्ते भटकना था फिर नई राह में आगे को बढ़ना था क्या यह मेरा सपना अधूरा था? सुनसान सड़क पर अकेला चल रहा मंजिल की तलाश में आगे बढ़ रहा इस राह में मुझे कहां कोई दिख रहा? कुछ अलग करने मेरा मन तरस रहा क्या यह मेरा सपना अधूरा था? भीड़ के भीड़ एक दूजे को देखकर दूसरों की मंजिल को अपना समझ कर साथ चल रहा कदम से कदम मिलाकर मंजिल पाने का ख्याली पुलाव बनाकर क्या यह मेरा अधूरा सपना था? चलना ही था तो खुद मंजिल तय करना था अकेले चल रहे राह में भीड़ को साथ करना था खुद को एक जलता दीपक आदर्श बनाना था कुछ अलग कर खुद का नाम रोशन करना था क्या यह मेरा अधूरा सपना था। 

adhuraa sapnaa

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