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अधूरे ख्वाब - दो

27 सितम्बर 2021

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कहने के लिए तो यह कलकत्ता था, पर माहौल पूरा देहाती ही था । कलकत्ता शहर के दूर शिल्पांचल का एक छोटा सा मुहल्ला । पूरा हाव- भाव और रहन सहन वही गाँव वाला। शहर के बीच देहात बसा था । बस विभिन्न प्रांतों और जिलों के लोगों के सम्मिश्रण से बसे इस मुहल्ले के लोगों की भाषा बदल गई थी ।  ना उत्तर-प्रदेश, ना बिहार और ना ही बंगाली हिंदी ।  ये न जाने किस प्रकार की बोली वाला मुहल्ला था ।  पर हिंदी जैसा ही था । 

जैसे ही रिक्शा ससुराल के दरवाजे तक पहुंची, आसपास के छोटे-छोटे बच्चे हमारे रिक्शा के  भैया आ गए-,भाभी आ गई कहते हुए दौड़े आये और फिर कौतुहल से मेरी ओर देखने लगे  । अब यहाँ भी गाँव जैसा माहौल, गाँव के अधिकांश लोग आस-पास रहते थे, इसलिए प्रथा तो निभानी ही थी । लम्बी घूँघट टाने रिक्शे से उतरी ।  कुछ साफ़ दिखाई तो दे नहीं रहा था, किसी तरह से लड़खड़ाते हुए, बांह पकड़े घर में प्रवेश की । मेरे इन्तजार में आस-पास की चाची और दादी पहले से ही खड़ी थीं ।  बड़ा ही जोरदार स्वागत हुआ । । ससुराल पर्व का आज पहला दिन और पहली शुरुआत अच्छी ही रही । मिलने-मिलाने के बाद सभी अपने-अपने घर चले गए ।  सबके जाने के बाद आश्वस्त होकर मैं बैठी और फिर अपने कमरे को देखना शुरू किया ।  आठ बाई दस का एक छोटा सा किराये का कमरा ।  मकान मालिक भी पड़ोस में ही रहते थे ।  मोहल्ले में अबतक ठीक से बिजली नहीं आई थी ।  मकान मालिक के घर में बिजली का प्रबंध था ।  काम चलने के लिए उन्होंने एक बल्ब का कनेक्शन दे रखा था ।  शाम होने के बाद उसका प्रयोग किया जाता था ।  ये भी फ्रेश होकर अपने दोस्तों के पास चले गए थे ।  रात में कुछ सात-साढ़े सात के बाद आये ।  आज जी भरकर मैंने इन्हें देखा ।  लाज तो अब भी आ रही थी कि लोग क्या कहेंगे ! अपने पति से बात कर रही है!! 

धीरे-धीरे हमारी आपसे में बात होने लगी ।  मोहन उन दिनों दिल्ली में पोस्टेड थे ।  सेना में थे ।  अभी कुछ ही दिन हुआ था उनके लगे हुए ।  जैसे ही ट्रेनिंग पास की, शादी हो गई ।  दिसंबर का महीना था, चूँकि साल बीत रहा था, इसलिए छुट्टी भी कम दिनों की थी ।  बातों-बातों में बताया कि दो दिन और छुट्टी बची है, शुक्रवार को वापसी है ।  उनके जाने  की बात सुनकर बड़ा ही जोर का धक्का लगा ।  अभी दो-चार दिन ही तो हुआ है ।  अभी ही जाना था ! पर नौकरी की बात और फिर, फिर आने की बात कहकर शुक्रवार की शाम को दिल्ली यात्रा के लिए निकल पड़े ।  इनके जाने की बात पहले ही मन में बेचैनी पैदा कर गई थी, और अब तो वो खुद भी चले गए ।  मारे लाज के न तो रो सकती थी ना ही किसी से कह सकती थी ।  अभी- अभी तो मायके से बिछड़ कर आई थी, और अब पतिदेव भी परदेसी....... !!!   



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रचनाएँ
अधूरे ख्वाब
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ग्रामीण अंचल में पली बढ़ी लड़की का ग्रामीण-शहरी माहौल में आकर उस माहौल की दिक्क़ते झेलते हुए ख्वाब बुनने और उन खाव्बो को कभी हकीकत बनते और कभी ढेर होते देखने की कहानी .

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