पता चला कि मोहन की पोस्टिंग अब चंडीगढ़ हो गई है । कुछ ही दिनों में वो चंडीगढ़ चले जाएंगे । उन दिनों इस के सामान मोबाइल या अन्य फोन का तो कोई प्रचलन था नहीं । किसी को कहीं फोन करना हुआ तो किसी एसटीडी बूथ पर जाना पड़ता और फिर एक बार फोन कर सन्देश देना, वहां से बुलाने वाले जाएंगे । बुलाने जाने के लिए भी एक शुल्क लिया जाता था। फिर कुछ देर बाद फिर से फोन लगाया जाता और तब जाकर बात होती । बातें भी क्या, अधिक ध्यान तो बूथ के मीटर पर होता जो कुछ सेकेण्ड के बाद ही बढ़ते दर की सूचना देता रहता था । कभी- कभार पड़ोस के एक बूथ पर फोन आ जाया करता । फोन आना भी बड़ी बात होती उससे बड़ी बात होती थी फोन सुनने जाना । फोन आने के बात सुनकर घर- भर चल देता था बूथ की ओर । सबकी अपनी बातें, अपनी माँ गें । मेरा तो शायद नंबर ही नहीं आता या फिर आते- आते कुछ गिने चुने शब्दों में ही बात होकर फोन डिस्कनेक्ट हो जाया करता था ।
कुछ दिनों के बाद मोहन की चिठ्ठी आई । उन्होंने सन्देश दिया था कि मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हैं । अब परिवार की परम्परा । आजतक कभी भी बेटा-बहू अकेले परदेश नहीं गए है, यह नई बात कैसे होने जा रही है । कहीं कुछ बातें तो कहीं दबी जुबान में हल्का विरोध । पुरानी परम्पराओं पर यह तो एक प्रकार का कुठाराघात ही था ।
बेटा इतना बड़ा हो गया कि अब अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाएगा ।
यह घर में ढेरों काम और जिम्मेदारियां, माँ भी अक्सर बीमार रहती थी, उनकी देखभाल कौन करेगा ।
पत्नी साथ रखना तो हाथी रखने के सामान होता है । देखते हैं कैसे चलता है ।
जितने मुंह उतनी बातें पर सबकुछ दबी जुबान में । कुछ आवाजे तो अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले रिश्तेदारों के परिवार से भी आ जाती ।
अब इतना बड़ा हो गया ! लगता है कि पत्नी के वश में हो गया है।
कुछ न कुछ जादू कर दिया है उसकी पत्नी ने ।
“जरूर किया होगा, वर्ना ऐसा आजतक कभी हुआ है भला । अब हमारे कुमार को ही देख लो । बॉम्बे, सूरत हो आया लेकिन क्या मजाल कि कभी मेहरी साथ ले जाने की बात कही हो ।“
“घर में दो जवान बहनें हैं, उनकी शादी की चिंता नहीं है, लाट साहब अब चले हैं गुलछर्रे उड़ाने ।“
हालाँकि इस प्रकार की बातें सीधे नहीं कही जाती थीं,पर कहीं न कहीं से सबकुछ कानों तक आ ही जाती थीं ।
अब कमासुत पूत था, खुलकर कोई कुछ कहेगा नहीं पर रजामंदी किसी की नहीं थी । सबकुछ चलता रहा और फिर वह दिन भी आ गया जब मोहन लिवा जाने के लिए आये । घर में लगभग सभी लोग नाराज से ही थे । कोई सीधे मुँह बात तक नहीं कर रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे बहुत बड़ा अपराध हो गया हो।
फिर एक दिन विदा करवाकर कालका मेल से चल दिए ।
चंडीगढ़ जाने के बाद वो तो अपनी ड्यूटी पर चले जाते थे, दिनभर अकेले रहना पड़ता था । बोर होती रहती थी । हाँ कभी-कभार शाम को बाजार घूमने निकल जाते थे । इनके मित्र गण भी बड़े ही अच्छे थे । नए नए परदेशी थे, मिलने वालों और पहचान करने वालों का ताँता लगा ही रहता था । भीड़- भाड़ के कारन समय तो कट जाता पर फिर भी मन नहीं लगता था । शुरू में कुछ दिनों तक तो रोज ही फोन कर ससुर जी से कहती कि मुझे वहाँ बुलवा लें, अकेले मन नहीं लगता। धीरे- धीरे मन लगाने लगा । वहीं मोहन जी के पिताजी के एक क्लासमेट मिले, उनकी पत्नी और बच्चों के साथ परिचय हुआ और फिर आंटीजी के साथ समय बीत जाता ।
बंगाल की मीठी दही का कोई जवाब नहीं । वह भी यदि लाल दही हो तो और भी स्वादिष्ट होता है । श्यामनगर में नटराज स्वीट, मधु घोष के दुकान में जो दही मिलती थी वह काफी प्रसिद्ध थी । एक दिन मीठी दही खाने की बड़ी इच्छा हुई । मैंने मोहन जी को इसके बारे में बताया । शाम का समय था । उन्होंने जाने क्या सोचा, थोड़ी देर बाद ही कालका मेल की टिकट बनवा लाए और फिर अगली गाड़ी से हम कलकत्ता के रवाना हो गए । मेरे मन में इच्छा जागृत हुई और हमलोग कलकत्ता की मीठी दही खाने के लिए रवाना हो गए, जिसने भी सुना अचम्भे में था । दस दिन की छुट्टी लेकर कलकत्ता आये । अब वापसी में बड़ी वाली ननद भी चंडीगढ़ जाने के लिए तैयार हो गयीं। उनको भी साथ लिया और रवाना हो गए । ऐसे ही कई बार कुछ छोटी- मोटी चीजों के लिए मन में आग्रह पनपा और हम उसके लिए कलकत्ता आ जाया करते थे ।
समय का चक्र धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा । धीरे-धीरे दोनों ननद और सासुमाँ को चंडीगढ़ घुमाकर दिखा दिया गया ।
कई बार परिस्थितियां इंसान के नियंत्रण के बाहर होती हैं पर उसके लिए दोषी इंसान को ही ठहराया जाता है । न जाने किन कारणों से प्रारंभिक अवस्था में ही गर्भपात हो जा रहा था । डॉक्टर,पीर,फ़क़ीर,ओझा जिस किसी के बारे में सुझाया गया, उनके दर पर ही माथा टेकने जाते रहे पर कुछ भी सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आ रहा था । इस बीच जिस सज्जन के मकान में रहते थे उनकी पत्नी को बच्चा हुआ । एक पहले से ही था । उड़ीसा प्रान्त के रहने वाले थे । यह दूसरी संतान थी ।
एक दिन उनकी पत्नी ने कहा, 'भाभीजी, आप मेरे बच्चे की और मत देखना ।'
पहली बार तो उनकी बात समझ नहीं पाई, पर जब ध्यान दिया तो समझ पाई कि चूँकि मुझे संतान नहीं हो रही है, इसलिए मुझे बाँझ समझ कर मेरी नजर से उनके बच्चे का कुछ अहित न हो जाए इसलिए उन्होंने ऐसा कहा है । उनकी बात को मैंने अपने मन में ही रखा और अकेले में घंटों रोती रही । दुनिया वाले न जाने क्या क्या इल्जाम किसपर लगा दें । अन्धविश्वास और प्रताड़ना की यह पहली घटना मेरे साथ ही होनी थी ! न जाने ईश्वर को क्या मंजूर था । इस प्रकार के लोगों के साथ रहने और उनकी सुनने के लिए ही क्या ईश्वर ने मुझे यहाँ भेजा है?
कुछ दिनों के बाद मोहन जी का दुबारा स्थानांतरण यहीं के पास के एक यूनिट में हो गया। हम वहां शिफ्ट कर गए । कुछ दिनों के अंदर ही फिर से पीरियड मिस्ड हो गई । मन में एक शंका हुआ कहीं फिर से तो प्रेग्नेंसी..... ।
एक अनजाना भय.. फिर से वही समस्या, वही दुःख, प्रताड़ना.....
मोहन जी ने जांच करवाने के लिए कहा, मैं मना करती रही । नहीं माने, जांच करवाई गई। परिणाम फिर से पॉजिटिव....
चेहरे पर परेशानी और चिंता का भाव फिर से प्रकट हो गया ।
जिन भाई साहब ने जांच की थी, उन्होंने बताया कि डॉक्टरी इलाज जो भी लेना हो, लेते रहे पर यदि उनकी माने तो एक बार उनके एक परिचित हैं गुलेरिया जी,चंडीगढ़ कोर्ट में रजिस्ट्रार थे, उनसे एक बार मिल लिया जाए । उनके आशीर्वाद से कई ऐसे लोग जिन्हें डॉक्टर मना कर चुके थे, आज संतान सुख का भोग कर रहे हैं ।
हम दोनों इन चीजों में विश्वास नहीं करते थे । पूजा-पाठ करना अलग बात हैं पर इस प्रकार के अविश्वसनीय चमत्कार! वैसे भी लोगों के कहने में आकर पहले भी कई बार ठगे जा चुके हैं ।
मोहनजी ने कहा, 'चलो एक बार हो आते हैं । देखा जाए क्या होता है । '
मेरा मन तो नहीं था पर इनके जिद के आगे झुकना पड़ा और फिर रविवार के दिन हमलोग गुलेरियाजी से मिलने के लिए निकल पड़े । पूछते- पूछते गुलेरियाजी के घर पहुंचे । हमारे आगे एक सज्जन और उनके घर की सीधी चढ़ रहे थे। गुलेरियाजी के बारे में उनसे पूछा। उन्होंने ऊपर चलने के लिए कहा । ऊपर पहुंचकर उन्होंने कमरा खोला और हमें बैठने के लिए कहा । बताया कि अमूमन रविवार के दिन वो यह नहीं रहते हैं पर शायद यह हमारा सौभाग्य ही था कि वो आज हमारे लिए ही शायद अपने घर आये थे ।
बातें हुई । सारी बातें बताई । सुनने के बाद उन्होंने मेरी माँ का नाम और मेरे घर का पता पूछा और फिर कहा कि जबतक वो न कहें हम डॉक्टर के पास न जाएं । उन्होंने वहीं पूजास्थान से उठाकर कुछ गुलाब के फूल दिया और एक धागा दिया जिसे कमर में बाँधने की लिए कहा तथा रोज सुबह उन गुलाब की पंखुड़ियों में से एक पंखुड़ी दही के साथ खाने के लिए कहा। इस बीच उनका बेटा चाय बनाकर ले आया ।
अनजान स्थान और फिर अनजान व्यक्ति के घर में चाय कैसे पी लें । कहीं चाय में कुछ मिला दे और हमें बेहोश कर लूट ले तो क्या होगा । इन्हीं समस्त आशंकाओं के कारण चाय पीने से मना कर दिया गया ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'मुझे पता है तुम बहुत शक्की हो और मारे भय के चाय नहीं पी रही हो । ' चाय वापस लौटा दी ।
अब हमारा काम पूरा हो गया था । हम लौटने की इजाजत चाह रहे थे । चलने से पहले उनसे उनकी दक्षिणा पूछी । उन्होंने बताया कि कोई दक्षिणा देने की आवश्यकता नहीं है पर एक शर्त अवश्य है । शर्त की बात सुनकर थोड़ी हैरानी हुई ।
उन्होंने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है । शर्त बस यह है कि बच्चे के जन्म की ख़ुशी की पहली मिठाई उन्हें मिलनी चाहिए । यह मिठाइ वो माता के भक्तों में बांटते हैं तथा बच्चे की एक फोटो अवश्य दें । फोटो के बारे में उन्होने बताया कि उनके आशीर्वाद से जन्म लेने वाले बच्चों की तस्वीर वो एक एल्बम में रखते है । बीच- बीच में उन तस्वीरों पर आशीर्वाद का हाथ फेरते रहते हैं ताकि उन बच्चों का जीवन निष्कंटक हो ।
फिर से एक महीने के बाद उन्होंने दुबारा बुलाया और कहा कि हर महीने एक बार आकर मिल जाया करें । ऐसे ही चार माह तक उनके पास आते रहे, वो फूल देते और फिर आशीर्वाद लेकर हम वापस लौट जाते ।
चौथा महीना बीतने लगा । महीने के अंत में उन्होंने कहा कि डॉक्टर के पास जा आऊं । डॉक्टर अब सुई और दवा चलाएंगे,उसका सेवन प्रारम्भ किया जाएगा ।
डॉक्टर के नाम से ही सिहरन हो उठी । इसके पहले जितनी बार जाते, हर बार अल्ट्रा साउंड जांच होती और डॉक्टर घोषणा कर देते थे कि बच्चा अंदर ही ख़त्म हो चुका है । मेडिकल साइंस में इसे ब्लाइटेड ओवम कहा जाता है । अर्थात छह हफ्ते के बाद गर्भस्थ शिशु का विकास रुक जाता था तथा वही वह समाप्त हो जाता था । फिर यदि डॉक्टर के पास गए तो कहीं वही बात न हो जाए ।
गुलेरियाजी ने धीरज बंधाया और कहा, 'जाओ, जैसे डॉक्टर कहें, करों कोई दिक्क्त नहीं आएगी । '
डॉक्टर वही पुराने वाले जी थे । कर्नल चोपड़ा । इसके पहले तीन बार से उनका ही इलाज चल रहा था । एक प्रकार से उन्होंने निराशाजनक बात कह दी थी । डॉक्टर वो बहुत ही अच्छे थे । डरते- डरते उनके पास गए और फिर सारे कागजात देखकर उन्होंने अल्ट्रासऊंड करने की बात कह दी ।
अब जिसका डर था उसी की बात । खैर, गुलेरिया जी ने आश्वासन दिया था कि कोई गड़बड़ नहीं होगी अतः हिम्मत कर अल्ट्रासॉउन्ड के लिए तैयार हो गई ।
काफी देर तक डॉक्टर अल्ट्रासॉउन्ड में न जाने क्या देखते रहे । उनके चेहरे पर शंका का भाव देख मैं सिहर उठी । डरते- डरते उनसे पूछ बैठी, 'सर, क्या बात है । '
डॉक्टर चोपड़ा मुस्कुराए, कहा, 'तुम पंडित लोग न जाने क्या करते रहते हो । सब ठीक है। चमत्कार है । बच्चा ठीक है । मैं बस उसके हड्डियों की लम्बाई देख रहा हूँ । '
उनकी बातें सुनकर जान में जान आई । उन्होंने मेडिकल साइंस के अनुसार दवाएं लिख दीं और फिर एक माह के बाद आने के लिए कहा ।
मुझे तो मानों कुबेर का खजाना मिल गया हो । चलते चलते पूछ पड़ी, 'डॉक्टर, बेटा है या बेटी?'
डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोले, 'तुम्हें क्या चाहिए? बेटा-बेटी या संतान । जो नहीं चाहिए वह मुझे दे देना । '
उनकी बात से संतुष्ट होकर मैं अपने निवास प्रस्थान के लिए निकल पड़ी । अब तो प्रभु का चमत्कार हो गया । अगले दिन गुलेरिया जी से मिलकर उन्हें सारी बातें बताई । वो भी आश्वस्त हुए और फिर निर्देशों का पालन करने की हिदायत दी ।
आशीर्वाद लेकर हमलोग वापस अपने आवास आ गए ।
मुझे सँभालने के लिए कलकत्ता से सासूमाँ आ गई थी । धीरे-धीरे समय करीब आने लगा। इस बीच एक बार और गुलेरियाजी के पास जाना हुआ । मैंने उनसे उनके हाथ का छुआ एक कपड़ा माँगा जिसमें बच्चे को पहली बार लिया जाएगा । उन्होंने मोहन जी को दुसरे दिन बुलाया और ढेरों नए गरम कपड़े दिए । एक दिन सामन्या जांच करवाने के लिए अस्पताल गए । जाँच करने के बाद डॉक्टर ने कहा कि आज एडमिट हो जाओ । अभी तो डिलीवरी के पंद्रह दिन बाकी थे फिर डॉक्टर आज एडमिट होने के लिए कहें तो हैरानी तो होगी ही । हमने उनसे यही सवाल किया । उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'यदि डिलीवरी घर में करवानी हो तो चले जाओ । '
मजबूरी थी, रुकना ही पड़ा ।
शाम से ही आंधी तूफ़ान आने लगा । इतना भयानक तूफ़ान आया कि कई मकान ढह गए । कई पेड़ जड़ से उखड गए । फोन लाइने कट गयीं । लगभग नौ बजे प्रकाश आया । प्रकाश मेरे पति का सहकर्मी था, मेरा मुंहबोला भाई । अचानक मुझे याद यहाँ कि मेरे कमर में तो धागा अभी भी बंधा हुआ है । गुलेरियाजी से कहा था कि समय करीब आ जाए तो इसे कटवा देना । मैंने नर्स से इसे काटने के लिये कहा । धागा काटकर नर्स ने जैसे ही प्रकाश को दिया, कुछ ही मिनटों में बच्चे के किलकारी गूँज उठी । मैं तो जैसे पागल सी हो गई । विश्वास ही नहीं हो रहा था इस चमत्कार पर । सब कुछ ठीक था । नॉर्मल डिलीवरी हुई थी । सबकुछ ठीक देख डॉक्टर ने वार्ड में शिफ्ट करवा दिया । रात का समय, डिलीवरी के बाद जोरों की भूख लगी । फोन लाइने कटी हुई थीं । किसी प्रकार से सन्देश भिजवाया गया । इस बीच एक बार श्वसुर जी ने भी अस्पताल में फोन कर हालचाल ले लिये था । तबतक संतान का जन्म नहीं हुआ था । सुबह इनलोगों ने आने में देरी कर दी । भूख के मारे बुरा हाल था । सासुमाँ और मोहन जी कुछ कपडे और भोजन लेकर आये । मन तो यही कर रहा था कि जोर से इनलोगों की खिंचाई कर दूँ पर भूख ने कुछ कहने ही न दिया । बस किसी तरह से भूख मिटाया जाए फिर आगे बात होगी । ख़ुशी के मारे किसी को भी होश नहीं था ।
बरसात ऐसी हो रही थी जैसे आज नहीं तो कभी नहीं । दोपहर की बेला में मोहन जी और उनके एक मित्र सूरज सबसे पहले मिठाई का डब्बा लेकर गुलेरिया जी के पास गए, आशीर्वाद ली और वापस आये । उन्होंने बताया कि बच्चा तीन दिन तक दूध नहीं पियेगा, इसके लिए परेशां न हों । उनके आशर्वाद से जन्मे बच्चे दूध नहीं पीना चाहते हैं । शाम के समय मोहन जी ने पूरे कैम्पस में रसगुल्ले बांटा । तीन-चार दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया । इस बीच इनके सेक्शन वालों के लिए एक पार्टी का आयोजन किया गया । पार्टी का सारा आयोजन सुभाष जी के यहां हुआ । पैसे के अतिरिक्त सारी जिम्मेदारी एवं व्यवथा उनके मकान में हुई । बड़े धूम-धाम से पार्टी हुई।
इतना जबरदस्त आयोजन और उल्लास हरियाणा की इस धरती पर,इस कैम्पस में बेटी के जन्म पर शायद ही किसी ने मनाया हो । अगले दिन अन्य लोगों ने इस आयोजन के बारे में जब जाना कि बेटी के जन्म पर यह आयोजन और इसके पूर्व का रसगुल्ला वितरण था तो सभी हैरान हो उठे ।
बेटी तो हमारे लिए कुबेर का खजाना बनकर आई थी, भला इसके आगमन पर उल्लास और आयोजन क्यों न हो ।