हमारे गाँव की एक दादी थी बीरा नाम था उसका ।
वो (दादी जी) हमारे पास दिल्ली आए थे , उस समय मैं अपने पिताजी के पास दिल्ली रहता था । माता जी और मेरी बहनें गांव में ही रहती थी ।
हाँ तो क्या कह रहा था मैं , हाँ याद आया वीरा दादी जी हमारे पास दिल्ली आए थे 26 जनवरी का कार्यक्रम देखने ।
हम ने उन्हें 26 जनवरी का कार्यक्रम दिखाने ले गए थे वहाँ सारा कार्यक्रम देखने के बाद हम करीबन 5 बजे वापस कमरे में करोल बाग आ गए वहां का पता भी मुझे अब भी कंठष्ट याद है (20B/5 देश बंधु गुप्ता रोड देव नगर नई दिल्ली 110005) आज इस जगह बहुत बड़ा होटल बन गया है इस सुना है मैने ।
तो हाँ कहाँ था मैं ! हाँ तब हम कमरे पर आ गए , अगले दिन की बात है समय व्यतीत करने के लिए हमने tv चलाई ब्लैक एंड वाइट tv थी बहुत बड़ी करीबन 32 या 22 रही होगी लकड़ी का बड़ा सा फ्रेम के अंदर रहता थी tv फ्लिप्स कंपनी की हमारी नही थी , जहां मेरे पिताजी काम करते थे उनकी थी ।वो मालिक लोग अक्सर बाहर है रहते थे ।
हाँ तो फिर क्या हुआ दादी जी को हमने ड्राइंग रूम में अकेला tv चलकर यह कह कर छोड़ दिया कि दादी जी आप तब तक tv देखो और मैं तब तक खाना बनाता हूँ उस दिन फ़िल्म आ रही थी "शोले" और शोले में आग का सीन था आग की लपटें जल रही थी धुंआ ही धुंआ सीन में था , और इधर दादी जी , चिल्ला उठी बचाओ ! बचाओ ! आग लग गयी सब कुछ जलकर खत्म हो जाएगा , बेटा नाती कहाँ हो तुम !!
और हम भागे भागे दादी के पास पहुंचे ,
कहाँ !! कहाँ लगी है आग दादी जी
वो देख दिखता नही उस डिब्बे पर (दादी जी ने tv की ओर इशारा करते हुए कहा )
और हम दादी जी की इस मासूमियत पर बहुत जोर जोर से ठहाके मारकर हंसने लगे।
आज दादी जी हमारे बीच नही है किन्तु वो सदैव हमारे बीच है अपनी अमित यादों के द्वारा ।
(सच्ची घटना पर आधारित संस्मरण)
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी