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अरे यार ! ये स्वप्न भी न शुरुवात में मीठे और , अंतिम में दुखदाई ही क्यों होते है मेरे ☹️।

15 मार्च 2022

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👦अरे यार ! ये स्वप्न भी न शुरुवात में मीठे और , अंतिम में दुखदाई ही क्यों होते है मेरे ☹️।

👧ऐसा क्या स्वप्न हुआ जो मुँह लटकाए बैठे हो ?

👦तो सुण :-

▪️जैसे किसी नदी के पुल के ऊपर , बहुत से घर बने हुए थे । 

उनमें से एक घर मे हम तुम  रह रहे थे ।

▪️बहुत खुश और , हंसी खेल में दिन गुजर रहे थे ।

▪️तुम कमरे से बाहर बालकोनी में आई और , और नदी की तरफ देखने लगी ।

▪️मैं तुम्हें ढूंढता ढूंढता बालकोनी आ गया ।

अरे तुम यहाँ हो मैंने तुम्हें , कहाँ कहाँ नही ढूंढा मैंने कहा ।

▪️तुमने कहा क्यों ? क्यों ढूंढ रहे थे मुझे ?

▪️मैंने कहा अरे यार तेरे बिन जी नही लगता ।

▪️सच ? तुमने पूछा 

▪️हाँ । मैंने जबाब में कहा ।

▪️तुमने कहा , तुम मुझसे इतना प्यार करते हों ? 

▪️हाँ बहुत । मैंने कहाँ 

▪️मेरे लिए तुम और क्या कर सकते हो ? तुमने पूछा ।

▪️जो तुम  कहो , कहो तो नदी में कूद जाऊँ ? मैंने जबाब में कहा ।

▪️तुमने जबाब में कहा हाँ कूद जाओ ।

▪️मैं कूद गया "छपाक"

▪️ *तुम जोर से कहने लगी अलविदा..तंग करके रखा हुआ था अच्छा हुआ पिंड छूटा इससे ।*

▪️मैं बहने लगा...बहते बहते ठंड लगी और नींद खुल गयी । पाया कि घरवाली ने नींद से जगाने के चक्र में , बाल्टी भर पानी उड़ेल दिया था  मुझ पर ।

✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी

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रचनाएँ
रतूड़ी की डायरी✍️
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खास कुछ नही बस जो कुछ भी घटा देखा वो लिख दिया । कुछ आप बीती कुछ औरों की ।
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