👦अरे यार ! ये स्वप्न भी न शुरुवात में मीठे और , अंतिम में दुखदाई ही क्यों होते है मेरे ☹️।
👧ऐसा क्या स्वप्न हुआ जो मुँह लटकाए बैठे हो ?
👦तो सुण :-
▪️जैसे किसी नदी के पुल के ऊपर , बहुत से घर बने हुए थे ।
उनमें से एक घर मे हम तुम रह रहे थे ।
▪️बहुत खुश और , हंसी खेल में दिन गुजर रहे थे ।
▪️तुम कमरे से बाहर बालकोनी में आई और , और नदी की तरफ देखने लगी ।
▪️मैं तुम्हें ढूंढता ढूंढता बालकोनी आ गया ।
अरे तुम यहाँ हो मैंने तुम्हें , कहाँ कहाँ नही ढूंढा मैंने कहा ।
▪️तुमने कहा क्यों ? क्यों ढूंढ रहे थे मुझे ?
▪️मैंने कहा अरे यार तेरे बिन जी नही लगता ।
▪️सच ? तुमने पूछा
▪️हाँ । मैंने जबाब में कहा ।
▪️तुमने कहा , तुम मुझसे इतना प्यार करते हों ?
▪️हाँ बहुत । मैंने कहाँ
▪️मेरे लिए तुम और क्या कर सकते हो ? तुमने पूछा ।
▪️जो तुम कहो , कहो तो नदी में कूद जाऊँ ? मैंने जबाब में कहा ।
▪️तुमने जबाब में कहा हाँ कूद जाओ ।
▪️मैं कूद गया "छपाक"
▪️ *तुम जोर से कहने लगी अलविदा..तंग करके रखा हुआ था अच्छा हुआ पिंड छूटा इससे ।*
▪️मैं बहने लगा...बहते बहते ठंड लगी और नींद खुल गयी । पाया कि घरवाली ने नींद से जगाने के चक्र में , बाल्टी भर पानी उड़ेल दिया था मुझ पर ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी