यह बात उस समय की है जब मेरी शादी हुई थी सन 1993 अप्रैल में मेरी शादी हुई थी , मेरी अर्धांगनी शादी के एक २ हफ्ते बाद मुझ संग अपने मायके गयी ।
चचेरी साली का व्याह था ।
व्याह से निपटने के बाद अगले दिन मेरे गांव आना था ।
सुबह हुई स्नान किया खाना पीना हुआ और तैयारी शुरू हो गयी । धर्मपत्नी के चेहरे और जो चमक अब तक थी वो धीरे धीरे फीकी सी होने लगी ।
कारण अपने माता पिता भाई बहनों से , बिछुड़ने का दुख था । उस जमाने मे आजकी तरह मोबाइल फोन नही थे , न ही आज की तरह कोई सुख सुविधाएं ही थी ।
हमें बिदा करने के लिए , मेरे सास ससुर साले सलियाँ सब काफी दूर तक हमने छोड़ने के लिए आये हुए थे ।
करीबन आधा किलो मीटर चलने पर , ढलान वाला रास्ता था । और वहीं तक उन लोगों ने रुक कर हमें , विदाई आशीर्वाद देना था ।
तो हम सब वहां पर रुक गए , धर्मपत्नी फूट फूट कर रोने लगी । ससुराल पक्ष से सभी की आंखे नम थी रुमाल और मफलर से सभी आंखों को पोंछ रहे थे ।
माहौल बहुत ही भावुक था , मैं भी पीठ घुमाये अपनी आंखों को मनाने में लगा था कि मान जा कही किसी ने देख लिया तो ... लोग क्या कहेंगे ?
फिर मेरी चचेरी सास की एंट्री हुई जो बहुत ही भोली है जिसे दीन दुनिया मे किसी भी बात की कोई खबर नही है । यदि यूँ कहे कि दिमाग से तोड़ा अल्प है तो कोई दोराय नही होगा ।
किन्तु अपनी भतीजी यानी मेरी धर्मपत्नी को बहुत प्यार करती है ।
अचानक मेरी चचेरी सास ने एक रुपये निकाल कर मेरी पत्नी के हाथ मे रख कर बड़ी मासूमियत और भावनाओं के बसीभूत होकर कहने लगी " बिटिया ये ले एक रुपये " अब दे दिया है मैंने तुझे एक रुपये अब मत रोना ।
और सब लोग वहां पर जोर जोर से हंसने लगे , धर्मपत्नी जिसने रो रोकर अपने आंखे सुर्ख कर दी थी उसकी भी हसी का ठिकाना न रहा ।
और चचेरी सास सबके मुख पर देखने लगी आखिर ऐसा क्या हो गया । उसकी समझ मे कुछ नही आया ।
फिर मेरी सास ने अपनी देवरानी से कहा हां इसी रुपये के लिए ही तो रो रही थी बिटिया , अच्छा हुआ तु ले आयी ।
फिर क्या था चचेरी सास अपनी भतीजी को समझा रही है कि ना बेटी अब रोना नही मैंने रुपया दे दिया है । और जब भी मायके आएगी मैं हर बार तेरे लिए रूपया संभाल के रखूंगी ।
ओर अब रोना नही , मैं हूँ न तेरे साथ और गले लगा कर पुचकारने लगी ।
किन्तु जो वहां पर माहौल पहले रोने धोने वाला था वो , चचेरी सास के कारण हसीं में बदल गया था ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी