बजारवाद का बर्चश्व इस तरह से हमारे जीवन पर हावी हो चुका है कि" परिस्थिति के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल है। आज जो दिन बदलने के साथ ही महंगाई एक नए आयाम पर पहुंच जाता है, उसने आज के जन-जीवन को ब्यापक रुप से प्रभावित किया है। इसके असर का आलम यह है कि' आम आदमी को एक चीज जोङो' तो दूसरे चीज की कमी पङ जाती है। आज उपभोक्तावाद की धारा इतनी प्रबल हो चुकी है कि" यह अपने प्रबल प्रबाह में आम आदमी के जीवन की सुख- सुविधा को बहाए जा रही है। आज आम आदमी अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता है। उसे समझ ही नहीं आता है कि" अपने दु:ख को किसके सानने गाए। अपने अंतस की वेदना को किसके सामने प्रगट करें। क्योंकि' उसे कहीं से भी राहत मिलता हुआ प्रतीत नहीं होता।
आखिर' इस तरह की परिस्थिति किस प्रकार से बनी है?.प्रश्न है और इसका उत्तर समझने के लिए हमें आज के उपभोक्तावाद को समझना होगा। आज पूरा विश्व कनेक्टविटी से पूरी तरह से जुङ चुका है। ऐसे में पुजिपतियों का एक विशाल समूह पैदा हो गया है। जिसने एक तरह से मानव के जीवन को हाईजेक" कर लिया है। आज मानव के जीवन पर पूरी तरह से बाजार" का नियंत्रण स्थापित हो चुका है। ऐसे में मल्टी-नेशनल कंपनियां अपने सुद्ध प्रोफीट का ही आग्रह रखती है। इसके लिए उसने वस्तुओं की ब्रांडिंग कर दी है और ब्रांड के नाम पर वस्तुओं की कीमत अपने लाभ के अनुसार निर्धारित कर दिया है। आज वस्तुओं की क्वांटिटि घटती जा रही है और क्वालिटी के नाम पर कीमत बढता जा रहा है।
एक बात और' बेतहाशा बढते कीमतों की सब से अहम बात है कि" आज जनसंख्या का तेजी के साथ फैलाव हुआ है। मानव वस्तिया तेजी के साथ बढ रही और विकसीत हो रही है। किन्तु" संसाधन तो सीमित ही रहने बाला है। ऐसे मांग ज्यादा बढेगी और वस्तुओं की उपलब्धता कम होगी, तो स्वभाविक ही है कि" कीमत का ग्राफ बढेगा। साथ ही' आज मानव की क्रय शक्ति में वृद्धि हुआ है और दूसरा पहलू ब्रांड, बस अजीब सी अफङा- तफङी मची हुई है संसाधनों को पाने के लिए। बस' मानव के इस कमजोरी को बाजार वादी नीति के प्रोत्साहक अच्छी तरह से समझते है। बस कीमत बढाए चले जाते है और कहीं शोर- शराबा हो, तो अपनी सफाई में कह देंगे कि" क्रूड वायल और शेयर- बाजार की रफ्तार के कारण ही ऐसा हो रहा है। भई, हम तो मजबूर है, कुछ कर नहीं सकते।
माना कि" क्रूड वायल से आज का जीवन जरुर प्रभावित होता है। यह भी मानने बाली बात है कि" बाजार पर शेयर बाजार का प्रभुत्व है। परन्तु....यह कहना बिल्कुल ही जायज नहीं कि" महंगाई का बेतहाशा बढना सिर्फ इसी से प्रभावित है। हां, सत्य है कि" महंगाई का सब से बङा पहलू पुर्ति और मांग है। आज उपभोक्तावाद की नीति ने मानव जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कहा जा सकता है कि" बेतहाशा' बढती हुई महंगाई से जीवन इस तरह से प्रभावित हो चुका है कि' मानव बस राहत की आशा में चारों तरफ देखता रहता है। परन्तु.... उसके मन की आशाएँ सिर्फ मृगतृष्णा के समान ही प्रतीत होता है, क्योंकि' उसे राहत मिलने बाला नहीं है।
हां, आज सरकार भी जैसे इस ओर से बेखबर सी लगती है। लगता है कि" सरकार जन-जन के मुद्दे से बेखबर होकर जैसे कान में तेल डालकर सो रही है। हां, सरकार करे भी तो क्या? आज बाजार वाद का प्रभाव उस पर भी हावी है। वैसे भी उसे राज-पाट चलाने के लिए प्रचूङ धनराशि की आवस्यकता होती है और धन आएगा कहां से?...धन का तो एक विशाल श्रोत इसी बजार से प्रबाहित होकर सरकार के पास तरलता के रुप में पहुंचता है। ऐसे में भला' सरकार इन पुंजीपतियों पर लगाम लगाने के विषय में सोच भी नहीं सकती। साथ ही विपक्छ' वह भू तो इस बात से अनभिग्ग नहीं। वह भी तो जनता के इस मुद्दे पर मौन रहने में ही भलाई समझता है। क्योंकि' जानता है कि" एक दिन उसको भी सत्ता में आना है। अब भला ऐसे में कोई बाजार वाद से द्वेष केसे पाल सकता है।
किन्तु" अपने-आप को ठगा हुआ सा जन मानस भला क्या करें? प्रश्न गंभीर है और इसका उत्तर यही होगा कि" वह अपने जरुरतों को सीमित करें और इस उपभोक्तावादी ब्यूह से निकल जाने का प्रयास करे। साथ ही, जिसके पास साधन- संसाधन है, अपने जरुरतों की वस्तुएँ खुद ही बनाए। केबल एक यही रास्ता है, जिससे हम महंगाई रुपी डायन से लङ तो सकते है। स्वभाविक है, जब मांग में कमी होगी और वस्तु की प्रचुरता पाई जाएगी, तो इन कंपनियों को कींमत भी नियंत्रण में करना पङेगा। हम और आप' जब ठान लेंगे, तब कुछ हद तक इस महंगाई रुपी दानव से कुछ हद तक मुकाबला कर के कुछ राहत पा सकेंगे।
क्रमश:-
मदन मोहन मैत्रेय की अन्य किताबें
नाम - मदन मोहन "मैत्रेय",
पिता - श्री अमरनाथ ठाकुर,
निवास स्थान - तनपुर, बिहार,
शिक्षा - बी. ए.,
आप का जन्म बिहार प्रांत के दरभंगा अनु मंडल स्थित रतनपुर गांव में साधारण परिवार में हुआ है। इनकी शिक्षा–दीक्षा भी कठिन आर्थिक परिस्थितियों में संभव हो सका है। लेकिन इनमें लिखने की ललक बचपन से थी, जिसे ये समय के साथ ही परिमार्जित करते चले गए और ईश्वर की कृपा से सन ई. २०२२ में इनकी चार रचना प्रकाशित हो गई, जिसमें से तीन उपन्यास एवं एक काव्य संग्रह है। इनकी सभी रचनाएँ अमेजन एवं फ़्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
इनकी प्रमुख रचना-:
फेसबुक ट्रैजडी (उपन्यास) - यह कहानी आँन लाइन चेटिंग के दुष्परिणाम पर आधारित है। साथ ही इसमें अपराध, छल, प्रेम, घृणा, कर्तव्य और अपराध का विस्तृत वर्णन किया गया है।
ओडिनरी किलर (उपन्यास)- यह उपन्यास पुरुष वेश्या (जिगोलो) पर आधारित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रतिशोध की भावना कितनी भयावह होती है। साथ ही अपराधी जब अपराध करने पर उतारू हो जाता, सिस्टम के लिए किस प्रकार से सिरदर्द बन जाता है, उसको बताया गया है।
तरूणा (उपन्यास) – यह कहानी लिंग परिवर्तन(जेंडर चेंज) पर आधारित है। इसमें प्रेम है, घृणा है, अपराध है, तो प्रतिशोध भी है। इस कहानी में समाज में छिपे हुए कुछेक अपराधी प्रवृति के सफेदपोश का चरित्र चित्रण किया गया है।
अरुणोदय (काव्य संग्रह) - यह कविता की पुस्तक है और इसमें जितनी भी कविताएँ है, प्रेरणा देने वाली है। हतोत्साहित हृदय को फिर से नव ऊर्जा से संचारित कर दे, ऐसी कविताएँ हैं।
साथ ही आप की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं एवं एंथालाँजी में प्रकाशित होती रहती है। आप जो भी रचना करते है, वर्तमान परिस्थिति, सामाजिक विषय, रोचकता और युवा के जरूरत और महत्व को केंद्र में रखते है। इसलिये इनके कलम से समाज के अलग-अलग विषयों पर रचनाएँ की जाती है और आप अभी “रति संवाद” नाम के उपन्यास पर कार्यरत है।
इनकी रचित रचित-रचनाएँ और भी है, एकल काव्य संग्रह “जीवन एक काव्य” धारा एवं “वैभव विलास-काव्य कुंज” जो पेंसिल पब्लिकेशन पर प्रकाशित हुई है। दूसरी कविताएँ “निम्न एन्थोलाँजी” डेस्टिनी आँफ द सोलेस्टिक एवं “अल्फाजों की उड़ान” के साथ ही “बाल रंजन” में प्रकाशित हुई है। साथ ही विभिन्न समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है।
हम आशा और विश्वास करते है कि आप पाठकों का प्यार एवं स्नेह इनसे जरूर जुड़ेगा।
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