पहले के जमाने में "नशा का इतना प्रचलन नहीं था। बस वही लोग नशा करते थे, जिनके ऊपर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं होती थी, अथवा जो सामर्थ्यवान होते थे। उसमें से भी अधिकांश तो इसका विरोध ही करते थे। पहले नशा" को स्टेट सिंबोल के रुप में भी देखा जाता था, जैसे' राजा और महराजा, जमींदार और आँफिसर, इस प्रकार के लोग नशा करते थे। ऐसे में आम जन इससे दूर रहने की कोशिश करते थे। साथ ही यह भी बात था कि" यह सभी के लिए उपलब्ध भी नहीं होता था। दूसरे' समाज में नशा करने बालो को हेय दृष्टि से देखा जाता था, इस कारण से भी लोग इससे दूरी बना कर रहते थे।
किन्तु" आज की परिस्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है। आज अगर कोई नशे के गिरफ्त से आजाद है, तो उसे भाग्यशाली समझा जाएगा। क्योंकि' बुढे और जवानों को तो छोङिए, आज किशोर और बच्चे भी धङल्ले से नशा" का सेवन करते है। अब वो शहर और गांव की अलग बात रही ही नहीं, आज तो इसे सेवन करने बाले बेखौफ हो गए है। इसमें भी बुरी बात यह है कि" सरकार ही इस धंधे को बढावा देती है, क्योंकि' सरकारी खजाने को इससे मोटी कमाई होती है। अब सरकार को बजट के लिए धन जुटाना है, तो भला इस व्यवसाय को बंद कर के अपने पैरों पर कुल्हाङी क्यों मारे।
यह तो हुई सरकार की बात' परन्तु आज समाज का हर एक वर्ग इस "नशे रुपी दैत्य के चंगुल में क्यों फंसता जा रहा है? यह विकट प्रश्न है और विकराल भी। क्योंकि' नशे का प्रचलन तेजी से बढता जा रहा है। अब तो गांव में भी आपको धङल्ले से चिलम फुंकते मिल जाएंगे। सिगरेट का धुआँ और भांग की गोली खाना तो आम बात है। उसमें भी अगर कोई आयोजन हो तो शराब पी कर जम कर बबाल काटा जाता है। इतना ही नहीं, नशे का प्रचलन इतनी तीव्र गति से बढ रहा है कि" अब गांव देहात में भी अफीम, कोकीन, चरस और ड्रग्स जैसे मादक द्रव्य मिलने लगे है।
अब आते है मुख्य बिंदु पर कि" नशे का प्रचार-प्रसार इतनी तीव्र गति से किस प्रकार से संभव हो सका है। तो स्पष्ट कहा जा सकता है कि" एक तो इस मामले में सरकार की ढुल-मुल रवैया और भ्रष्ट आँफिसरों की कारगुजारी जिम्मेदार है। तो दूसरी तरफ इलेक्ट्रोनिक संसाधन। आज-कल मीडिया का बहुत ही बोलबाला है, उसमें भी सोसल मीडिया का एक तरह से समाज पर वर्चश्व स्थापित हो चुका है। दूसरी तरफ' मोबाइल हर घर में और हर एक हाथ में आज की तारिख में उपलब्ध है। ऐसे में किशोर और बच्चे रील" देखते है और रियल लाइफ में उसको उतारने की कोशिश करते है।
अब ऐसा भी नहीं है कि" फिल्मी दुनिया और एड एजेंसी बाले इसके जिम्मेदार नहीं है। हां, वे भी इस कुकृत्य के बराबर के ही भागीदार है। जिस तरह से फिल्मों में मोस्ट पर्सन को नशा करते हुए दिखाया जाता है, वह क्या कम करके आंका जा सकता है। तो जबाव होगा' बिल्कुल भी नहीं। साथ ही एड एजेंसी धङल्ले से विभिन्न तरह के नशे" का एड बनाते है और चैनल बाले बेखौफ होकर इसे दिखाते है। अब उनको इससे क्या मतलब कि" समाज पर इसका क्या प्रभाव होता है।
बहुत ही विकट स्थिति है और दावे के साथ कहा जा सकता है कि" आने बाली पीढी का सर्वाइव करना इतना सहज नहीं होगा। ऐसे में जरुरत है कि" हम और आप संभले। इस मुद्दे पर गहनता से विचार करें और इसके निराकरण के लिए कारगर उपाय ढुंढे।
क्रमश:-
मदन मोहन मैत्रेय की अन्य किताबें
नाम - मदन मोहन "मैत्रेय",
पिता - श्री अमरनाथ ठाकुर,
निवास स्थान - तनपुर, बिहार,
शिक्षा - बी. ए.,
आप का जन्म बिहार प्रांत के दरभंगा अनु मंडल स्थित रतनपुर गांव में साधारण परिवार में हुआ है। इनकी शिक्षा–दीक्षा भी कठिन आर्थिक परिस्थितियों में संभव हो सका है। लेकिन इनमें लिखने की ललक बचपन से थी, जिसे ये समय के साथ ही परिमार्जित करते चले गए और ईश्वर की कृपा से सन ई. २०२२ में इनकी चार रचना प्रकाशित हो गई, जिसमें से तीन उपन्यास एवं एक काव्य संग्रह है। इनकी सभी रचनाएँ अमेजन एवं फ़्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
इनकी प्रमुख रचना-:
फेसबुक ट्रैजडी (उपन्यास) - यह कहानी आँन लाइन चेटिंग के दुष्परिणाम पर आधारित है। साथ ही इसमें अपराध, छल, प्रेम, घृणा, कर्तव्य और अपराध का विस्तृत वर्णन किया गया है।
ओडिनरी किलर (उपन्यास)- यह उपन्यास पुरुष वेश्या (जिगोलो) पर आधारित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रतिशोध की भावना कितनी भयावह होती है। साथ ही अपराधी जब अपराध करने पर उतारू हो जाता, सिस्टम के लिए किस प्रकार से सिरदर्द बन जाता है, उसको बताया गया है।
तरूणा (उपन्यास) – यह कहानी लिंग परिवर्तन(जेंडर चेंज) पर आधारित है। इसमें प्रेम है, घृणा है, अपराध है, तो प्रतिशोध भी है। इस कहानी में समाज में छिपे हुए कुछेक अपराधी प्रवृति के सफेदपोश का चरित्र चित्रण किया गया है।
अरुणोदय (काव्य संग्रह) - यह कविता की पुस्तक है और इसमें जितनी भी कविताएँ है, प्रेरणा देने वाली है। हतोत्साहित हृदय को फिर से नव ऊर्जा से संचारित कर दे, ऐसी कविताएँ हैं।
साथ ही आप की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं एवं एंथालाँजी में प्रकाशित होती रहती है। आप जो भी रचना करते है, वर्तमान परिस्थिति, सामाजिक विषय, रोचकता और युवा के जरूरत और महत्व को केंद्र में रखते है। इसलिये इनके कलम से समाज के अलग-अलग विषयों पर रचनाएँ की जाती है और आप अभी “रति संवाद” नाम के उपन्यास पर कार्यरत है।
इनकी रचित रचित-रचनाएँ और भी है, एकल काव्य संग्रह “जीवन एक काव्य” धारा एवं “वैभव विलास-काव्य कुंज” जो पेंसिल पब्लिकेशन पर प्रकाशित हुई है। दूसरी कविताएँ “निम्न एन्थोलाँजी” डेस्टिनी आँफ द सोलेस्टिक एवं “अल्फाजों की उड़ान” के साथ ही “बाल रंजन” में प्रकाशित हुई है। साथ ही विभिन्न समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है।
हम आशा और विश्वास करते है कि आप पाठकों का प्यार एवं स्नेह इनसे जरूर जुड़ेगा।
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