shabd-logo

धर्म....विचार और धारना से परे और इसका प्रतिरोध.......

3 जनवरी 2023

17 बार देखा गया 17
भारत भूमि युगों से ऋृषि- मुनियों का देश रहा है। इस धरा भूमि पर ऐसे-ऐसे तपस्वी हुए है, जिन्होंने सिर्फ तपस्या ही नहीं की है, बल्कि" मानव सभ्यता के उन्नयन और विकास के लिए अग्गान- विग्गान के अलोकिक केंद्र को मानवों को उपहार स्वरुप प्रदान किया है। आज भले ही, पश्चिमि सभ्यता अथवा' उनके केंद्र सत्ता द्वारा कहा जा रहा हो कि' जितनी भी खोजे की जा रही है, उन्होंने की है। परन्तु....उनका कहना कदापि भी उचित नहीं कहा जा सकता। माना कि" आज मीडिया का युग है और मीडिया जो कहे, वह सत्य माना जाता है। परन्तु....आज तक जितनी भी खोजे की गई है, अथवा की जा रही है, उसे हमारे मनिषियों ने हजारों वर्ष पहले सत्यापित कर दिया था।
यद्धपि' आज यह चर्चा का विषय है ही नहीं, परन्तु....जिसकी चर्चा हमें शुरु करनी है, उसके संदर्भ में इन बातों को रखने की जरुरत थी। अब" धर्म है क्या?....प्रश्न गुढ है और यथार्थ को लेकर भी और इसका सहज उत्तर होगा कि" जिसे हम धारन कर सके। जी हा' जीवन को उपयुक्त तरिके से जीने की प्रक्रिया को ही धर्म कहते है। हम जो आचरण करते है, दूसरों के प्रति व्यवहार और विचार रखते है, वही धर्म और अधर्म की श्रेणी में विभाजित हो जाता है। हमारे मनिषियों ने मानव को सहज रुप से जीने के लिए एक रेखाएँ खींची, एक नियम बनाया और उसे धर्म नाम दिया। क्योंकि" वह मानव को धारन करने के लिए बनाया गया था।
धर्म का स्वरुप इतना जटिल भी नहीं कि" हम इसे समझ ही नहीं पाए और यह इतना सहज भी नहीं कि" बिना प्रयास के ही इसे समझ जाए। तभी तो' इसकी नकल कर के अनेको धर्म की स्थापना की गई। परन्तु....उसे धर्म कहा ही नहीं जा सकता' क्योंकि" प्रकृति का नियम है कि" सृष्टि के सभी जीवों के साथ समान रुप से व्यवहार करती है। बस' जो प्रकृति के इन गुणों को अपने हृदय में समेटे हुए है, वही धर्म है। क्योंकि" मानव में मानवीय गुणों की आवस्यकता होती है और मानवीय गुण है, जीव जगत के प्रति दया और करुणा का भाव रखना। अपने वृति में परोपकार के गुणों का समावेस करना।
धर्म सिर्फ धारना के द्वारा ही न तो सत्यापित किया जा सकता है और न ही विचार" की उपाधी में समेटा जा सकता है। ईश्वर की सकल सृष्टि बनाई हुई है और इस सृष्टि में हम भी है। इस कारण से उनका स्मरण करना, उनके नामों का गुणानुवाद करना और अपने दैनिक जीवन में ईश्वर की अनुभूति करना, यह दायित्व है, जिसका निर्वहन करना जरुरी है। परन्तु...धर्म यही तक सिमटा हुआ नहीं है। धर्म" सरल होते हुए भी अति गुढ है और धारन करने योग्य होते हुए भी विशाल और विराट है। इसे परिभाषा के द्वारा न तो पन्नों पर उकेरा जा सकता है और न ही इसकी व्याख्यां पूर्ण हो सकती है।
आज' जिस तरह से धर्म" को सिर्फ सनातन का अंग समझ कर इसका उपहास किया जाता है, वह कदापि उचित नहीं। जिस तरह से धर्म के विरुद्ध प्रोपगेंडा चलाए जाते है और इसके विरोध में नैरेटिव" तैयार की जाती है, उसे मानव का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। माना कि" सनातन संस्कृति और धर्म' दोनों अभिन्न है। एक के बिना दूसरे की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। परन्तु....धर्म...तो सनातन संस्कृति से भी विशेष, विशाल और विराट है। मैंने पहले ही कहा कि" धारन जो करने योग्य है, वही धर्म है। जो हमें जीवन जीने के लिए सही राह बताएऔर जीव जगत के प्रति प्रेम सिखाए, वही धर्म है।
आज- कल, कुछ विशेष व्यक्ति, कुछ विशेष संस्था के द्वारा धर्म मतलब कि" हिन्दू' अथवा हिन्दू धर्म की उपाधी से इसे अलंकृत किए हुए है। मैनें पहले ही तो कहा है कि" धर्म एक ही है, जो युगों से चला आ रहा है और वो है मानव धर्म' जीव जगत के प्रति करुणा और प्रेम के प्रवाह रुपी भाव का नाम है धर्म। जो' सनातन संस्कृति का अंग है। धर्म सिर्फ एक संस्था या संस्कृति का ही बोध नहीं कराती, अपितु जीव जगत के लिए निर्धारित नियमों का अनुमोदन करती है। धर्म सिर्फ मंदिर, मस्जिद या गिरिजाघरों में कैद होकर रहने बाली वस्तु का नाम नहीं है और जब तक हम यह समझ नहीं जाते, मानवव कहलाने योग्य नहीं समझे जा सकते।
जब तक हम संप्रदाय अथवा संस्थाओं में उलझे रहेंगे, धर्म" के तत्व को पाने से दूर ही रहेंगे। साथ ही' सिर्फ विरोध या प्रतिरोध करने से ही इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता। साथ ही गर्व के साथ कह सकता हूं कि" हमारी सनातन संस्कृति धर्म के इस भाव का सहज ही अनुमोदन करती है। हमारी संस्कृति' इस बात को सहज ही स्वीकारती है कि" धर्म" जगत के कल्याण की धारना को घोषित करती है। मानव के सकल विकास की बातें कहती है और सहज ही जीवन से तादात्म्य भी बिठाती है। धर्म' विसुद्ध भाव है हृदय का, जो सकल सृष्टि के लाभ की घोषणा करती है।










क्रमश:-
















50
रचनाएँ
चिंतन शिविर
0.0
यह एक आलोचनात्मक एवं व्यंगात्मक लेखन है। जिसमें क्रमानुसार विषयों को सहेजा गया है। इस पुस्तक में कोशिश की गई है कि यथार्त की जितनी ज्यादा समावेश हो सके, किया जाए। जिससे विषय वस्तु की उपयोगिता भी बनी रहे और पढने में रोचकता की भी उपलब्धि हो। मदन मोहन" मैत्रेय
1

अटर-पटर

18 अगस्त 2022
4
1
0

अजी मैं बोलता हूं न। बोलने की बात है, तो बोलता हूं, बोलता रहूंगा, निरंतर ही। मेरी मर्जी है कि मेरे मन में आएगा तो बोलूंगा ही,.....परन्तु सुनकर आप समझने की कोशिश नहीं करें, तो आपकी मर्जी।वैसे भी जनाब!.

2

हल्ला बोल

19 अगस्त 2022
0
0
0

बोलने की ही बात है, तो हम हल्लाबोल करेंगे। क्योंकि यह तो आम प्रचलन हो चुका है। कोई ऐसे तो सुनने को तैयार नहीं होता। हां, हल्लाबोल एक ऐसा प्रसाधन है, जिसके द्वारा आप किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सक

3

लाग लपेट

20 अगस्त 2022
1
1
2

अब तो कहते-कहते यहां तक पहुंचा हूं, जहां लाग-लपेट के बिना कह सकूं, न तो इतनी धैर्य रखता हूं और न ही कहने की जरुरत समझता हूं।.....अजी! लेखक हूं, लिखूंगा ही, वह भी लाग-लपेट लगा कर। अजी बिना लाग-लपेट के

4

आलोचना

22 अगस्त 2022
2
1
0

मैं भी तो इस शब्द" आलोचना" की महता समझता हूं। वास्तव में यह बहुत ही शक्तिशाली शब्द है, जो कि "किसी के चरित्र पर प्रहार करने के लिए अति-उत्तम हथियार के रुप में प्रयोग होता है। अब ऐसा भी नहीं है कि इसकी

5

प्रपंच

24 अगस्त 2022
0
0
0

आखिरकार इसी के बल पर तो दुनिया टिकी है।आप विश्वास नहीं करोगे, परन्तु सत्य कहूं,....तो कितना सुंदर शब्द है "प्रपंच"। आखिर सुंदर, मनोहर एवं स्व हित को साधने के लिए उत्तम हथियार। आप भी न!.....भोले मत बनि

6

आज-कल

25 अगस्त 2022
0
0
0

बात की बात है और इसका ही तो झंझट है, जो आज-कल हो रहा है। वैसे तो यह शब्द ही अपने आप में भिन्न है, जिसके कई अर्थ हो सकते है। वैसे भी खुद की मर्जी से अपने सुविधा के अनुसार किसी बातों का अर्थ निकाल लेना,

7

शब्दों की महिमा

2 सितम्बर 2022
0
0
0

बात महिमा की है, तो शब्दों की महिमा जगत में सब से न्यारी है और इसकी महिमा भी अतुलनिय है। आप अपने शब्दों में जितनी ज्यादा मात्रा में चाटुकारिता की चाशनी लपेटेंगे, आप उतने ही बङे महारथी कहलाएंगे और.....

8

दिवा स्वप्न.....

2 दिसम्बर 2022
0
0
0

जीवन का अपना एक अलग रंग है, अपना एक अलग स्वभाव है। यह अपनी ही गति से निरंतर ही आगे की ओर बढता रहता है। परन्तु....मानव मन कभी-कभी दु:ख के भार तले दब कर हताश होने लगता है। सुख के मालपुए को खाना तो मनुष्

9

समस्या और समाधान.......

3 दिसम्बर 2022
0
0
0

जब जीवन है, तो समस्याएँ भी होगी। जीवन के साथ ही समस्या कदम से कदम मिला कर चलती है। परन्तु...आज- कल समस्या का समाधान करने की बात तो दूर है, हम इसका सामना करने को भी तैयार नहीं होते। अखिल सृष्टि में जीत

10

मन: व्यथा का अवलोकन एवं मन: स्वाभ.......

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

आजकल एक खास प्रचलन हो गया है कि" मन: व्यथा होने पर जब तक एक-दो के सामने उसकी परिचर्चा नहीं कर लेते, शांति मिलती ही नहीं। यह आज का स्वभाव ही हो गया है कि" हृदय में वेदना की अनुभूति होने से पहले ही उसे

11

चेतना और मनोभावना.....एकाग्रता की इच्छा......

5 दिसम्बर 2022
0
0
0

जीवन कभी-कभी तो मानव को चमत्कार दिखलाती है। उसने जिस चीज की कामना नहीं की होती, वह उसको प्राप्त होने लगता है, तो कभी-कभी उसके हाथों से रेत की तरह फिसलता हुआ सा प्रतीत होता है। उसे लगने लगता है कि" जैस

12

नूतनता.....अभिप्राय और प्रयोजन.....

6 दिसम्बर 2022
0
0
0

जीवन में हमेशा एक सा ही स्वभाव रहे, एक सा ही रस रहे और जीवन एक ही ढर्रा पर चलता रहे, तो सब कुछ नीरस सा लगेगा। मन में उकताहट होने लगेगी और जीवन बोझ सा लगने लगेगा। जो बस काटना है, इसलिये ही जी रहे है, इ

13

बलवती इच्छा'....अतिशय का भार

7 दिसम्बर 2022
0
0
0

मानव जीवन में इच्छाएँ होना अनिवार्य है। स्वाभाविक ही है कि" इच्छाएँ ही मानव को प्रेरित करता है रचनात्मक कार्य करने के लिए। जब तक उसके अंदर इच्छाएँ जागृत होती है, तभी तो वो कुछ करने के लिए उद्धत होता ह

14

विडंबना.....विकारों की उत्पति और मन का विचरना.......

8 दिसम्बर 2022
0
0
0

मानव मन निरंतर गतिशील रहता है, निरंतर ही अपने लिए एक नए आनंद की खोज में लगा रहता है। उसे हर पल एडवांचर का अनुभूति करने की अभिलाषा रहती है। वह चाहता है कि" उसका पल-प्रति पल आनंद के सागर में हिलोरे लेता

15

अहंकार....और इसके दूरगामी परिणाम.....

9 दिसम्बर 2022
0
0
0

ऐश्वर्य में मद" स्वाभाविक रुप से विद्यमान है। मानव जब उन्नति के पथ पर अग्रसर होने लगता है, तो कितने ही प्रकार के अंतर- द्वंद्व से घिर जाता है। उसके मन में होने लगता है कि" अब वो श्रेष्ठता की पगडंडियों

16

आधुनिकता.....रचनात्मकता और दिखावे का सैलाब........

10 दिसम्बर 2022
0
0
0

समय के साथ बदलाव होता है और यही समय का मांग भी है। यह समय की प्रक्रिति है कि" जैसे-जैसे आगे की ओर बढता है, बदलाव करता जाता है। नियम भी यही है कि" मानव समय के साथ निरंतर ही प्रगति करता चला जाता है। समय

17

स्नेह....सहृदयता और संबंध......

11 दिसम्बर 2022
0
0
0

किसी भी रिश्ते में स्नेह का होना अति आवश्यक है। बिना स्नेह के कोई भी रिश्ता खोखले डिब्बे की तरह है। अगर डिब्बा अगर खाली हो, तो उसपर हल्का भी प्रेसर डालिए, तो अजीब सा स्वर निकलेगा, जो कि" कर्कश होगा, क

18

पश्चिमी सभ्यता का आकर्षण.....और भारतीय दर्शन....

12 दिसम्बर 2022
0
0
0

चिंतन शिविर" में विचारों की श्रृंखला अनवरत रुप से आगे की ओर बढ रही है। परन्तु.... इस बात की भी चर्चा जरूर होनी चाहिए कि" पश्चिमी सभ्यता के प्रति हम किस तरह दीवाने है और अंधा-अनुकरण करने को लालायित रहत

19

जीवन्त भाव....जीवन से अनुबंध और आधार......

13 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज-कल कुछ ज्यादा ही भागदौङ की स्थिति बन गई है। जिसे देखो, वही टेंशन में डुबा हुआ मिलेगा। आज-कल जिसे देखो, वहीं परेशान नजर आएगा। हर तरफ आफङातफङी का माहौल सा बन गया है। खासकर आज के युवा" जो कि" अभी तो स

20

मानव मन' अभिलाषा और ......उतार-चढाव.......

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

यह धरा भूमि आश्चर्यों से भरी हुई है। कदम-कदम पर नित नए आश्चर्यों से हम सामना भी करते है। उसमें सब से बड़ा आश्चर्य है, तो वह मानव मन है। क्योंकि' भले ही विज्ञान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो, परन्तु.....इ

21

स्वार्थ भाव....अपने और पराए का बोध.......

15 दिसम्बर 2022
0
0
0

एक समय था, जब समाज में किसी को कोई भी तकलीफ होती थी, तो पूछ-परछ करने बालों का तांता लग जाता था। आज-कल भी हाल-चाल लेने बाले बहुतेरे मामले में जुटते है। परन्तु.....पहले जैसी बात रही नहीं। पहले समाज में

22

नशा....इसके शिकार और इसका प्रभाव......

16 दिसम्बर 2022
0
0
0

पहले के जमाने में "नशा का इतना प्रचलन नहीं था। बस वही लोग नशा करते थे, जिनके ऊपर किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं होती थी, अथवा जो सामर्थ्यवान होते थे। उसमें से भी अधिकांश तो इसका विरोध ही करते थे। पहले

23

आज की शिक्षा....नकारात्मक पद्धति और बोझ......

17 दिसम्बर 2022
0
0
0

शिक्षा मानव के लिए अत्यंत ही जरूरी है। क्योंकि' बिना शिक्षा के मानव और जानवर में किसी प्रकार का अंतर नहीं रह जाएगा। शिक्षा ही वह अस्त्र है, जिसके द्वारा मानव समाज में रहने योग्य बन पाता है। समाज के सा

24

समय के साथ बदलाव' मनुष्य का खान-पान और विचार बदलना.......

18 दिसम्बर 2022
0
0
0

समय के साथ बदलाव निश्चित है, जिसे कोई भी नहीं रोक सकता। यही तो सृष्टि का नियम है कि" दिन हुआ है तो रात अवस्य ही होगा। ऋृतुए भी क्रमश बदलती ही रहती है। ठंढे के बाद बसंत, इसके बाद ग्रीस्म काल और फिर बरस

25

समाज...परस्पर स्नेह और विश्वासघात......

19 दिसम्बर 2022
0
0
0

मनुष्य स्वाव से चंचल जरुर है' किन्तु" स्थिर दिखने की हमेशा ही कोशिश करता है। बस इसी स्थिरता को कायम रखने के लिए समाजिक व्यवस्था है। बस' इतना ही समझ लीजिए कि" बिना समाज के मनुष्य का न तो विकास ही संभव

26

रिश्वत का जाल...पोषण और विडंबना.......

20 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज-कल जिस तरह से भ्रष्टाचार का बोलबाला है, इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि' मानवता अपने विनास की ओर अग्रसर हो चुकी है। मैं यह ऐसे ही नहीं कह रहा हूं, आप सरकारी महकमें में किसी विभाग में जाइए, अ

27

अश्लीलता....मीडिया और मनोवृति........

21 दिसम्बर 2022
0
0
0

मानव जीवन ही नहीं, अखिल सजीव जगत ही सृष्टि के विकास के भागरुप मैथून" करता है। मैथून' करना प्राकृतिक है और ईश्वर ने सहज ही इसकी वृति और गुण इस जगत के जीवों को प्रदान किया है। क्योंकि' अगर मैथून की क्रि

28

आज का समय.....तनाव और समस्याएँ.....

22 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज के समय में इंसान एक तरह से उलझकर रह गया है। लग रहा है कि" कहीं भीङ में खो गया है। उसके चेहरे की माशुमियत और उसके चेहरे की मुस्कराहट' लगता है कि" किसी ने जबरदस्ती छीन लिया हो। हां, गांव-घर में तो फि

29

दु:ख का एहसास'.....खुद की कमी और जीवन का बोझ.....

23 दिसम्बर 2022
0
0
0

पीछे मैंने चर्चा किया था कि" आज मानव किस तरह उलझ गया है और वह खुद को ही समय नहीं दे पा रहा। काम का बोझ का रोना-रोना और तनाव में जीवन को गुजाङना, आज के अधिकांश मानव की दिनचर्या सी हो गई है। बस' तनाव ही

30

आज-कल.....युवा और हिरोपंती.......

24 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज-कल मीडिया का बोलबाला है। इसकी ही चलती है और ऐसे में विभिन्न सोस्यल साइटो' ने जिस तरह से युवाओं को दिवास्वप्न दिखाया है न, वह काफी भ्रामक है। आज-कल जो रील बनाए जा रहे है, वह कहने लायक ही नहीं। आज-कल

31

आज-कल....राजनीति और समाज

25 दिसम्बर 2022
0
0
0

पहले की अपेक्छा अभी बहुत सा बदलाव हुआ है। पहले के समाज, उनका रहन-सहन और उनकी व्यवस्था और आज का समय। जमीन-आसमान का बदलाव हो गया है बीते हुए कल और आज में। पहले' बहुतों की संख्या थी, जो अभाव में जीवन बित

32

पारिवारिक दायित्वों का अभाव और आज का युवा......

26 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज की स्थिति को बहुत ही विषम कहा जा सकता है। क्योंकि ' आज यह कहना अति मुश्किल है कि" आज के युवा चाहते क्या है?....यह सिर्फ प्रश्न ही नहीं है, साथ ही चुभता हुआ कांटों का सेज है, जो समाज को, परिवार को औ

33

वृद्धों के प्रति उपेक्छा का भाव और परिवार का संकुचित होना.......

28 दिसम्बर 2022
0
0
0

एक समय था' जब परिवार संयुक्त रुप से रहा करता था। संयुक्त परिवार से मतलब' चार-पांच परिवारिक मुख्य के परिवार का एक ही आंगन में होना। मतलब कि" बङा परिवार स्टेट सिबौल समझा जाता था। ऐसे में परिवार में हमेस

34

उलझे-सुलझे वैन और मेरा अट्टहास.......

29 दिसम्बर 2022
0
0
0

जब बोलना ही है, तो अपने मन की बोलूंगा, अपने मन की ही लिखूंगा, भले ही किसी को पसंद हो या नहीं। अब किसी के पसंद और नापसंद की बातों से अगर प्रभावित होने लगा तो' फिर मैं अपनी मन की कर कैसे पाऊँगा और अपने

35

सनातन संस्कृति.....विचार तथ्य और आधार......

30 दिसम्बर 2022
0
0
0

सनातन का मतलब होता है' जो कि" अगम्य हो' सत्य हो और स्वत ही उदित हुआ हो। जो स्व भाव से प्रगट हुआ हो, न कि" किसी के द्वारा स्थापित किया गया हो। वह संस्कृति' जो कि" वोधगम्य हो' जो सहज ही आत्म सात क

36

ईर्ष्यालु प्रभाव का बोलबाला और फंदेबाजी.....

31 दिसम्बर 2022
0
0
0

आज का समय बहुत ही विचित्र हो चुका है। आज के समय में खुद के दुःख से ज्यादा दूसरे के सुख से दुःखी होने बालों की संख्या बढ गई है। पहले' जो समाज में एक दूसरे के प्रति प्रेम था, अपनापन था, वह कहीं खो सा गय

37

जीवन के प्रति उदासीनता का बोध.......

1 जनवरी 2023
0
0
0

जीवन क्या है?....यह गुढ प्रश्न है। क्योंकि" अखिल जगत ही जीवन का बोध करता है। परन्तु....जीवन है क्या?...इसे आज तक कोई समझ ही नहीं पाया है। जीवन जीवात्मा का केंद्र है। जीवन के केंद्र में जीवात्मा है और

38

प्रकृति के साथ मानव का उदण्डतापूर्ण व्यवहार" और मौसम में अचानक ही कई प्रतिकूल बदलाव होना....और मानव पर प्रभाव.....

2 जनवरी 2023
0
0
0

आज "चारों तरफ क्लाइमेट चेंज" पर जोरों से चर्चा की जाती है। अनेकों अखबार' इलेक्ट्रोनिक मीडिया और शोध पत्र के पन्ने इसी विषय से भरा रहता है। अब' चर्चा होती है, तो यथार्थ भी इससे कुछ भिन्न नहीं है। आज' व

39

धर्म....विचार और धारना से परे और इसका प्रतिरोध.......

3 जनवरी 2023
0
0
0

भारत भूमि युगों से ऋृषि- मुनियों का देश रहा है। इस धरा भूमि पर ऐसे-ऐसे तपस्वी हुए है, जिन्होंने सिर्फ तपस्या ही नहीं की है, बल्कि" मानव सभ्यता के उन्नयन और विकास के लिए अग्गान- विग्गान के अलोकिक केंद्

40

भ्रांतियां....लोकोक्ति....और समयानुकूल व्यवहार......

4 जनवरी 2023
0
0
0

समाज में कई तरह के कुप्रथा का चलन हो गया है। जिसने धीरे -धीरे विष का सा प्रभाव पैदा कर दिया है। क्रूपथा अथवा कुरीति किस प्रकार की होती है और किस तरह से बन जाती है?....यह गुढ प्रश्न है। क्योंकि" जिसकी

41

रफ्तार का शौख.....आज और धैर्य की कमी......

5 जनवरी 2023
0
0
0

आज का मानव जीवन में इतना उलझ चुका है कि" इस उलझन को सुलझाने की न तो किसी में सहृदयता है और न ही सूझ- बूझ। आज मैं चर्चा करुंगा रफ्तार के शौख की। हां, आज का मानव हर एक चीज को तेजी के साथ पाना चाहता है।

42

आज....शहरी करण का रफ्तार और रेरर अपराध.....

6 जनवरी 2023
0
0
0

अपराध पहले भी होते थे, परन्तु...आज के समय में इसका ग्राफ बहुत बढ गया है। जैसे' अपराध करना एक फैशन सा बन गया हो। आज शहर का विस्तारीकरण हो रहा है। यहां तक कि" कस्बा अब शहर बनते जा रहे है और गांव धीरे-धी

43

मिलाबट और जमाखोङी.....समाज के लिए अहितकर और दूषण......

7 जनवरी 2023
0
0
0

स्वास्थ का जीवन से बहुत बङा और महत्वपूर्ण संबंध है। जब स्वास्थ अच्छा हो' तभी जीवन के आनंद को माना जा सकता है और सुखों का उपभोग किया जा सकता है। परन्तु...जब मानव अस्वस्थ रहता है तो' उसके लिए सुख-सुविधा

44

पहनावा' परिधान का बदलाव और समस्याएँ......

8 जनवरी 2023
0
0
0

अनादि काल से अब तक' मानव में कई तरह के बदलाव हुए है। उसका खान-पान बदला है, उसका व्यवहार बदला है और उसके पहनावे में भी बदलाव आया है। शहरों का क्षेत्र बढा है, विकास किया है और नए-नए शहरों ने भी आकार ले

45

महंगाई.....बजारवाद का प्रभाव और काँमन प्रभाव.....

9 जनवरी 2023
0
0
0

बजारवाद का बर्चश्व इस तरह से हमारे जीवन पर हावी हो चुका है कि" परिस्थिति के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल है। आज जो दिन बदलने के साथ ही महंगाई एक नए आयाम पर पहुंच जाता है, उसने आज के जन-जीवन को ब्यापक

46

आश्चर्य.....जीवन के प्रति मोह और मृत्यु के प्रति दुराग्रह......

10 जनवरी 2023
0
0
0

इस भू-मंडल पर असंख्य जीव पल-पल जनम लेता है और पल -पल मौत के आगोश में समाता जाता है। फिर भी' जीवन के प्रति ज्यादा आकर्षण और मृत्यु के प्रति दुराग्रह का भाव क्यों पालना?....जीवन तो अर्ध सत्य है, जबकि' म

47

आज.....चिकित्सा विग्गान का सम्राज्य बीमारियों से त्रस्त मानव......

11 जनवरी 2023
0
0
0

बिमारियां पहले भी थी और मौतें भी होती थी। परन्तु...पहले इंसान सुखी तो था। इस तरह से बिमारियों के जाल में फंस कर हाँस्पिटल के चक्कर तो नहीं लगाता था। परन्तु....मानव सभ्यता का कथित विकास हुआ और मेडिकल स

48

हथियारों की होड़.....आपस में संघर्ष और अहं का टकराव......

12 जनवरी 2023
0
0
0

आज चर्चा करेंगे हथियार और युद्ध की। बात करेंगे' मानव के बीच अहं के टकराव की और आज चर्चा इसलिये जरुरी है, क्योंकि" आज विश्व का एक भाग'' एक देश युद्ध की त्राशदी को झेल रहा है। जी हां, आज युक्रेन और रुष

49

परिवर्तन....समय के अनुसार ढलने की प्रक्रिया.....

13 जनवरी 2023
0
0
0

बीतता हुआ समय अपने साथ परिवर्तन को लेकर आता है। समय बीतता है और उसके साथ ही नया सवेरा आता है, सुबह का वह अप्रतीम प्रखर प्रकाश धराभूमि पर आती है और जीवन फिर से नव संचारित हो जाता है। इसके साथ' मानव एक

50

उपसंहार......

14 जनवरी 2023
0
0
0

यह पुस्तक "चेतना शिविर" को मैंने अभी वर्तमान परिस्थितियों को देखकर ही लिखा है। इस पुस्तक में व्यंग से लेकर कई विषयों पर मंथन किया है। मैंने कोशिश की है कि" इसमें जो भी लेख हो, वर्तमान की समस्याओं को स

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए