आज के समय में इंसान एक तरह से उलझकर रह गया है। लग रहा है कि" कहीं भीङ में खो गया है। उसके चेहरे की माशुमियत और उसके चेहरे की मुस्कराहट' लगता है कि" किसी ने जबरदस्ती छीन लिया हो। हां, गांव-घर में तो फिर भी हालात थोङा ठीक कह सकते है, किन्तु" शहरों में तो लगता ही नहीं कि" इंसान रहते है। अधिकतर बस रिमोर्ट कंट्रोल द्वारा नियंत्रित मसीन की तरह दिन भर भागदौङ करते रहते है। बस' उनका जैसे ध्येय ही हो' पैसे की ओर भागना। बस काम और काम' इसके अलावा उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता। लगता ही नहीं कि" उन्होंने वर्षों से अपने चेहरे को निहारा हो।
लगता ही नहीं कि" उन्हें खुद को देखने का समय मिला हो और देख सके हो कि" उनके चेहरे पर जो झुर्रियों का आवरण चढ आया है, वह तो समय से पहले ही है। ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि" उन्होंने कभी महसूस किया हो कि' उनके बाल" समय से पहले ही सफेद हो रहे है। किन्तु" हो तो ऐसा ही रहा है, जो स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है। आज युुवाओं के चेहरे पर वह चमक नहीं है, जो होना चाहिए था। आज उनके बाजुओं में वह शक्ति नहीं दिखती' जो होना चाहिए था। अब' तो ज्यादातर में वह उमंग भी नहीं दिखता, जो जीवन जीने के लिए आवस्यक माना जाता है।
अब तो बस' जीवन जीना है इसलिये जी रहे है' ऐसी भावनाएँ बलवती होती जा रही है। ऐसे में कहना मुश्किल होता है कि" आज मानव किधर जा रहा है। हां, यह कहा जा सकता है कि" अब अर्थ युग आ गया है, पैसे के बिना कहा जा सकता है कि' कुछ भी संभव नहीं। तो स्वाभाविक है कि' पुंजीवाद की वृति ने पैर पसार लिया हो। ऐसे में शोषण की मानसिकता का विकास होता है और बजार वाद ने इस मानसिकता को बल दिया है। अब काम के घंटे भले ही निर्धारित किए गए हो सरकार के द्वारा ' किन्तु" बिजनेस समूहों द्वारा इन सीमित समय में भी कर्मचारी का पूर्ण दोहन की मंशा रखते है।
बस' यही से समस्या की शुरुआत हो गई है। अधीक धन कमाने की लालसा और बजार समूहों द्वारा शोषण करने की प्रवृति ने मानव के मौलीक गुण को ही लील लिया है। अब तो' मानव एक यंत्र की तरह हो गया है, जो परिवार के सुख-साधनों को जुटाने और मालिकों का कर्तव्य निभाने के लिए बस यंत्रवत कार्य किए जाता है। यही कारण भी है कि" आज-कल अधिकतर तनाव की सिकायत करते है। समय से पहले ही जर्जर हो जाते है और शायद धीरे-धीरे सीथिल भी होते चले जाते है। वह तो समझ ही नहीं पाते कि" जीवन का मतलब और महत्व क्या है?
आज जो शरीर में कई प्रकार के विकारों ने घर बना लिया है, उसमें तनाव का अहम योगदान है। अगर मन प्रसन्नचित होगा' तो क्रियाएँ भी अनुकूल ही होगा। परन्तु....जब जीवन ही बोझ लगने लगे, तो परिस्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है। आज-कल जो डाक्टरों के यहां लंबी-लंबी लाइने देखने को मिलती है, उसमें से ज्यादातर दिमाग और पेट की बिमारियों से ही त्रस्त रहते है। हां, तनाव एक तरह से धीमी जहर है, जो धीरे- धीरे हमारे शरीर को खोखला कर देता है और हम समझ ही नहीं पाते। हम यह जानने की कोशिश ही नहीं करते कि" हमारे शरीर को भी हमारे देख-रेख की जरुरत है।
जरुरत है कि" हम अपने आप को भी समय दे। सुख के क्रितृम संसाधनों से कुछ पल के लिए अलग होकर खुद से भी विचार करें। खुद के शरीर की भी बात सुने और खुद को भी स्नेह आलिंगन करें। जरुरत है कि" तनाव जिस से पैदा होता है, उन चीजों से कुछ पल के लिए खुद को अलग रखे। सोचे कि" खुद को भी खुश रखने की जरुरत होती है। जरुरत है कि' विचार करें ' हम खुद को किस तरह से उपहार दे सकते है। खुद को प्रसन्न रखने के लिए भी प्रयत्नशील हो जाइए, फिर देखिए, आपकी अनेको समस्याएँ स्वत ही हल हो जाएगा।
क्रमश:-
मदन मोहन मैत्रेय की अन्य किताबें
नाम - मदन मोहन "मैत्रेय",
पिता - श्री अमरनाथ ठाकुर,
निवास स्थान - तनपुर, बिहार,
शिक्षा - बी. ए.,
आप का जन्म बिहार प्रांत के दरभंगा अनु मंडल स्थित रतनपुर गांव में साधारण परिवार में हुआ है। इनकी शिक्षा–दीक्षा भी कठिन आर्थिक परिस्थितियों में संभव हो सका है। लेकिन इनमें लिखने की ललक बचपन से थी, जिसे ये समय के साथ ही परिमार्जित करते चले गए और ईश्वर की कृपा से सन ई. २०२२ में इनकी चार रचना प्रकाशित हो गई, जिसमें से तीन उपन्यास एवं एक काव्य संग्रह है। इनकी सभी रचनाएँ अमेजन एवं फ़्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
इनकी प्रमुख रचना-:
फेसबुक ट्रैजडी (उपन्यास) - यह कहानी आँन लाइन चेटिंग के दुष्परिणाम पर आधारित है। साथ ही इसमें अपराध, छल, प्रेम, घृणा, कर्तव्य और अपराध का विस्तृत वर्णन किया गया है।
ओडिनरी किलर (उपन्यास)- यह उपन्यास पुरुष वेश्या (जिगोलो) पर आधारित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रतिशोध की भावना कितनी भयावह होती है। साथ ही अपराधी जब अपराध करने पर उतारू हो जाता, सिस्टम के लिए किस प्रकार से सिरदर्द बन जाता है, उसको बताया गया है।
तरूणा (उपन्यास) – यह कहानी लिंग परिवर्तन(जेंडर चेंज) पर आधारित है। इसमें प्रेम है, घृणा है, अपराध है, तो प्रतिशोध भी है। इस कहानी में समाज में छिपे हुए कुछेक अपराधी प्रवृति के सफेदपोश का चरित्र चित्रण किया गया है।
अरुणोदय (काव्य संग्रह) - यह कविता की पुस्तक है और इसमें जितनी भी कविताएँ है, प्रेरणा देने वाली है। हतोत्साहित हृदय को फिर से नव ऊर्जा से संचारित कर दे, ऐसी कविताएँ हैं।
साथ ही आप की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं एवं एंथालाँजी में प्रकाशित होती रहती है। आप जो भी रचना करते है, वर्तमान परिस्थिति, सामाजिक विषय, रोचकता और युवा के जरूरत और महत्व को केंद्र में रखते है। इसलिये इनके कलम से समाज के अलग-अलग विषयों पर रचनाएँ की जाती है और आप अभी “रति संवाद” नाम के उपन्यास पर कार्यरत है।
इनकी रचित रचित-रचनाएँ और भी है, एकल काव्य संग्रह “जीवन एक काव्य” धारा एवं “वैभव विलास-काव्य कुंज” जो पेंसिल पब्लिकेशन पर प्रकाशित हुई है। दूसरी कविताएँ “निम्न एन्थोलाँजी” डेस्टिनी आँफ द सोलेस्टिक एवं “अल्फाजों की उड़ान” के साथ ही “बाल रंजन” में प्रकाशित हुई है। साथ ही विभिन्न समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है।
हम आशा और विश्वास करते है कि आप पाठकों का प्यार एवं स्नेह इनसे जरूर जुड़ेगा।
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