वो चाँद को पलट कर देख !
चाँदनी का गुरुर उसे,
उधार की रोशनी से,
सिंगार जो कर रहा,
अपने रूप के गुरूर मे,
चूर अब हो रहा,
आसमा मे नहीं टिक रहा ,
मेरे साथ साथ चल रहा,
हर कदम पर मेरे
नज़र वो देख रख रहा,
कभी प्रीतम कभी मामा ,
बन रोज रोज ठग रहा
मेरे साथ साथ रह रहा ,
उधार की रोशनी से,
जो जीवन वृतीत कर रहा ,
बहरुपिया चाँद,
देख ! रिश्ते भी जो बदल रहा,