कितना सुकून तेरी बाँहो मे,
आज प्रेम साकार हुआ ,
तेरी आहों मे ,
ये काव्यांजलि
निग़ाहों मे तेरी हर काव्य संकलित
चंचल चपला सी तू ,
मेघो से उतरती दिखती
ये कव्यंजली
ह्दय प्रेम घुटी पीकर
शिवा तांडव करता है
तेरे केश के कचकुटुम्भ में
घन घोर संकलित दिखता है
ये काव्यांजलि
हर शब्द हीन हर रूप कुरूप
तेरी इस कंचन काया पर
क्या काव्य लिखूं
ये काव्यांजलि
(काव्यजलि आकाशीय बिजली है)