नारी जीवन आसान नहीं , उसके मन की कोमलता ,निश्छलता हर पल उसे छलती रहती है। उसका कोमल मन किसी पर भी विश्वास कर लेता है , शक्ति का रूप होने के बावजूद भी ,वो किसी बेल की तरह किसी से लिपट जाना चाहती है , एक आलंबन तलाशती है ,जो उसे सहारा दे ,उस सहारे के सहारे वो मजबूत बन सके। अपनी शक्ति को भूल ,एक ऐसे सीने को तलाशती है जिस पर सिर रखकर अपनी दिनभर की थकान मिटा सके। भूल जाये ,दुनिया के सभी ग़म ,किन्तु ये उसकी भूल है ,वो तो पहले से ही मजबूत है किन्तु इसका एहसास ,उसे तभी हो पाता है ,जब वो झंझावतों से जूझती है ,तोड़ी जाती है। फिर अमर बेल की तरह ,फिर से पनपती है ,अंकुरित होती है।
नीलिमा महसूस कर रही थी ,अब उसका शारीरिक ही नहीं मानसिक बलात्कार भी हो रहा है। बाहर की दुनिया में किसी की इज्जत पर आंच आ जाये ,तो शोर मच जाता है। उस व्यक्ति को धिक्कारा जाता है ,गालियाँ दी जाती हैं। किन्तु जो लड़की किसी के घर की बहु है ,पत्नी है ,एक माँ भी है। यदि उस परिवार का सहयोग न हो ,उसका पति उसके साथ खड़ा न हो। उसका तो प्रतिदिन ही शोषण होता है मानसिक भी शारीरिक भी। कई बार नीलिमा अपने को बेहद टूटा हुआ थका महसूस करती किन्तु जब अपनी बेटियों का मासूम चेहरा देखती ,तब उसमें फिर से जीने की ललक जाग उठती और वो नए उत्साह से फिर से सुंदर भविष्य की कल्पना कर अपने दुखों को भूलकर आगे बढ़ने का प्रयत्न करती।
बेटियों के साथ अठखेलियां ,उनकी मासूमियत ,उनकी भोली प्यारी तुतलाती आवाज उसमें जिजीविषा भर देती। धीरेन्द्र अपनी दुनिया में ही रहता, कमाता और ,नीलिमा के यौवन का रसपान करता उसकी हरकतों से लग रहा था ,जैसे वो बरसों का प्यासा हो या फिर नीलिमा के रूप का रसपान इतना अधिक करना चाहता था ,कि उसके रस की अंतिम बूँद तक को चूस लेना चाहता था ,जैसे -'उसे मौका फिर मिले न मिले। ' कभी -कभी बेटियों को लेकर , धीरेन्द्र के साथ जाती ,तब भी वो उन्हें नहीं संभालता बल्कि नीलिमा को ही डपट देता -''मैं तुमसे इन्हें साथ ले चलने के लिए, पहले ही मना कर रहा था किन्तु तुम नहीं मानी ,अब तुम ही इन्हें सम्भालो !''
तब नीलिमा खिसियाई सी ,उन्हें समझाते हुए आगे बढ़ती ,जैसे -उसने अपनी बेटियों को साथ लाकर बहुत बड़ी गलती कर दी हो। ये परेशानियां क्या जीवन में कम थीं ?जो पल्ल्वी यानि उसकी सास ने एक ऐसा कदम उठाया कि वो घबरा उठी। किसी से क्या कहें ?सास तो सास ही होती है माँ नहीं बन सकती। जेठ अकेले रहते थे। उनकी पत्नी नहीं ,परेशानियों से घिरे रहने के कारण माता -पिता का अधिकतर ध्यान उन्हीं पर रहता। धीरेन्द्र अपनी मनमानी करता उसे न ही खर्चों की परवाह थी ,न ही पैसे जोड़ने की चाहत। उसका उसूल था - ''पैसा कमाते किसलिए है ?खर्चा करने के लिए ,''न ही माता -पिता का कहा -मानना , सुनना ,न ही पत्नी और बच्चों की परवाह। वो जैसे अपनी ज़िंदगी से बदला ले रहा था या फिर अपनी हरकतों से ,अपने मन में ,दबे ग़म को भुलाने का प्रयत्न कर रहा था ।
टीना उसका पहला प्यार होते हुए भी ,उससे दूर तो चली गयी थी किन्तु उसकी स्मृतियों में आज भी कहीं बसी है , टीना की जगह उसकी पत्नी नीलिमा आज तक भी नहीं ले सकी ,सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो....... उसके पत्नी है ,दो प्यारी सी बेटियां है ,वो स्वयं भी एक अभियंता के पद पर है ,सब कुछ अच्छा ही तो है किन्तु कहते हैं न ,कुछ लोग ,'अपने समीप जो चीज होती है उसकी क़द्र नहीं करते हैं और जो अपने पास नहीं है ,उसके लिए रोते रहते हैं। ',टीना भी यदि उसकी ज़िंदगी से चली गयी ,तब भी उसके कर्मो के कारण ही तो गयी थी ,उसका ज़िम्मेदार भी तो वो स्वयं ही है किन्तु अपनी गलती न मान कर ,गलती पर गलती किये जा रहा है। जीवन में उलझनों को सुलझाने के स्थान पर वो अपनी ही ज़िंदगी में खोये जा रहा था। वो ये नहीं समझ पा रहा था कि उसकी इस उलझी हुई ,ज़िंदगी का उसके परिवार पर क्या असर होगा ?
बाहर से तो वो शांत नजर आता किन्तु उसके अंदर तूफान चल रहा था। उस तूफ़ान में न जाने ,कितने रिश्ते फंसे हुए थे ? वो रिश्ते रह जायेंगे या उस तूफान में कहीं खो जायेंगे ? ये तो समय ही बतायेगा। आज धीरेन्द्र मुस्कुराता हुआ आया और नीलिमा से कहता है ,'चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं ,'वो पहले भी इसी तरह कहीं भी जाने के लिए तैयार हो जाता। आज भी वो अपनी पत्नी के संग जाने के लिए ,उससे तैयारी के लिए कह रहा था। नीलिमा ने कहा भी ,अब हमारे साथ दोनों छोटी बच्चियां भी हैं।उसकी बात सुनकर चिल्लाकर बोला -
''कोई नहीं ,इनके कारण क्या हम कहीं न जाएँ , अपनी ज़िंदगी जीना बंद कर दें ,इन्हें पापा -मम्मी संभाल लेंगे ,'' कहकर उसने नीलिमा से तैयारी करने के लिए कह दिया। नीलिमा के लिए गाउन ,जींस और डिजाइनर सूट लाया। कभी -कभी नीलिमा समझ भी नहीं पाती कि ये क्या चाहता है ? वैसे तो ये बच्चे बनाये जा रहा है ,मेरी किसी भी कार्य तनिक भी सहायता नहीं करता ,लगता जैसे इसे मेरी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। ''मुझसे ये भी चाहता है कि मैं बिल्कुल आधुनिक लड़की बनकर रहूं। कभी -कभी नीलिमा को अच्छा भी लगता किन्तु ज़िम्मेदारियों के चलते ,सभी चीजें सही तरीक़े से संभाल पाना ,कभी -कभी उसे मुश्किल लगता। धीरे -धीरे अपने को उसके अनुसार ढ़ाल भी रही थी। नीलिमा ने मम्मी -पापा को बच्चियों के विषय में बताकर , बच्चियों की सभी सुविधानुसार सामान जुटाकर , अपने पति के संग घूमने चल देती है । दोनों पति -पत्नी कभी पहाड़ों की वादियों में ,कभी किसी भी ऐतिहासिक स्थल पर निकल पड़ते है।
नीलिमा ने एक दिन महसूस किया ,जब भी हम बाहर घूमने जाते हैं , एक लड़की ,उन्हें हर बार वहीं दिखती ,एक बार तो उसे शक़ भी हुआ ,ये कैसे हो सकता है ?हम जहाँ भी जाते हैं ,ये भी वहीं जाती है। उसने सोचा भी ,एक बार इसका ज़िक्र धीरेन्द्र से करके रहूंगी किन्तु धीरेन्द्र का वो लगाव ,अपनापन ,उसका प्यार उसे कुछ कहने ही नहीं देता।
नीलिमा को ये सब अच्छा भी लगता ,अपनी ज़िम्मेदारियों से थोड़ी राहत मिलती ,आराम भी मिलता किन्तु अबकि कुछ ऐसा हुआ जिससे दोनों पति -पत्नी अवाक् रह गए।
धीरेंद्र का व्यवहार, निलिमा के लिए पहली बनता जा रहा है। कभी उससे बेपरवाह, कभी उसके साथ घूमने चल देता है। अपनी जिम्मदरियों का उसे तनिक भी एहसास नहीं, फिर भी वो अपनी बेटियों के लिए उस रिश्ते को जिये जा रही है। आखिर वो लड़की कौन है? जो हमेशा उसी स्थान पर होती है, जहाँ वो जाते हैं, क्या वो उनका पीछा कर रही है या बात कोई और है, जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी