धीरेन्द्र को अपने बेटे' अथर्व ',की बीमारी का पता चलता है ,पता चलते ही ,वो तो जैसे शून्य हो जाता है। वो घर से बाहर आता है ,अपनी ज़िदगी के विषय में सोचता है ,इस ज़िंदगी से उसने क्या पाया ? वो बेहद ही ग़मगीन स्थिति में सड़क पर घूम रहा था। ज़िंदगी में एक औलाद और वो भी ''अपाहिज '' उसके दिमाग़ में बार -बार यही शब्द घूम रहा था।सड़क पर इधर से उधर घूम रहा था। जैसे उसे अपनी कोई राह नजर ही नहीं आ रही ,कहाँ जा रहा है या उसे कहाँ जाना है ?उसे कुछ भी नहीं मालूम ,आज माँ और पापा की बहुत याद आ रही है। आज उसे लग रहा है ,माँ की गोद में सिर रखकर देर तक रोये , उनकी गोद में लेटकर अपने सभी ग़म भुला दे ,इसी शहर में रहते हुए भी ,मुझे उनके पास जाने का समय नहीं मिला। अपने दोस्त ,अपनी नौकरी ,अपनी गृहस्थी में ,उन्हें तो जैसे भुला चुका था ,किन्तु आज उनकी बहुत ही याद आ रही है।
आज उनके टूटते बेटे को ,उन्हीं का सहारा नजर आ रहा है।उसने घडी में समय देखा , रात्रि के नौ बज चुके थे ,आज तो उसने शायद ज़िंदगी में सबसे ज्यादा पी , वो पीकर बेसुध हो जाना चाहता है। अपनी इस ज़िंदगी को भूल जाना चाहता है। क्या मिला ? इस जिंदगी से ! वो प्रश्न कर रहा था किन्तु जबाब देने वाला उसके सिवा वहां कोई नहीं था।
लड़खड़ाते क़दमों से ,घर में प्रवेश करता है नीलिमा को तो अब जैसे आदत पड़ चुकी है जिसमें आज तो उसे अपने बेटे की बिमारी का दुःख है। घर आकर भी वो बड़बड़ा रहा था ,इस 'अपाहिज़ 'को कौन पालेगा ?तुमने मुझे एक अपाहिज़ औलाद दी। नीलिमा उसे संभाल रही थी और साथ ही समझा रही थी। नहीं ,वो अपाहिज़ नहीं है ,वो हमारा बेटा है ,हम दोनों उसे मिलकर पालेंगे। उसका सहारा बनेंगे ,उसे उसके पैरों पर खड़े होने लायक़ बनाएंगे , किन्तु वो नशे में भी परेशान ही था अपने दुःख से दुखी सो गया।
सुबह उठते ही ,वो फिर से घर से बाहर निकल गया। उसका मन अपने ठिकाने पर नहीं था ,अब उसका मन उस घर में नहीं लग रहा था। कोई भी अपना नजर नहीं आ रहा था ,उसकी इच्छा हो रही थी कि इस दुनिया से कहीं बाहर निकल जाये। वो वापस उस घर में जाना नहीं चाहता ,दोस्त भी तो अब उसके साथ नहीं। तभी जैसे उस जलन में ,ठंडी हवा के झोंके की तरह उसका दोस्त सुरेंद्र उसे दिखाई दिया। उसे देख धीरेन्द्र का मन भर आया ,दोनों दोस्त बड़े मन से गले मिले किन्तु धीरेन्द्र अपने मन का दुःख उससे छिपा नहीं पाया। उसके चेहरे से ही ,सुरेंद्र ने उसके मन के जज़्बात पढ़ लिए और उसने पूछ ही लिया -क्या कोई बात है ?
सुरेंद्र पूछते हुए घबरा भी रहा था कि कहीं ये पैसे उधार न मांग ले किन्तु उसे नहीं लग रहा था कि इसकी परेशानी आर्थिक है इसीलिए पूछ बैठा।
धीरेन्द्र के मन का धैर्य ,अपने दोस्त के सामने बह निकला और अपने बेटे की बिमारी उसे बताई।
उसकी परेशानी सुनकर उसके दोस्त को दुःख भी हुआ किन्तु उसने उसे ढाढ़स बंधाया। दुनिया में कोई बिमारी ऐसी नहीं ,जिसका इलाज़ नहीं ,अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाना , अभी से परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,बिमारी है तो , इलाज़ भी है। किसी अच्छे से अच्छे डाक्टर को दिखाना। उसके समझाने से धीरेन्द्र अंदर थोड़ी हिम्मत आई ,और ज़िंदगी में अचानक आई इस परेशानी से ,जूझने के लिए ,अपने को मानसिक रूप से तैयार कर रहा था।
घर जाकर उसने देखा, नीलिमा बच्चों को नाश्ता करा रही है। एक नजर उसने सभी पर नजर डाली और नीलिमा से पूछा -कौन से डॉक्टर को दिखाया ?
नीलिमा ने बच्चों को खाना जारी रखने के लिए कहकर धीरेन्द्र के पास आकर बोली -डॉक्टर अस्थाना ! धीरेन्द्र को थोड़ा शांत देखकर ,बोली -वे अच्छे डॉक्टर हैं ,वे इसी तरह के बच्चों का इलाज़ करते हैं। उन्होंने बताया था -'इस तरह के बच्चे ,बुद्धिमान भी बहुत होते हैं ,किन्तु दूसरों से कम ही घुलमिल पाते हैं। 'समय के साथ ही हमें धीरे -धीरे इसके विषय में पता चलेगा ,उसी आधार पर ,इसकी कमी को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है। नीलिमा अथर्व की बिमारी के बावजूद ,उसके प्रति उतनी ही आशावादी थी। उसको देखकर धीरेन्द्र को लगा ,मैं एक बार ही इस लड़के के विषय में ,देख सुनकर, कितना हताश हो गया था ?किन्तु इसने आज तक भी मुझे ,इस बात का एहसास नहीं होने दिया। इसका इलाज भी कराती रही और अपने मन में ,अपने आप से ही ,लड़ती भी रही। धन्य है नारी !
अपने ऑफिस गया ,धीरे -धीरे ये बात सभी को पता चल गयी ,सभी ने सहानुभूति जताई किन्तु किसी ने भी इसका इलाज और ठीक होने की गारंटी जैसी बात नहीं की। दफ्तर का ही एक साथी जो अक़्सर उससे चिढ़ा रहता ,उसने इस बिमारी के विषय में ,कभी किसी से सुना भी नहीं था । तब उसने व्यंग्य किया ,तुम तो विशेष हो तुम्हारी हर चीज विशेष होती है ,बेटे को बीमारी भी हुई तो विशेष ,धीरेन्द्र को सुनकर बहुत क्रोध आया किन्तु साथ वाले ने ही ,उसको डांटकर चुप करा दिया -ये तुम क्या कह रहे हो ?किसी का बच्चा बिमार है और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है , कोई डॉक्टर बताते या कोई इलाज़ ,उस बाप की सोचो !उस पर क्या बीत रही होगी ?ये समय किसी के साथ खुन्नस निकालने का नहीं है ,समझे !ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। इस कारण धीरेन्द्र शांत रहा।
किन्तु फिर भी वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और बोला -सब अपने -अपने कर्मो का हिसाब -क़िताब है। दिन बीतते गए ,धीरेन्द्र अपने को समझाता रहा किन्तु मन से अभी उस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
एक दिन अचानक उसे कुछ विचार आया और उसके आधार पर शाम को नीलिमा से बड़ी प्यारी -प्यारी बातें करने लगा। नीलिमा जानती थी ,कि वो कब ऐसी बातें करता है ?मुस्कुराकर बोली -मैं सब जानती हूँ ,तुम्हारे ये सभी चोंचले ,आज मन रोमांस का हो रहा है।
रोमांस ही नहीं पुरानी बातें स्मरण करने का दिल कर रहा है ,आज वो ही लाल गाउन पहनना !
नीलिमा ने मुस्कुराकर उसकी बात स्वीकार की। वो नहीं जानती थी कि धीरेन्द्र के मन में क्या चल रहा है ?
अचानक धीरेंद्र का व्यवहार इस तरह क्यों बदल गया? क्या उसने परिस्थितियों से समझौता करने का मन बना लिया है? अथवा इसके पीछे और कोई कारण है? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी