बस में बैठी ,पार्वती जी सोच रही थीं ,कितनी दोहरी मानसिकता के लोग हैं ?एक तरफ पत्नी घर संभालने के लिए चाहिए ,दूसरी तरफ बहु वंश बढ़ाने के लिए चाहिए ,किन्तु बेटी ,जो किसी का घर सजा -संवार सकती है , ऐसी बेटी नहीं चाहिए। ये बेटी ही तो ,कल किसी के घर की बहु ,माँ ,पत्नी बनती हैं ,खरीद कर लाएंगे ,किन्तु बेटी नहीं बनाएंगे ,बनाई भी तो ,उससे ऐसे परहेज़ करते हैं ,जैसे किसी अछूत को अपने घर में रखा हो ,विवाह के बाद जैसे उसे हमारी आवश्यकता ही नहीं। कई बार सोचा भी ,बेटी को घर पर ही बुला लूँ ,बेचारी अकेले सब कैसे संभाल रही होगी ? तीन बच्चे हैं ,पति का भी सहारा नहीं ,''सहारा देने वाले तो बहुत मिल जायेंगे ,साथ निभाने वाले नहीं। ''अभी उसकी उम्र ही क्या हुई है ? मन ही मन हिसाब लगाने लगीं ,यही कोई तीस -पैंतीस की हुई होगी। अभी तो सारी ज़िंदगी उसके आगे पड़ी है।
चलो ,जो भी हुआ ,अच्छा तो नहीं कह सकती किन्तु मैं तो यही चाहती हूँ ,भगवान उसे हर परेशानी को सहने की शक्ति दे ,विचारों को थोड़ा झटका दिया, किन्तु मन है कि घूम फिरकर वहीं पहुंच जाता है। एक -डेढ़ घंटे की यात्रा के पश्चात ,वो बस से उतरीं।
आज नीलिमा का उस स्कूल में पहला दिन है ,आज उसने बच्चों को एक रोचक कहानी सुनाई ,और उससे संबंधित प्रश्न पूछे। बच्चे उसकी कक्षा में बहुत ही दिलचस्पी दिखला रहे थे। उसके विषय भी ऐसे ही थे कि बच्चा खेल -खेल में सीख जाये ,प्यार से मुस्कुराकर पढ़ाने का तरीका सभी सही थे। जब प्रिंसिपल ने बच्चों से पूछा गया ,उन्हें ये नई मैडम कैसी लगीं ?
तब सभी ने प्रसन्न होकर हाथ उठा दिए ,अच्छी लगीं।
स्कूल की प्रिंसिपल होने के नाते , रिया सिंह ने निर्णय ले लिया था कि नीलिमा की नौकरी पक्की किन्तु अभी उससे कुछ नहीं कहा ,अभी दो दिन बाक़ी हैं। नीलिमा सबका मन अपने प्यार से मोह रही थी। अथर्व को उन माईजी को देकर वो निश्चिन्त हो गयी थी। ख़ाली समय में ,एक दो बार जाकर उससे मिल भी आई ,साथ ही साथ उसे या अपने मन को सांत्वना भी दे आती। आज शायद अथर्व की नानी आ जाएँ। तब अथर्व नानी के पास रहेगा। मन ही मन सोच रही थी ,मम्मी ने बताया भी नहीं ,कि वो आज आएँगी या फिर कल। पता नहीं , पापा ने उनसे न जाने क्या कहा होगा ? कैसे आएँगी ?किसके साथ आएँगी ?ये तो उसने पूछा ही नहीं। यही बातें सोचकर नीलिमा को बेचैनी होने लगी। एक बजे नीलिमा की छुट्टी हुई और वो घर के लिए चल दी। घर आकर उसने अथर्व के और अपने कपड़े बदले। थोड़ा आराम मिलने पर उसने अपने घर फोन किया।
उधर से वही आवाज फिर से आई ,आज नीलिमा ने कोई भी प्रस्तावना नहीं बनाया और सीधे -सीधे रेखा से कहा -भाभी !जरा मम्मी को बुला दो !
ये आप क्या कह रही हैं ? मम्मी तो सुबह ही ,बस से चली गयीं ,क्या अभी तक पहुंची नहीं ?
मुझे बताया भी नहीं ,उन्हें अकेले ही बस में बैठा दिया ,उनसे पूछा भी नहीं ,कि क्या वो मेरे घर का पता जानती हैं ?
वो पहले भी तो जा चुकी हैं ,रेखा ने बताया।
अरे यार !वो पहले सभी के साथ ,गाड़ी में आई थीं ,बस से नहीं ,तुम लोगों ने उन्हें अकेले कैसे आने दिया ? 'मयंक' उनके साथ आ जाता। उनसे मैं कैसे मिलूंगी ?वो अभी तक नहीं आईं ,उन्हें मेरे घर का पता समझाया था।
वो तो मुझे नहीं मालूम ,वे लेकर गए थे।
पापा क्या कह रहे थे ?वो तो नाराज थे।
उन्हें बेटियों की चिंता कहाँ रहती है ? नाराज तो होंगे ही ,उन्हें बिना कहे ही, मेरे साथ खड़े होना चाहिए किन्तु आज तक भी उन्होंने,एक बार भी फोन करके नहीं पूछा ,'कि तू कैसी है ?' चलो !मैं तुमसे बाद में बात करती हूँ। पहले मम्मी को तो खोज लूँ ,जो अभी तक नहीं आईं कहकर नीलिमा ने फोन रखा। कैसे लापरवाह लोग हैं ? उन्हें एक अनजान शहर में अकेले भेज दिया ,कहते हुए ,उसने अपने घर पर ताला लगाया और अथर्व को लेकर बाहर आ गयी। रिक्शेवाले से कहा -भइया !बस अड्डे लेकर चलो !
लगभग आधा घंटे बाद ,वो बस अड्डे पर थी ,आज धूप भी तेज है ,रिक्शेवाले को वहीं रोककर ,अपनी माँ को खोजने लग जाती है। किन्तु वो कहीं नहीं दिखाई दीं ,किसी से पूछती भी है- कि वो बस कब आई ?
तब उसे पता चला ,उस बस को आये तो दो घंटे हो गए।
अब तो नीलिमा की बेचैनी बढ़ गयी ,इतनी धूप में मम्मी कहाँ होंगी ? वो अपने बच्चे को लिए ''बस अड्डे '' की संभावित जगहों पर देख रही थी। वो स्थान उसके लिए भी अनजान ही था ,वो तो गाड़ी से ही आती जाती रही है ,इसीलिए रिक्शे से ही आई थी क्योंकि रिक्शेवालों को ऐसे स्थानों की जानकारी अच्छी होती है। आस पास ढूंढकर जब वो थक गयी। तब उसने बस अड्डे से बाहर की तरफ एक सरसरी सी नजर डाली ,तभी उसे दूर एक दुकान पर अपनी मम्मी की छवि दिखलाई पड़ी। उसके मन में एक उम्मीद जागी और वो उधर ही चल दी ,सड़क पर भीड़ बहुत थी किन्तु इस समय उसे अपनी माँ के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था। वहीं पहुंचकर दम लिया ,देखा ,उसकी मम्मी ही हैं ,उन्हें देखकर नीलिमा ने गहरी श्वांस ली और उसने उन्हें गले लगा लिया ,बोली -आप यहाँ कैसे आईं ?क्या आपके पास मेरे घर का पता नहीं था ?
वो मुस्कुराते हुए बोलीं -घर का पता तो मयंक ने दिया था ,एक पर्ची सी थी ,पता नहीं ,कहाँ ग़ुम हो गयी ?
तब तक नीलिमा ने रिक्शेवाले को इशारे से अपने समीप ही बुला लिया था ,दोनों रिक्शे में बैठीं और घर की ओर चल दीं। आप घबराई नहीं ,और वहाँ उस दुकान में क्या कर रहीं थीं ?अपनी मम्मी पर उसे गर्व हो रहा था।
नहीं ,घबराना कैसा ? मुझे पता था ,जब घर से मेरे आने का फोन आएगा और मैं नहीं पहुँचूँगी तो तू मुझे लेने आएगी ,इसीलिए मैं वहीं बस अड्डे पर बैठी रही ,तभी मुझे याद आया बच्चों के खाने के लिए कुछ ले लेती हूँ इसीलिए कुछ फ़ल और थोड़ा नाश्ते का सामान ख़रीदने आ गयी।
यूँ तो मेरी माँ बहादुर ही नहीं समझदार भी है ,कहते हुए अपनी मम्मी को कंधे से पकड़कर अपना लाड़ जतलाया। रिक्शा घर के बाहर रुका ,उसकी दोनों बेटियां पहले से ही घर के बाहर खड़ी थीं ,उन्हें देखकर उसे स्मरण हुआ ,वो जल्दबाजी में ताला लगाकर चली गयी ,इनके आने का उसे ध्यान ही नहीं रहा। ताला खोलते हुए वो अंदर आईं।
नीलिमा से शिकायत करते हुए ,उसकी बेटी बोलीं -मम्मा आप कहाँ चले गए थे ?हम इतनी देर से धूप में खड़े थे।
सॉरी ,बेटा सॉरी ,तुम्हारी नानीजी को लेने गयी थी ,इन्हें तो हमारे घर का एड्र्स नहीं मालूम था ,इतने बड़े शहर में ,ये ग़ुम हो जातीं तो मैं इन्हें कैसे ढूंढती ?
तब आपने इन्हें कैसे ढूंढा ?
बहुत लम्बी कहानी है ,बाद में सुनाऊँगी कहकर नीलिमा ने उन्हें टाल दिया ,चलो !अब पहले कपड़े बदलो और नानी जी तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाई हैं ,हाथ- मुँह धोकर आ जाओ !