नीलिमा और बच्चे अभी, अपने -अपने स्कूल के लिए निकले थे ,नीलिमा पढ़ाने गयी और बच्चे पढ़ने। पार्वती जी भी ,घर को व्यवस्थित करने में लगीं हैं ,अथर्व के पास कई सारे रंगीन खिलौने रखे हैं ,वो उन्हें देख रहा है। नीलिमा जानती है ,मेरे बेटे को ,मेरा ज्यादा समय चाहिए किन्तु कमाना भी तो जरूरी है इसीलिए उसे अपने छोटे अथर्व को घर पर ,मम्मी के पास छोड़कर जाना पड़ता है। ये तो अच्छा है ,मम्मी उसकी सहायता के लिए आ गयीं वरना वो अकेली कैसे और क्या करती ?पार्वती जी ,अभी नहाकर ही बाहर निकलीं थीं तभी फोन की घंटी घनघना उठी। पार्वती जी ने फोन उठाया -हैलो !
उधर से बड़ी रौबदार ,कड़क आवाज आई , इस घर के प्रति भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं।
इस आवाज को वो सरलता से पहचान गयीं ,पहचानेंगी भी क्यों नहीं ?इस आवाज को बरसों से जो सुनती आ रही हैं। वो ही नाराजगी भरी आवाज ,कोई बदलाव नहीं आया। तब भी पार्वती जी ने पूछ ही लिया -क्या हुआ ?
तुम तो वहीं जाकर बैठ गयीं ,अकेली बहु पर सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपकर चली गयीं। तुम्हें पता भी है ,तुम्हें गए। कितने दिन हो गए ? बहु ने भी एक बार फोन किया किन्तु तुमने तो जैसे वहीं रहने की ठान ली है ,यहाँ वापस नही आना चाहतीं हैं ।
एक बार को तो पार्वती के मन में आया ,कि मज़ाक में कहे -क्यों मेरे बिना दिल नहीं लग रहा ?किन्तु चाहते हुए भी शांत रही और बोली -क्या बहु से घर नहीं सम्भल रहा ?
उससे क्या घर संभलेगा ?अब तो रेखा माँ भी बनने वाली है ,तुम्हें यहाँ से गए दो माह हो गए , अब भी तुम्हें आना है या नहीं।
क्या ? वो माँ बनने वाली है ,ये तो आपने मुझे अच्छी खबर सुनाई ! मैं आज नीलिमा से बात करके ,आने का प्रयास करूंगी।
प्रयास नहीं करना है ,आ ही जाना। कहकर उन्होंने फोन रख दिया। पार्वती को जितनी प्रसन्नता अपनी बहु के पांव भारी होने की हो रही है ,उतना ही दुःख अपने पति के व्यवहार से भी हो रहा है। जब मैं यहाँ आई ,तो एक बार भी फोन करके पूछा नहीं कि मैं ,सही - सलामत पहुंच गयी या नहीं। जब अपना काम पड़ा तो फोन घुमा दिया। बहु का पांव भारी है तो मेरी आवश्यकता महसूस हो गयी। ख़ैर छोडो !मलाल करने से क्या हो जायेगा ? इतनी ज़िंदगी कट गयी ,आगे भी कट ही जाएगी , सोचकर वो अपने काम में जुट गयीं। अब तो कपड़े भी लगाने पड़ेंगे। यहाँ बेटी कैसे और क्या करेगी ? वो सोच रहीं थीं -हम महिलाओं की ज़िंदगी भी क्या है ?'' किसी को हमारी जरूरत नहीं ,और हमारे बिना काम भी नहीं चलता।''
शाम को जब नीलिमा घर आई ,पार्वती ने उसे , उसके पापा के फोन आने का कारण बताया। नीलिमा भी ख़ुश हुई किन्तु चिंतित भी हो गयी। अब घर और अथर्व को कौन संभालेगा ? तब उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब उसे क्या करना है ?अगले दिन चम्पा घर में आ गयी। नीलिमा की बेटियां उसे देखकर बहुत खुश हुईं ,अथर्व भी मुस्कुराया ,क्योंकि इन बच्चों ने बचपन से ही उसे देखा है। चम्पा को देखकर ,पार्वती जी को भी अच्छा लगा ,उनके मन को सुकून मिला कि चलो !अब नीलिमा अकेली नहीं पड़ेगी ,अब मैं चैन से जा सकूंगी।
पार्वती जी के जाने पश्चात ,शाम को चम्पा नीलिमा से पूछती है ,दीदी !अब आपका काम कैसा चल रहा है ?अब मेरी तनख़्वाह का इंतजाम हो जायेगा।
कुछ सोचते हुए ,हाँ ! तभी तो तुम्हें बुलाया है कहते हुए नीलिमा चली गयी किन्तु तभी वापस आकर बोली -ध्यान से काम करना, कहकर वो फिर से चली गयी।
चम्पा के पास भी ,अब कोई चारा नहीं था ,नीलिमा के घर में ज्यादा काम भी नहीं था ,इस घर से घुली -मिली भी थी। इससे पहले भी चम्पा ने अन्य जगह काम किया किन्तु न ही उसका मन लगा ,न ही उन लोगों से तालमेल बिठा पाई।
नीलिमा अपने स्कूल से आकर , अथर्व को लेजाकर किसी संस्था में लेकर जाती ,उसको योग करवाती और जो भी सम्भव हो सकता था ,उसे सिखाती। उसे वो ,उस संस्था में ले तो जाती किन्तु अपने बेटे के साथ ही,इसी तरह के अन्य बच्चों को भी सिखाती ,उनके साथ भी अपने बेटे की तरह ही व्यवहार करती। संस्था के लोग उसके इस मधुर व्यवहार के कारण उससे बहुत प्रभावित हुए।
अब समय पर ही बच्चियों की फ़ीस भी जमा हो जाती ,जो गाड़ी पेट्रोल की बचत के कारण ,घर में महीनों नहीं दो -तीन वर्षों से गाड़ी खड़ी है ,आज उसका भी पुनर्जीवन हुआ। नीलिमा बेटियों के बड़े होने की प्रतीक्षा नहीं कर रही थी ,वो उन्हें हर तरह से सक्षम बना देना चाहती थी। चम्पा के रहते हुए भी ,अपने सभी कार्य स्वयं करने की आदत डालने को कहती। उसकी बेटियां भी अच्छी थीं ,माँ का कहा मानती थीं। धीरे -धीरे नीलिमा के रहन -सहन में फिर से सुधार होने लगा।
आज पुलिस स्टेशन में ,हवलदार चेतराम आता है ,और बताता है -धीरेन्द्र पैसेवाले बाप की बिगड़ी औलाद था। कॉलिज में किसी लड़की से उसका चक्कर था ,पढ़ने में तेज था नौकरी भी लग गयी किन्तु उस लड़की से संबंध नहीं बने रह सके। ये दो भाई थे। पैंतीस की उम्र में अपने से दस -पंद्रह साल छोटी लड़की से विवाह किया। उसके तीन बच्चे हैं ,एक बच्चे को कुछ अलग ही बीमारी है ,खर्चे बहुत बढ़ा रखे थे ,शराब भी पीता था और दोस्तों से भी उधार मांग लेता था। यहाँ पर कम्पनी के मकान में पड़ा था और सुना है ,उस दिन उनकी जो पैतृक कोठी है ,उसमें अपना हिस्सा मांगने गया था ताकि अपने लिए कोई अच्छा सा मकान ले सके।
इंस्पेक्टर कुछ सोचते हुए बोला -ज्यादातर झगड़े ,'जऱ ,जोरू और जमीन' पर होते हैं ,सबसे पहले हम जोरू पर एक नजर डालते हैं। उसकी पत्नी कम उम्र कहीं उसी ने तो..... कुछ पता लगाया उसके विषय में ,किस तरह की महिला है ?कोई उसका दोस्त तो नहीं ,उसका चरित्र केसा हैं ?उन दोनों के संबंध कैसे थे ?
जी ,वो एक पारिवारिक महिला है ,अपना सारा समय अपने बच्चों के साथ व्यतीत करती है ,किन्तु अब धीरेंद्र के मरने पर ,एक स्कूल में नौकरी करके घर का खर्चा चला रही है। कुछ दिनों से ,अपने बेटे के कारण एक संस्था से भी जुडी है। सभी उसके व्यवहार को अच्छा बता रहे हैं।
तब ,और कौन उसका दुश्मन हो सकता है ?उसके घर में भी पता लगाना होगा। क्या धीरेन्द्र के माता -पिता से भी मिले ?या उसके भाई से।
नहीं.... सर !
आखिर इंस्पेक्टर साहब ने यह केस अपने हाथों में ले ही लिया अब देखते हैं, आगे क्या होता है? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी