राघव नीलिमा से मिलने आता है किन्तु रात्रि में उसका भी ,वो ही रूप नीलिमा को नजर आता है। वो अचानक उठकर ,नीलिमा के बिस्तर पर आ जाता है। नीलिमा चाहती तो शोर मचाकर ,उसे भगा भी सकती थी किन्तु वो ये नहीं समझ पा रही थी।किस पर यकीन करें ,किस पर नहीं। जबसे उसकी ज़िंदगी में से धीरेन्द्र गया है ,लोगों को लगता है ,जैसे यहाँ कोई ख़ैरात बंट रही है और मुफ़्त में चले आते हैं ,अपनी सहानुभूति लेकर और अपने मन की कालिख़ में ,उसे भी शामिल करना चाहते हैं। तन -मन से काले हैं तो सबकुछ काला ही नज़र आता है ,किन्तु नीलिमा सोचती है -ये इंसान होकर भी जानवरों से ज्यादा नहीं सोच सकते। एक जानवर भी अपनी हवस के लिए ,दूसरे जानवर का उपयोग करता है या मादा जानवर से तभी संबंध बनाता है ,जब उसे जरूरत होती है किन्तु कहने को तो ये लोग इंसान हैं किन्तु इनमें जैसे ''मानवता'' मर चुकी है ,इन्हें तो रिश्तों का भी लिहाज नही।इंसानी रूप में ,भेड़िये ही नजर आ रहे हैं।
बाहर का कोई आये और इस तरह का व्यवहार करे ,तो लगता है ,शायद इसकी परवरिश सही नहीं होगी किन्तु यहाँ तो अपने रिश्ते ही, समय का लाभ उठाने से बाज नहीं आ रहे। इनके लिए तो एक विवश , जवान विधवा महिला ,सिर्फ सम्भोग के लिए ही है। उसके साथ शारीरिक संबंध से अलग, कुछ सोच ही नहीं सकते। उसमें तो जैसे न ही भावनाएं रह गयीं है ,न ही उसकी अपनी कोई सोच या इच्छा। उसके पति के साथ ही जैसे सब समाप्त हो गया। नहीं हुआ ,तो सिर्फ उसकी ओर देखने का नजरिया।
उसके तन को नोचने के लिए ,गिद्ध की तरह उस पर दृष्टि गड़ाए रहते हैं ,और समाज ,मुहल्लेवाले इस ताक में रहते हैं कि इससे कहीं भी तनिक सी चूक हो ,तो उस पर लांछन लगाने से परहेज़ नहीं करेंगे। कभी -कभी उसे लगता ,जैसे वो इंसानी रूप में ,भेड़ियों के बीच फँस गयी है और तनिक भी चूक होते ही उसे नोच खाएं। उन भेड़ियों से उसे अपनी जान बचाना ,मुश्किल हो रहा है किन्तु कोई भी ऐसा नजर नहीं आता जो उनकी घूरती ,भूखी ,नंगी नजरों से उसे बचा ले और उनकी नजरों से जख़्मी हुए उसके तन को ढ़ककर अपने प्रेम का मरहम लगा दे। बच्चों की नींद न खुले इसीलिए नीलिमा राघव को लेकर नीचे आ गयी। अब ऐसी परिस्थितियों से घबराने के स्थान पर उसने धैर्य और समझदारी से काम लेना आरम्भ कर दिया।
राघव तो मन ही मन सोच रहा था ,इसके तन में भी तो आग लगी होगी ,मेरा प्रणय निवेदन तो इसने, स्वीकार कर ही लिया , औरत को चाहिए भी क्या ?एक आदमी का साथ ,इस उम्र में इसके तन की प्यास बुझाने, मैं ही आ जाया करूंगा। वो मन ही मन प्रसन्न था।
नीचे आकर नीलिमा ने पहले एक गिलास पानी पिया और उसे भी दिया , राघव को इच्छा तो नहीं थी किन्तु अब थोड़ा शांत था। तब नीलिमा बोली -तुमने मेरे बच्चे तो देखे ही हैं ,धीरेन्द्र के जाने के पश्चात ,मैं बिल्कुल अकेली पड़ गयी थी। मेरा कोई सहारा नहीं था ,सांत्वना तो देने आते किन्तु किसी ने भी ये नहीं जानना चाहा ,न ही पूछा -मैं कैसी हूँ ,क्या चाहती हूँ ?किन्तु जब तुम आये ,तो मुझे लगा तुम मेरे लिए ही आये हो।
हाँ ,तुम्हारे लिए ही तो आया हूँ ,कहकर वो आगे बढ़ा नीलिमा ने हाथ के इशारे से उसे वहीं बैठने के लिए कहा। राघव को उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी किन्तु इस समय वो अपने को विवश पा रहा था ,वो समझ रहा था नीलिमा उसके साथ के लिए मान चुकी है ,कुछ बातें सुनने में क्या जा रहा है ? तब भी वो अपनी बात रखता है और कहता है -आज और अभी कोई जगा भी नहीं है ,ये बातें तो मैं ,बाद में भी सुन सकता हूँ ,पहले तुम मेरे पास आ जाओ !
तुम मेरे लिए आये हो ,कहते हुए वो हँसी और बोली -यदि तुम मेरे लिए आये होते तो बहुत दिनों पहले आ गए होते। तुम यहाँ आते, मेरा साथ निभाते और आज अपनी बीवी को धोखा दे ,मेरा साथ निभाने आये हो। यहाँ तुम मेरे लिए नहीं अपने लिए आये हो। मेरे लिए आये होते तो , इस तरह का व्यवहार न करते आधी रात को इस तरह...... आकर पहले मुझे और मेरे बच्चों को अपनाते।
छी..... वो कैसे कर सकता हूँ ?
मेरा विवाह तो हो चुका है ,तुम जानती तो हो।
तब तुम मेरा किस तरह साथ देने आ गए ? रात्रि में रुके अपनी हवस मिटाने के लिए ,मेरे लिए नहीं। लोग अपनों को ,अपने रिश्तों को स्मरण करते हैं और खुश होकर सोचते हैं- कि विपरीत परिस्थिति में उस आदमी ने मेरा साथ दिया या वो साथ खड़ा रहा। आँखों में आंसू भरकर नीलिमा बोली -मैं तो वो भी याद नहीं कर सकती ,मेरे रिश्ते आये हैं ,मेरा साथ देने नहीं ,रिश्तों का तो..... लिहाज़ ही नहीं रखा ,रिश्ते में कोई मामा लगता है ,कोई भइया ,कोई चाचा ,कोई जेठ !किन्तु सब एक औरत को कमज़ोर मान अपनी हवस की पूर्ति के लिए आ जाते हैं। सोचते होंगे -उम्र अभी कम है ,जवानी के जोश में बहक जाएगी। तुम्हारी बात भी सही है ,किन्तु मैंने ऐसे -ऐसे चेहरे देखे हैं ,जो दिखने में तो सभ्य लगते हैं किन्तु उनके अंदर झांको तो एक जानवर के सिवा कुछ नजर नहीं आता। मेरे वो अरमान..... जाने किस राख़ में दबकर दफ़न हो गए ? तुम्हें देखकर ,तुमसे मिलकर अच्छा लगा, किन्तु मैं देख रही हूँ ,तुममें और दूसरों में कोई अंतर् नहीं। बाहर का यदि किसी की बहु -बेटी को छेड़े तो बुरा लगता है ,किन्तु जब अपने ही रिश्ते इस नीचता पर उतर आएं ,तब वो किससे गुहार लगायेगी ? ये जानते हुए भी ,तुम्हारी पत्नी है और बच्चे.... उसकी तरफ इशारे से पूछा -उसने नहीं में सर हिलाया और बोला अभी वो ''गर्भवती ''है।
अच्छा.... तो इसीलिए तुम यहाँ आ गए ? अपने मन में ही बुदबुदाई -मैं भी न.... कितनी मूर्ख हूँ ?जो बात सबसे पहले पूछनी चाहिए थी ,वो ही नहीं पूछी। चलो ! ये सब छोडो ! अब नीलिमा उसके क़रीब आई और बोली -मुझसे विवाह करोगे ,मेरे बच्चों को अपनाओगे ,उसकी आँखों में झांकते हुए बोली।
नीलिमा की बातें सुनकर राघव तिलमिला गया।उसका जो प्रेम उसके लिए उफन रहा था ,वो किसी झाग की तरह बैठ गया। मैं तुमसे कैसे विवाह कर सकता हूँ ? मेरी पत्नी तो है।
तो यहाँ क्या लेने आये हो ? ये क्या कोठा समझ रखा है ? बीवी गर्भवती है ,तो जाकर वहीं मुँह मारा जाये। दो हमदर्दी के बोल बोलकर, ज़िंदगीभर का दर्द देने आये हो, नीलिमा कड़े शब्दों में बोली- कम से कम मेरे मन में तुम्हारे प्रति सम्मान तो बना रहता। कभी -कभार सोचती , कि राघव मुझसे मिलने नहीं आया तो कम से कम तुम्हारे मैले मन का पता तो न चलता।अब पता चल ही गया है ,तो जब भी तुम्हें स्मरण करूंगी दुःख के सिवा कुछ नहीं होगा।
तू ही कौन सा ,दूध की धुलि है ,तूने क्या मुझे बेवकूफ समझा है ? क्या मैं कुछ समझता नहीं ?पति के मरने पर भी ,कैसे ऐशो -आराम में रह रही है ? अरे काहें की विधवा ! रंगीन कपड़े पहनती है ,मस्ती करती है ,बच्चों के साथ बाहर घूमने जाती है। कोई तुझे देखकर ,कह देगा कि तू एक विधवा है। इतने ठाठ कहाँ से आ रहे हैं ?जिस स्कूल में तू पढ़ाती है ,क्या मैं जानता नहीं ,बीस हजार में नौकरानी ,गाड़ी..... ये सब कहाँ से आ रहा है ? अपने इस पागल लड़के की आड़ में गुल खिलाती फिर रही है ,क्या कोई समझता नहीं ? तुझसे विवाह करके ,तेरी इस औलाद को कौन अपनायेगा ?कोई नहीं ,तू भी अपने को क्या समझे बैठी है ?कहीं की रानी है। तीन बच्चों की माँ है ,माँ.......
राघव का कहा , एक -एक शब्द नीलिमा के दिल में तीर की तरह लग रहा था। उसका मन किया कि इसका मुँह नोच ले किन्तु उसने कुछ नहीं कहा ,वो सुनना चाह रही थी कि इसके मन में और क्या गंदगी भरी है ? तभी वो क्रोधित होते हुए ,आगे बढ़ा और बोला -प्यार से न सही जबरदस्ती ही सही। उसके इरादे भांपकर ,वो तुरंत ही सोफे के पीछे आ गयी और बोली -किसी भी तरह का शोर मत करो ! मेरी बेटियां अब बड़ी हो गयीं है। आहट से उनकी आंखें खुल गयीं तो यहाँ न आ जाएँ।
आने दो ! उन्हें भी तो पता चले ,अपनी माँ की हकीक़त !
मेरी तो पता चले या न चले किन्तु मेरे रिश्तेदारों की हकीक़त ,उन्हें अवश्य ही पता चल जाएगी।
क्या वो अपने मंसूबों में सफल हो पायेगा? या अन्य कोई और चाल चलेगा? पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी