नीलिमा को आज अचानक न जाने किसका फोन आ गया ? उसके घर में ये फोन भी तो, अभी कुछ दिनों से ही लगा है या यूँ कहें ,जब से नीलिमा के रिश्ते की बात चली है। अभी तक तो उसने किसी को नंबर दिया भी नहीं, फिर किसका फोन हो सकता है ?वो भी पापा ने ,उसे बुलाकर दिया। रिसीवर हाथ में लेने से पहले उसने पापा का चेहरा देखा किन्तु उनके चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई। उसने हकलाते हुए से कहा ,हैलो !
हैलो ! उधर से बेहद दिलकश सी आवाज आई ,कैसी हो.... ?
जी ??????
अरे !तुमने मुझे पहचाना नहीं ,मैं धीरेन्द्र !!!!'धीरेन्द्र सक्सैना '' क्या तुम मेरे विषय में नहीं जानती ?अरे यार..... हमारा विवाह होने जा रहा है और अभी तक हमारी कोई जान -पहचान भी नहीं है। वो इस तरह बातें कर रहा था- जैसे नीलिमा को पहले से ही जानता है किन्तु नीलिमा के लिए वो अनजान ,अज़नबी..... उससे क्या बात करें ?उसे तो कुछ भी समझ ही नहीं आ रहा था। किन्तु उसका इस तरह बिंदास अपनेपन से बातचीत करना उसे अच्छा लगा।क्या तुम्हारे पापा ने मेरे विषय में कुछ नहीं बताया ?
जी...... आपकी एक फोटो देखी है।
ये क्या ??जी..... धीरेन्द्र बोलो ,धीरेन्द्र ! अब हम अपनी ज़िंदगी में एक -दूसरे के पार्टनर बनने वाले हैं।एक -दूसरे के साथ रहेंगे तो एक -दूसरे के साथी भी हुए ,तब नाम लेना तो बनता है। ये मुझे कतई पसंद नहीं 'ए'जी ,'ओ'जी तुम मुझे नाम से पुकारना धीरेन्द्र...... कुछ ठहरकर वो बोला-मैं ही बोले जा रहा हूँ ,तुम तो कुछ बोल ही नहीं रहीं हो। तुम इस रिश्ते से खुश तो हो न। तुम मुझे बेझिझक कह सकती हो ,मैं तुम्हें पसंद तो हूँ।
नीलिमा असमंजस में पड़ गयी -पहली बार मिला ,वो भी फोन पर ,अब इससे इतनी शीघ्रता से कैसे और क्या कहूँ ?बोली -आप पापा को पसंद हैं ,तब मैं क्या बोलूं ?मैंने तो आपको देखा नहीं ,आपसे मिली भी नहीं ,आप अच्छे ही होंगे तभी तो पापा ने आप को चुना।
उसके जबाब को सुनकर ,धीरेन्द्र बोला -होशियार हो ,इंकार भी नहीं किया और हाँ भी नहीं। चलो ,अपने विषय में कुछ और बताओ ! तुम्हारे क्या शौक हैं ? तुम्हारी पसंद ,नापसंद अपने विषय में विस्तार से बताओ !जब तक हमारा विवाह होता है। एक दूसरे के विषय में जान लेते हैं ,कहो !क्या कहती हो ?
जी...... नीलिमा ने देखा ,पापा उसे देख रहे हैं और चक्कर लगा रहे हैं ,शायद परेशान हों ,पता नहीं ,इन दोनों में क्या बातें हो रही हैं ?नीलिमा को भी लगा -ये तो बात लम्बी करने वाला है। पापा के सामने उसे हिचकिचाहट भी हो रही थी। तब वो बोली -आज इतना ही काफी है ,मुझे पापा ने किसी कार्य से बुलाया है ,मैं अभी जाती हूँ। कल आराम से बातें करेंगे।
कब????
जब घर में ,पापा नहीं होंगे ,तब !
पापा कब नहीं होंगे ?उसके बार -बार इस तरह प्रश्न पूछने से नीलिमा परेशान हो उठी और बोली -कल ,दो बजे के बाद फोन करना ,आपको तो समय मिलेगा।
हाँ -हाँ क्यों नहीं ?नहीं मिलेगा तो आपके लिए,समय निकाल लेंगे उसने शरारत भरे लहज़े में कहा। नीलिमा ने फोन रख दिया और मन ही मन बुदबुदाई -आज ही सारी बातें करेगा ,उसकी कुछ बातें अच्छी भी लगीं जिन्हें सोचकर वो मन ही मन मुस्कुरा ही रही थी। तभी पापा अंदर आये और बोले -क्या कह रहा था ?
कुछ ज्यादा नहीं ,पूछ रहा था -मैं तुम्हें पसंद हूँ कि नहीं।
तब तुमने क्या जबाब दिया ?
यही कि ,आप पापा को पसंद हो तो, मुझे भी पसंद हो। उसके जबाब से प्रसन्न होकर ,सक्सैना जी बाहर चले गए।
ये बातें ,उसकी बहन ने भी सुनी ,जिससे उसे पता चला -कि जिस लड़के से दीदी का विवाह होने जा रहा है ,उसका फोन आया था। यही सोचकर वो एकदम से प्रसन्नता से चीख़ी -हमारे जीजाजी का फोन आया और हमें बताया भी नहीं। मम्मी -ताईजी लड़के का फोन आया था और दीदी ने उससे बात भी की। अपनी प्रसन्नता में उसने ये बात सभी को बता दी।
नीलिमा उसके पीछे भागी और उसे आवाज़ लगाई -डिम्पी...... डिम्पी !वो कहाँ सुनने वाली थी ?उसने पूरे घर को जगा दिया और अपने -अपने कमरों से निकलकर ,सब उसके समीप इकठ्ठा हो गए।
नीलिमा को समझ नहीं आ रहा था,कि क्या कहे ? मम्मी ने पूछा -लड़के ने फोन क्यों किया ?
मुझे क्या मालूम ?
क्या कह रहा था ? चाची ने पूछा।
यही कि ,मैं तुम्हें पसंद हूँ या नहीं।
ये क्या बात हुई ?उसे देखा नहीं ,मात्र एक फोटो से कोई कैसे पसंद आ सकता है ? डिम्पी ने मुँह बनाते हुए कहा।
वो भी तो यही कह रहा था ,जब मैंने शादी के लिए हाँ कर दी ,तब इसका अर्थ है -उसे पसंद किया ,तभी हाँ बोली नीलिमा ने समझाया।
अब क्यों.... फोन किया ?
वो इसीलिए ताकि हम एक दूसरे की पसंद -नापसंद को अच्छे से समझ लें ,एक दूसरे के विचारों को समझें।
वैसे बातचीत में मेरे जीजाजी कैसे हैं ?और क्या -क्या पूछ रहे थे ?ख़ुशामद करते हुए शिल्पी बोली।
मैं तुझे क्यों बताऊँ ?हमारी आपस की बात है नीलिमा शरमाते हुए बोली।
मम्मी और चाची बाहर चली गयीं किन्तु शिल्पी वहीं बैठी रही और बोली -बताओ न दीदी !जीजाजी ने और क्या कहा ?
वे भी तेरी ही तरह कह रहे थे -उन्हें भी ए जी ,ओ जी पसंद नहीं। कह रहे थे -मेरा नाम लेकर पुकारना धीरेन्द्र..... और मेरी पसंद पूछ रहे थे। वो तो बहुत सारी बातें करना चाह रहे थे किन्तु मैंने पापा का बहाना बनाकर ,कल बातचीत करने के लिए कहा।
कल कब ??कब आएगा उनका फ़ोन शिल्पी उतावली होकर बोली।
नीलिमा ने नहीं बताया क्योंकि वो जानती थी ,ये आज की तरह ही कल भी शोर मचा देगी। बोली -मुझे क्या मालूम ?जब भी उसे समय मिलेगा ,कर लेगा।
ये अचानक आपकी भाषा कैसे बदल गयी ? उनके से उसके हो गए शिल्पी बोली।
अब वो पति होने के साथ -साथ एक दोस्त की तरह भी रहना चाहते हैं ,दोस्त को ,उनका इनका थोड़े ही कहते हैं -उसे तो सिर्फ बोलेंगे ,धीरेन्द्र कहाँ जा रहे हो ?अपनी मैडम के लिए एक आइसक्रीम तो लाना कहते हुए नीलिमा ने नजाकत से हाथ उठाया।
उसकी इस अदा को देखकर ,शिल्पी हैरत में पड़ गयी और बोली -मेरे जीजाजी का आप पर इतनी जल्दी असर हो जायेगा ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। मैडम..... कहकर दोनों बहनें हंसने लगीं।
क्या अगले दिन धीरेंद्र का फोन आयेगा या नही, अचानक वो इस तरह निलिमा से कैसे बातें करने लगा? क्या उसका स्वभाव ही ऐसा है या निलिमा पर अपना प्रभाव जमाना चाहता है, पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी !