0.0(0)
0 फ़ॉलोअर्स
2 किताबें
" आबरू आजकल कितनी सस्ती यहां बेटियां अपनेपण को तरसती यहां भेड़िये फिर हवस के निकल आये हैं घूमेंगे फिर से हर एक बस्ती यहाँ बढ़ रही है यहाँ आज शैतानियत