अजीब सी श्रद्धा है तुझसे ,
की तुझे मांगना भी है , और छोड़ना भी .
हम सनातन वाले हर तिनके को पूजते है ,
की तुझे पूजना भी है ,
और फेकना भी.
अन्न तो ईस्वर है हमारे लिए ,
की उसे माथे पे लगाना भी है ,
और पैरों में रोंधना भी.
अजीब सी श्रद्धा है हमारी,
कि दिवाली पे सजे दियो से तुझे बुलाना भी है ,
और चिंगारी में जलना भी. ..