02 परोस दे मुझे हंसी गरम-गरम
हवा गरम, फि़जा़ गरम , दयार भी गरम-गरम
मैं पी रहा हूं चाय-सी, ये जि़न्दगी गरम-गरम
ग़मों की सर्द रोटियों के साथ चाय की तरह
तू कम से कम परोस दे मुझे हंसी गरम-गरम
यूं देखने में था, वो सर्द शबनमी -बदन मगर
मैं छूने जब गया उसे वह आग थी गरम-गरम
ये गुल सुलगती धूप से कुछ इस क़दर है आशना
कि चाहता है रात को भी चांदनी गरम-गरम
ख़्वाब में या याद में या जब भी छिपके हम मिले
तुम्हारे बोसों के हैं जा़इके सभी गरम- गरम
( दयार=क्षेत्र, आशना=परिचित आसक्त, बोसा=चुंबन )
***इस ग़ज़ल को पढ़कर लोकप्रिय शायर बशीर बद्र
(ईश्वर उन्हें स्वस्थ करे) ने 4 सितंबर 1999 को एक
पोस्ट कार्ड भेजा जिस पर अंग्रेजी में लिखा था-
रनजीत, तुम्हारी गजलें अच्छी हैं और समसामयिक
रचनात्मक शैली की ग़ज़ल है।