An Insignificant Man
खुशबू रांका और विनय शुक्ला की फ़िल्म an insignificant man एक शानदार फ़िल्म है। ये एक ऐसी फिल्म है जो शायद ही भारत के इतिहास मे कभी बनी हो। फ़िल्म आम आदमी पार्टी और दिल्ली मे हुए 2013 के चुनाव के आस पास घूमती हुई है। आप इसे डॉक्यूमेंट्री कह सकते है क्यों कि इसमें शूट किए सभी दृश्ये रियल है । कुछ भी काल्पनिक नही है। लेकिन मे इसे डॉक्यूमेंट्री नही मानता क्यों कि डॉक्यूमेंट्री बोलते ही आपको फ़िल्म बोरिंग लगने लगती है। लेकिन ये फ़िल्म आपको बोर नही करती है। फ़िल्म मे आपको हँसी भी आती है, फ़िल्म मे सस्पेंस है, थ्रिल है ये फ़िल्म एक पॉलिटिकल ड्रामा की तरह है ।फ़िल्म इस तरह से एडिट की गई और बनाई गई कि फ़िल्म में क्या होने वाला है हम सब जानते है लेकिन फिर भी आप फ़िल्म मे स्क्रीन से एक नज़र नही हटाते है। फ़िल्म आप को जोड़े रखती है
खुशबू और विनय की टीम ने 200 घंटे की शूटिंग से ये 2 घंटे एक अदभुत फ़िल्म बनाई है। और सबसे बड़ी बात की ये अपने आप मे इस तरह से बनने वाली आखरी फ़िल्म है क्यों कि कोई भी पार्टी किसी भी कैमरा को अपनी पार्टी दफ्तर या पार्टी मीटिंग में आने की इजाजत नही देगा । आम आदमी पार्टी नई पार्टी होने के कारण उन्होंने शायद ये इजाजत दे दी लेकिन वो भी अब शायद ये काम फिर से ना कर पाए या कोई ओर पार्टी भी ये इजाजत नही देगी। ये बात ही इस फ़िल्म को अपने आप में इस तरह की आखरी फ़िल्म बनाती है।
इस फ़िल्म में अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव को मुख्य रूप से दिखाया है। मनीष सिसोदिया , कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण आपको नज़र आते है लेकिन मुख्य भूमिका में नही। फ़िल्म में अरविंद केजरीवाल को महान बताने या हीरो बताने की कोई कोशिश नही की गई है। बातो को और घटनाओ को सहज रूप से रख दिया गया है और उसे किस तरह से देखना है वो दर्शको पर छोड़ दिया है।
न्यूज़ कैमरे की पीछे की कहनियों को समझने के लिए एक नेता को तैयार करनी की कहानियों के लिए , इलेक्शन प्रचार को समझने के लिए हम सब को ये फ़िल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए। और समझना चाहिए कि किस तरह एक नेता न्यूज़ कैमरे के पीछे जीत है और कैसे रहता है। ये फ़िल्म सामने दिखने वाली चीज़ों के पीछे की कहानी बताती है।
आप सब ने उस वक्त सब कुछ देखा है कि किस तरह से आम आदमी पार्टी बनी थी। लेकिन ये फ़िल्म उस पूरे प्रोसेस को एक साथ आपके सामने रख देती है और इसके अलावा आपको सोचने पर मजबूर करती है की आखिर असली लोकतंत्र क्या है?