सनातन धर्म किसी संम्प्रदाय या देश विशेष का धर्म नहीं है। सनातन का अर्थ होता है शाश्वत अर्थात जो अनादि है अंनत है। एक ऐसा धर्म जो समय,परिस्थिति, व्यक्ति, देश आदि से परे है। हर एक सम्प्रदाय का एक ही मूल गूढ रहस्य है वो है सत्य की खोज करना और उस परमसत्ता को प्राप्त करना । सत्य की खोज ही एक मात्र धर्म है जो जीव शाश्वत सत्य को अनुभव करना चाहता है उस सत्य को जानने का जिज्ञासा रखता है वही सनातनी है, चाहे वो किसी भी धर्म, संप्रदाय, जाति में विश्वास रखता हो। सनातन धर्म किसी विशेष सम्प्रदाय का नहीं है यह पंथ और सम्प्रदाय से बहुत ऊँचे स्तर का है।
कुछ लोग सनातन धर्म को कर्मकांडो से जोड़ देते है पूजा पद्धिती से जोड़ देते है एक विशेष वर्ग से जोड़ देते है दान - दक्षिणा, यज्ञ, व्रत - उपवास परम्परा, संस्कृति, ,विशेष पूजा पद्धति विधि , कर्मकांड आदि को ही सनातन धर्म मान लेते है जबकि ये सनातन नहीं है क्योंकि कोई भी परम्परा, संस्कृति, विधि आदि अनंत नहीं होते वो एक समय के बाद परिवर्तित हो जाते है विकृत हो जाते है और जो परिवर्तित हो जाये विकृत हो जाये, बदल जाये वो सनातन तो कभी नहीं हो सकता है। सनातन धर्म किसी व्यक्ति के द्वारा ना तो स्थापित किया गया है और ना ही किसी व्यक्ति के द्वारा उन्मूलित किया जा सकता है। सनातन धर्म तब से है ज़ब से इस जगत में चेतना का उद्भवन हुआ है।
चेतना के उद्भवन से ही मनुष्य में एक पिपासा रही है एक अपूर्णता रही है एक तङप रही है उसी पिपासा और तङप को शांत करने और खुद को पूर्ण करने के लिए वो एक मात्र सत्य की ओर अग्रसित होता है और वो सत्य है अपने आत्मस्वरूप को जानना,उस परमात्मा को प्राप्त करना उससे मिलना, जिससे उसे पूर्णता मिलती है उसकी पिपासा शांत होती है उसकी तङप खत्म होती है और ये तङप और अपूर्णता सनातन है ज़ब तक एक भी जीव में चेतना है तब तक ये अपूर्णता और ये तङप बनी रहेगी क्योंकि ये सनातन है और पूर्णता को प्राप्त करना और शांति को प्राप्त करने के लिए जो विधि जो तरीका अपनाया जाता है उसे हम सनातन धर्म कहते है। अतः सनातन धर्म सम्प्रदाय,जाति पंथ,देश,काल खंड से परे शाश्वत है।
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