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जंगल में सुरक्षा ( अंतिम क़िश्त)

27 मार्च 2022

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( जंगल में सुरक्षा  ) अंतिम क़िश्त 

अब तक --दो महीने गुज़र गए ऐसी वैसी कोई घटना नहीं हुई । किसी जंगली जानवर ने गांव के पालतू जानवरों पर हमला नहीं किया । यानी सारी वे बातें या तो झूठी थी या केवल अफ़वाह थी । )

 ( इससे आगे )   अब बड़ा भाई नवरंग थोड़ा बेफ़िक्र रहने लगा था जबकि छोटा भाई बजरंग अब भी बेहद सजग रहता था और जब भी वह जंगल जाता था तो साथ में बांसुरी की जगह कुल्हाड़ी और फ़र्सा जरूर ले जाता था । अब वह दोपहर में सोता नहीं था बल्कि वह जानवरों के आसपास टहलते रहता था । सारे जानवर बड़े मज़े से चारा चरकर मोटे और तंदरु्स्त होते जा रहे थे । अब नवरंग और बजरंग की बरदी में 55  जानवर हो चुके थे । जिसमें से 2 गाएं और 2  भैंसियां गर्भवति थीं और 5 बछड़े भी उस समूह में थे । उधर बजरंग का जब भी मन करता वह अपने पांच भैसों व एक बैल संग्राम सिंग की परीक्षा लेते रहता था। वे सब अपनी ज़िम्मेदारी भी बहुत अच्छे से समझने लगे थे कि पूरी बरदी की सुरक्षा में उनकी भूमिका बहुत ही अहम है ।   
बारिश का मौसम अपनी आहट देने लगा था । उस दिन दोपहर का समय था । नवरंग और बजरंग अपनी बरदी के जानवरों को खुला छोड़कर एक पेड़ के नीचे खाना खा रहे थे । इतने मे  उन्हें जानवरों की दौड़ने की आहट सुनाई दिया । नवरंग ने सर उठाकर देखा तो नज़र आया कि उनके ही जानवर उनकी तरफ़ ही दौड़ते आ रहे हैं । दूर नज़र गई तो देखा कि तीन शेरनी उनके पीछे लगे हैं । इतना देखते ही नवरंग डर के मारे कांपने लगा । हालाकि वह कद काठी से बेहद मजबूत था पर डरपोक किस्म का इंसान था । वह तेज़ी से एक पेड़ के उपर चढकर सुरक्षित बैठ गया । जबकि बजरंग को जैसे ही पता चला कि उसके जानवरों के पीछे शेरनियों का झुन्ड दौड़ रहा है तो उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाया और जानवरों के समूह के आगे खड़ा हो गया । इसके अलावा उसने संग्राम सिंग , ज्वाला प्र्साद, बलबीर सिंग , काल भैरव , बहादुर अली और शक्ति कुमार को हुक्म दिया कि अब अपनी ताकत और चालाकी दिखाने का समय आ गया है । तुम सब आगे आकर मेरे अगल बगल खड़े हो जाओ । अब तुम्हारी ट्रेनिंग और हिम्मत की परीक्षा होनी है । बजरंग के इतना कहते ही वे सारे जानवर हुंकारते हुए आगे आकर खड़े हो गए और अपने अपने सिंगों को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगे । उन सबके सिंग बेहद ही नोकिले थे । साथ ही उनकी पूंछों पर बहुत करीने से कांटों की लड़ियां लगीं थी । जिन्हें उन सबने लहराना भी शुरू कर दिया था । नवरंग एक हाथ में चाकू और एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए खड़ा हो गया । हालाकि वह दुबला पतला था पर उसका जोश देखने लायक था । उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो चुकी थीं । 
जब वे तीन शेरनियां उनके सामने पहुंची और वहां का नज़ारा देखा तो एक बारगी वे भी ठिठक कर रह गईं । कुछ देर बाद उनमें से एक शेरनी आगे बढी। तो उधर बजरंग भी आगे बढने की सोच रहा था कि संग्राम सिंग तेजी से आगे बढकर बजरंग के आगे आकर खड़ा हो गया और बहुत तेज़ी से अपने सिंगों को लहराने लगा । दूसरे रनबाकुरें कुछ दूरी बनाकर खड़े हो गये थे । इतने में तीनों शेरनियां तेज़ी से आगे बढीं और उनमें से एक ने संग्राम सिंग के गर्दन पर वार किया । दूसरी शेरनी संग्राम सिंग की पीठ पर चढने का उपक्रम करने लगी । तीसरी शेरनी संग्राम सिंग की पूंछ पर दांत गढाने की कोशिश करने लगी । यानी संग्राम सिंग विपत्ति से घिर चुका था । उसन अपनी पूंछ को तेज़ी से हिलाना शुरू किया । संग्राम सिंग के पूंछ हिलाने के कारण पूंछ के पास खड़ी शेरनी को उसके पूंछ पर लिपटी कांटों की लड़ी का प्रहार होने लगा । वह दर्द से कराहते हुए संग्राम सिंग से पीछे हट गई । उधर ज्वाला प्रसाद और बहादुर अली ने आपस में कुछ इशारे किए और तेज़ी से आगे बढकर संग्राम सिंग की पीठ पर चढे शेरनी पर एक साथ दोनों ने अपनी अपनी सिंग से वार किया । शेरनी वह वार सह नहीं सकी और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिर गई । 
संग्राम सिंग के गर्दन को जिस शेरनी ने पकड़ा था । वह अपने दांतों से संग्राम सिंग जी के गर्दन को काटने का प्रयास कर रही थी । जिसके कारण संग्राम सिंग जी के गर्दन से लहू की धारा बहने लगी थी । लेकिन संग्राम सिंग जी ने हिम्मत नहीं हारी थी । वह अपने सिर  और सिंगों को बहुत तेज़ी से हिलाना चालू रखा । जिसके कारण शेरनी के दांतों की पकड़ बार बार छूटते जा रही थी । इतने होते होते बजरंग को समय मिल चुका था उसने कुल्हाड़ी उठाकर उस शेरनी की पीठ पर ज़ोरदार हमला किया । जिसके कारण शेरनी को दर्द का एहसास हुआ और वह संग्राम सिंग को छोड़कर बजरंग पर हमला कर दिया । बजरंग , शेरनी पर कुल्हाड़ी का वार करते करते फ़िसलकर ज़मीन पर गिर चुका था । और शेरनी उसके पास पहुंचने ही वाली थी कि बलबीर सेन, शक्ति कुमार और काल भैरव बजरंग के आगे आकर खड़े हो गए। और तीनों को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों तीनों मरने मारने को तैयार हैं । इस बीच संग्राम सिंग पीछे से आकर शेरनी के पेट में अपना नोकिला सिंग पूरी ताक़त से घुसेड़ दिया । फिर तो जैसे विस्फ़ोट हो गया । शेरनी धड़ाम से ज़मीन पर गिरकर बेहोश हो गई । उसके पेट से खून की धारा बहने लगी । दो मिनटों में ही उस शेरनी के प्राण पखेरू उड़ गए। उसके बाद ज्वाला सिंग, बहादुर अली , बलबीर सेन , शक्ति कुमार , और काल भैरव, एक साथ पांचों बाक़ी शेरनी को मारने दौड़े । पांचों कद्दावर बैल और भैसों को अपनी ओर आते देख दोनों बचे शेरनियों की घिघ्घियां  बंध गईँ । और वे दोनों पल भर में ही वहां से दुम दबाकर भाग गईं । 
उधर बजरंग , संग्राम सिंग के गर्दन पर आए ज़ख़्म को मिट्टी का लेप लगा दिया था । जिसके कारण वहां से ख़ून निकलना बंद हो गया था । फिर सारे वीर जवान अपने अन्य साथियों के पास आकर खड़े हो गए। उनकी जीत को देखकर उनके बाक़ी साथी गण बेहद खुश और उत्साहित थे । और वे अपनी ख़ुशियों का इज़हार भिन्न भिन्न तरीके से करने लगे । साथ ही वे सब अपनी अपनी पूंछ हिलाकर अपने समूह के रणबांकुरों को सलामी देने लगे ।
शाम ढलने को थी । बरदी वापस गांव जानेकी तैयारी में जुट गई । सारे लोग कतार बनाकर चलने को तैयार थे । पर आज के कतार की एक विशेषता थी । इस समूह में सबसे आगे संग्रामसिंग था और उसकी पीठ पर बजरंग शान से बैठा था । नवरंग को बरदी के बीच में रखा गया था और बाक़ी रणबांकुरे सबसे पीछे सिर उठाए चल रहे थे । 
इस घटना के बाद गंडई के लोगों को कभी भी आसपास के जंगलों में शेर प्रजाति के कोई भी जानवर की दहाड़ सुनाई नहीं दिया । इस घटना के बाद से ही गंडई में हर वर्ष पशुओं का विशाल मेला लगता है । यहां का पशु मेला सारे छतीसगढ में प्रसिद्ध है । लोगों का कहना है कि यहां के बाज़ार में बिकने वाले पशु बेहद तक़तवर और कर्मठ होते हैं । कहा जाता है कि गंडई से जो भी शख़्स पशु धन खरीदकर ले जाता है । वह फिर किसी और गांव या शहर से पशु धन खरीदने की सोचता भी नहीं ।

( समाप्त )
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