shabd-logo

अनजान रिश्ता

15 जून 2016

620 बार देखा गया 620
featured image

पारुल मेहता , खिड़की के पास बैठी पिछले 40 मिनट से से बारिश को देख रही थी , बारिश की बूंदे उस तक आना चाहती थी , उसको भिगोना चाहती थी लेकिन बारिश की बूंदो और पारुल के बीच में कांच की एक दीवार थी ,पारुल बूंदो को देख तो सकती थी पर महसूस नही कर सकती थी कुछ उस तरह ही जैसे उसकी ज़िंदगी में अनदेखी दीवार खड़ी हो गयी थी , 

पारुल मेहता 37 साल की एक विवाहित महिला , एक बेटी और बेटे की माँ , एक बड़ी नेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर , एक बड़े शहर में खुद का घर , सास सुसर , पति यानि वो सब कुछ जो किसी को खुशहाल जीवन के लिए चाहिए होता है , लेकिन पता नही क्यों इन सब के बीच एक अंजानी सी कमी सी थी वो कमी क्या थी एक महीने पहले तक खुद पारुल को भी नही पता थी ..! एक महीने पहले थोड़ी बीमार होने पर पारुल को मायके जाना पड़ा था , जँहा पारुल को कोई अपना मिला था फेसबुक पर जो अब तक अनजाना था , वो पारुल के दूर के रिश्ते में था जिस से पारुल सिर्फ एक या दो बार ही मिली थी , उस की उम्र पारुल से कम थी , लेकिन सोच बिल्कुल पारुल जैसी थी। ,वो कुछ कुछ रूमानी से किस्से लिखता था , जो करता था रूहानी सी बातें , जिसके पुरे वजूद में अजीब सा अपनापन था। 

उस से मिल कर पारुल लगा था जैसे कोई है जिसने पहली बार उसकी रूह को छुआ है , उसकी आँखों में वो सपने दिखे थे जो खुद कभी पारुल आँखों में थे ,पहली बार पारुल को ये अहसास हुआ था की कोई है जो सैकड़ो किलोमीटर दूर बैठ कर भी उसकी मुस्कान के पीछे छुपे आंसू देख लेता है , पहली बार कोई ऐसा मिला था निस्वार्थ हो कर हरदम में उसके साथ था , पहली बार पारुल ने इतना दिल खोल कर किसी के साथ अपने आपको बाँटा था , जो बातें उसके पति को बचकानी लगती थी कोई था जिस से वो उन बातो पर घंटो बात कर सकती थी , पहली बार किसी के एक एक मैसज के लिए पारुल रात के ३-३ बजे तक जगी थी …
" अनदेखे धांगो से बांध गया कोई , कि वो साथ भी नही और हम आजाद भी नही "
स्कूल , कालेज , कम्पटीशन , माँ बाप की इज्जत , शादी , टूटे सपने बदलते घर बच्चो की खुशियाँ , पति की जरूरते ( जागीर ) साँस की हिदायते आने वाले कल की चिंता यही सब तो होती है एक औरत की ज़िंदगी , इन सब के बीच में नही होती है तो सिर्फ औरत खुद की अपनी भावनाए , अहसास की एक डाली होती है जिन्हे उन्हें पनपने से पहले ही सुखा देना होता है , कभी परिवार की इज्जत के नाम पर कभी पति को नही पसंद के नाम पर और कभी जिम्मेदारी के नाम पर ,
इस अनजान से अपने से मिल कर पारुल के मन की सूख चुकी डाली जैसे फिर से पनप उठी थी ,वो जानती थी न ये प्यार है , न कोई क्रश , न दोस्ती , न कोई रिश्ता , न कोई वासना ,न कोई स्वार्थ ये सिर्फ एक वो अहसास था जिसका कोई नाम नही था , इसे उन दोनों के अलावा कोई नही समझ सकता था 
" ये तो रूह का एहसाह है इससे रूह से महसूस कर "
पारुल को लगा था जैसे वो एक तपते रेगिस्तान में चल रही थी , और अब सदियों के बाद एक छाँव मिली है जिसकी न जाने कब से तलाश थी उसको , वो कुछ देर इस छाँव में ठहर जाना चाहती थी , कुछ पल जीना चाहती थी सिर्फ अपने लिए , लेकिन ये मुमकिन नही था वो वापस आपने पति के घर आ गयी थी जंहा उसे सब के लिए जीना था अपने अलावा , उसके पति ये कभी बर्दाश्त न करते की वो किसी से एक पल के लिए भी बात करे , या किसी के लिए कुछ मसहूस करे , पारुल ने बहुत चाहा की वो इस डाली को पनपने न दे , इससे उखाड़ कर फेक दे , लेकिन इस बार वो नाकामयाब रही .
उसने तय कर लिया था की वो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ निभाएगी , सब के लिए जियेगी ,और हाँ अपने लिए भी .,
बारिश तेज़ हो गयी थी , पारुल ने उठ कर खिड़की का कांच खोल दिया और अब बारिश की बूंदो ने उसे भिगोना शुरू कर दिया था ....

समाप्त 

मृदुल पाण्डेय की अन्य किताबें

1

मिटटी का पुतला

9 जून 2016
0
10
4

भाग :1“ अरे मेरीमुमताज ! अब तुम बड़ी हो गयी हो गयी हो और अभी भी तुम मिटटी से खेल रही हो ... पागलकहीं की ! “ कहते हुएमाधव ने मुमताज की चुटिया खीच ली .मुमताज तेजी से पीछे पलटी और गीली मिट्टी से सने अपने हाथ माधव केखादी के कुरते पर पोछते हुए बोली “ शहजादे माधव मियां ! मै मिट्टी से खेल नही रही हूँ , मै त

2

सहर होने तक

10 जून 2016
0
4
0

उसकी आँखे अंदर तक धँस चुकी थीं, कम रोशनी में देख ले तो बच्चे डर जायें, बालों में कब तेल लगाया था याद भी नहीं, सर धोये हफ्तों गु़ज़र गये, Zoology, Botany, Physics, Chemistry, Organic, Physical, Inorganic सारी किताबों में जगह-जगह हल्दी के निशान लगे हुऐ थे, दाल , चावल, लहसुन मसालों की महक रह रह कर किताब

3

तुम सा कोई और …

14 जून 2016
0
3
1

ऑफिस से बाहर निकला तो बारिश की हल्की फुहारेबदन को भिगो रही थी ,दिन शाम केसाये से गुजरता हुआ रात के आगोश की और बढ़ चूका था , मेरी मंजिल यंहा से 19किलोमीटरदूर मेरा घर था ,मुझे पता हीनही चला कब बाइक हाइवे पर आई और कान में लगी Hands-free से होते हुए ताल Movie के गाने दिल तक पहुचने लगे , हाँ मुझे आज भी या

4

अनजान रिश्ता

15 जून 2016
0
3
0

पारुल मेहता , खिड़की के पास बैठी पिछले 40 मिनट से से बारिश को देख रही थी , बारिश की बूंदे उस तक आना चाहती थी , उसको भिगोना चाहती थी लेकिन बारिश की बूंदो और पारुल के बीच में कांच की एक दीवार थी ,पारुल बूंदो को देख तो सकती थी पर महसूस नही कर सकती थी कुछ उस तरह ही जैसे उसकी ज़िंदगी में अनदेखी दीवार खड़ी ह

5

धुंध

17 जून 2016
0
7
3

स्नेहा ने अपनी डेस्क का काम निपटा कर घड़ी कीतरह देखा 3बजने वाले थे , उसे बहुत तेज़ भूख लग रही थी ,किसी बात पर नाराज हो कर आज वो अपना लंच बॉक्स नही लायी थी ,उसे पति के हाथ कि बनायीं मैगी की याद आ रही थी ,अनजानेमें ही उसने अपने पति का नंबर डायल कर दिया ," मुझे भूख लगी है "" तो कुछ खा लो "" नही मुझे मैगी

6

क्यां यही प्यार है ...?

18 जून 2016
0
3
0

अब बारिश होने लगी थी जोर की, बिजली भी कड़की थी, लोग अपने बैग सर पे रख के भागे, कुछ रेन कोट में थे, कुछ छाते में, पता ही नहीं चला, उस पुल पर कब तुम और में अकेले खड़े रह गए..अँधेरा सा हो गया है . . लेकिन हमारे हाथो की पकड़ काम नही हुयी थी। फिर वो बोली : छोड़ना भी मत....यूँही पकड़े रहना... मैं खुद को टूटते

7

.. वो आखरी कॉल

20 जून 2016
0
2
0

मोहित ने चाय का आखिरी घूंट पिया और घडी की ओर देखा , शाम के 5 बजे थे , ऑफिस बंद होने में सिर्फ एक घंटा बचा था और अभी बहुत काम बाकी था , तभी उसका मोबाईल बज उठा , स्कीन पर स्नेहा का नाम देख कर मोहित बरबस ही मुस्करा उठा , अपनी शादी के पूरे 3 महीने और19 दिन बाद पहली बार स्नेहा ने मोहित को कॉल कर रही थी ,

8

भंवर

23 जून 2016
0
1
0

जंहा तक नजर जाती सिर्फ पानी ही पानी , गहरा नीला पानी , और इस समंदर केबीचो बीच एक छोटा सा मालवाहक जहाज हिचकोले खा रहा था , इस जहाज में 300 से ज्यादा लोगभरे हुए थे , इस भीड़ में सब थे बच्चे ,बूढ़े , जवान स्त्री पुरुष सब   ये लोग भागे थेअपने उस वतन को छोड़ कर जिसने कभी उन्हें अपना नही माना था , ये निकले थ

9

“ रामलाल को आज ही मरना था ”

6 जुलाई 2016
1
7
2

 सुबह के 10 बजे थे , किस्सा ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था , तभी उसका फ़ोन बजा ... उसके एक दूर के रिश्तेदार रामलाल जी जोकिशायद 89 वसंत देख चुके थेनही रहे थे . और किस्सा को ऑफिस के बजाय वंहा जाना पड़ा .किस्सा जब वंहा पंहुचा तो देखा घर बहार बरमादे से लेकर सड़कतक ” रंगमहल टेंट हॉउस “ से आई लाल रंग की कुर्सिय

10

कानपुर की घातक कथाएँ

12 जुलाई 2016
0
3
0

हाँ तो बात ये है कि, दुनियां के अनगिनत शहरों की तरह एक शहर और भी है कानपुर . ये क्यों कैसे और किसने बसाया ये जानना अलग बवाल है . अभी सीन ये है की तमाम धार्मिक – अधार्मिक , भौतिक – अभौतिक , ऐतिहासिक –आधुनिक खूबियों खामियों के बीच घटना -दुर्घटना ये है की हम कानपुर में बसते है और हम में थोडा सा कानपुर 

11

मामा समोसे वाले

21 जुलाई 2016
1
2
0

8 जुलाई 2009 को शाम 5 बज कर 17 मिनट पर कानपुर के मोहल्ला जवाहर नगर की सरहद से लगे नेहरुनगर के कमला नेहरु पार्क वाली गली में मास्टर त्रिभुवन शुक्ला के घर में चिक चिक मची थी . बवाल ये रहा की शुक्ल महराज बम्बारोड सब्जी मंडी से 20 रुपिया के सवा किलो दशहरी आम लाये थे . और शुक्लाइन चाची आम की पन्नी आंगन म

12

..... हाँ तो फिर बोलो “ हैप्पी हिंदी डे “

15 सितम्बर 2016
0
0
0

पहलू :01 “ हिंदी तेरे दर्द की किसे यहाँ परवाह.. एक अंग्रेजी साल भर , एक हिंदी सप्ताह .” “ देश के एक बड़े संस्थान ने हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर अपने विचारो को रखन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए