पहलू :01
“ हिंदी तेरे दर्द की किसे यहाँ परवाह.. एक अंग्रेजी साल भर , एक हिंदी सप्ताह .”
“ देश के एक बड़े संस्थान ने हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर अपने विचारो को रखने के लिए मुझ नाचीज़ को भी याद किया . ( हलांकि कुछ वजहों से मै इसमें सामिल नही हो सका ) और मजे की बात मुझे ये आमन्त्रण अंग्रेजी में मिला .”
“ जवानी का आधा हिस्सा कानपुर में गुजारने के बाद और मेरे साथ-साथ चाचा चौधरी की कामिक्स से रीमा भारती तक के उपन्यास पढने वाले एक अजीज मित्र कुछ सालों पहले देश की राजधानी में जा बसे , एक दिन फोन पर मेरी किताब के बारे में ज्ञान देते हुए बोले “ यार , तुम सही लिखते हो ....पर अगर तुम्हारी किताब अंग्रेजी में होती तो बेहतर होता , कम से मैट्रो में शान से पढता . अभी यू नो हिंदी की बुक अगर मैट्रो में पढ़ेगें तो लोग क्या सोचेगे ..? “
“ शहर के एक व्यस्त चौराहे पर शाम के समय चाट खा रहे दपंति का 4 से 5 साल का पुत्र जूठे दोना ( पत्ते की प्लेट ) से खेल ने लगा , ये देखते ही माँ (केन्द्रीय विद्यालय की हिंदी अध्यापिका ) चीख उठी “ शनी इट्स डर्टी , डोंट टच “
तो इन अंतरंगी -सतरंगी हालातों से गुजरती हुयी हिंदी आज फिर से अपना जन्मदिन मना रही है . और ‘ “ हिदी दिवस के दिन हिंदी बोलने वाले , हिंदी बोलने वालो से हिंदी बोलना चाहिए कह रहे है “
और इसी बीच बलिया , बस्ती , देवरिया आदि-आदि छोटे जिले के छोटे से गाँव से निकल कर हिंदी साहित्य से स्नातक एक युवक किसी बड़े महानगर की बड़ी कम्पनी में नौकरी के लिए साक्षात्कार देता है और अंग्रेजी सही नही होने की वजह से नकार दिए जाने के बाद अपराधबोध से दबा वो या तो 3000 में अंग्रेजी घोल कर पिलाने वाले किसी अंग्रेजी संस्थान में नाम लिखाता है , या गाँव के किसी शिशु मन्दिर में 1000 रूपए महीने में हिंदी पढाने लगता है .
हिंदी भाषीय हमारे देश में हिंदी तब अपमानित होती है जब “ दिमाग से हिंदी में निकले शब्द मुंह से गलत अंग्रेजी के रूप में बाहर आते है , तब जब हम “ हमे अच्छी हिंदी आती है ‘ पर गर्व करने के बजाय “ हमे सही से अंग्रेजी नही आती “ पर अपना मुंह चुराने लगते है . तब जब हिंदी बोलने पर छात्र के ऊपर फ़ाईन लगा दी जाती है और माँ-बाप अपने पुत्र/पुत्री के इस घनघोर अपराध से खुद को बहुत शर्मिंदा महसूस करते है .
यकीन जानिए हिंदी को अगर खतरा है तो किसी और भाषा से नही खुद अपने हिंदी वालो से ही है , जिनके लिए हिंदी मजबूती नही मजबूरी है .
पहलू :02
“ लफ्ज से पा हौसले हमने रंज के हौसले घटाएं है लफ्ज एहसास की जिया बनकर , दर्द की अंजुमन में आये है “
समय के साथ-साथ एक क्रन्तिकारी घटना हुयी , हिंदी मोटे चश्मे , लम्बे कुरते और बड़े-बड़े स्वनामधन्य महानुभावों के पंजो से निकल कर रमेश ,महेश ,मृदुल , ऋचा , पिंकी जैसे जींस टी-शर्ट , कोट वाली पीढ़ी के हाथ में आ गयी .
डाक्टर अनिल मिश्रा के शब्दों में “ हिंदी के डायनाशोरो की जगह सामान्य कद काठी के मनुष्यों ने लेना शुरू कर दिया है . क्यूँकि अब तक हर हाथ में थमे बित्ते भर के मोबाईल या कम्प्यूटर और लैपटाप ने सोशल-मिडिया को जन्म दे दिया था .
और हिंदी ने नया-जन्म लेना शुरू कर दिया था . बोझिलताका स्थान नवीनता और सहजता ने लेना शुरू कर दिया . ये वो जनरेशन माफ़ करियेगा पीढ़ी है , जो हिंदी में रोई , हंसी , हिंदी में ही गलियाँ दी और जिसनेपहली बार प्यार किया लव नही . ये वो पीढ़ी है जो मेल या प्रजेंटेशन भले ही अंग्रेजी में बनाये पर दिल की बात फेसबुक पर हिंदी में लिखेगी .
इस पीढ़ी ने अंग्रेजी को इतना सर पर नही उठाया की हिंदी जूते की नोक पर आ जाये और न अंग्रेजी से दुश्मनी की . बल्कि इंग्लिश को एक सहयोगी की भांति रखा पर दिल की धडकनों पर हिंदी का ही राज रहा . हम जानते है हिंदी की ताकत , हमारे हिंदी में लिखे या बोले गये लफ्ज पचास करोड़ से ज्यादा लोग बिना किसी अनुवाद के समझ सकते है . हिंदी के लफ्ज हिस्सा है हमारी रूह के .
हमे गर्व है की हम हिस्सा है संसार की चौथी सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा का . हिंदी हमारे लिए मजबूरी नही , हमारी मजबूती है . और हाँ हिंदी के लिए रोने की जरूरत नही है जरूरत है हिंदी को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने की . और हिंदी लेख कों का साथ देने की .
समाप्त .