हाँ तो बात ये है कि, दुनियां के अनगिनत शहरों की तरह एक शहर और भी है कानपुर . ये क्यों कैसे और किसने बसाया ये जानना अलग बवाल है . अभी सीन ये है की तमाम धार्मिक – अधार्मिक , भौतिक – अभौतिक , ऐतिहासिक –आधुनिक खूबियों खामियों के बीच घटना -दुर्घटना ये है की हम कानपुर में बसते है और हम में थोडा सा कानपुर .
मिनी पाकिस्तान से लेकर शिवाला तक खुद में समेटे नाले में तब्दील हो गयी गंगा के किनारे का कानपुर का चचा भौकाली के अनुसार “ पूरे भारत में बड़ा भौकाल था “ पर अब हमारे “घड़ी” वाले कितना भी हल्ला मचा ले की “ पहले इस्तेमाल करे , फिर विश्वास करे “ , लेकिन किसकी औकात है जो हम कनपुरियो का इस्तेमाल कर के दिखा दे , और हम पर विश्वास घंटा कोई करता नही है . आपनी मीलो , कारखानों और तहजीब को गंगा में विसर्जित करने के बाद कानपुर में 4 सनातन चीज़े नवीन रूप धारण करके बची रह गयी .
पहली चमड़े की पनही ( जूते ) जिसमे भी आजकल पर्यावरण के पालनहार और चीनी माल मिल कर गदर मचाये है .
आप को वैसे तो कानपुर वाले कभी ज्यदा बोलते नही मिलेगे , और अगर मिलेगे भी तो अपना थोबड़ा उपर करके सिर्फ “हूँ –हूँ “ की नगरीय भाषा में बात करेंगे ताकि मुंह में भरा पान मसाला लीक न हो जाये . गुटखे की खोज कानपुर के लिए दूसरी क्रन्तिकारी घटना थी ( सन1857 के बाद ) पानमसाले का उत्पादन और उसको गटक कर निष्पादन कनपुरियो की दूसरी विशेषता है .
हसरत मोहनी और विद्यार्थी जी की धरती पर उनकी विरासत सम्हालने वाले कुकरमुत्ते की तरफ उग आये और “ दैनिक गोला “ से “ दैनिक पाता नही “ तक सैकड़ो अख़बार शहर को प्रेस करने लगे . अब कल्लू धोबी से लेकर शुभेन्द्रू पाण्डेय ( आप चाहे तो मृदुल पाण्डेय भी पढ़ सकते है ) तक हर तीन में से एक गाड़ी के सामने प्रेस सुहागन की बिंदी जैसा चिपका रहता है . और प्रेस यंहा की तीसरी विशेषता है .
चौथी और सबसे बड़ी विशेषता कानपुर ने “ शरमाये नही हमे बताये “ में हासिल किया , एड्स से लेकर बवासीर तक का इलाज सिर्फ एक इंजेक्शन से . डाक्टर शुक्ला से लेकर हर बुधवार खंजन होटल मेस्टन रोड वाले मिंया हाशमी से झा साहब तक ने ऐसे ऐसे गुप्त रोगों के रहस्य से पर्दा उठाया जिन्हें सुन कर धनवन्त्री की आत्मा भी कमजोरी महसूस कर उठे . अफीम खिला खिला के 70 साल वाले को को 17 का अनुभव दिलवाने वाले गुप्त रोग हकीमो ने बुढापे के खिलाफ लगोंट कस लिया है .
इन सब के साथ साथ 45 लाख ( सन 2011 के हिसाब से ,हांलाकि तब परवेज आलम को 3 बच्चे ही थे और अब तक खुदा उन्हें आधा दर्जन संतानों से नवाज दिया है और बीते जुम्मे को को बेगम ने फिर से खट्टे खाने की फरमाइश की है ) वो लोग भी है जो गयब सड़को , उफनाते नालो , गयब बिजली , लुटते जान और माल के बाद भी “ स्मार्ट शहर “ की और बढ़ते हुए जरीब चौकी क्रसिंग पर फंसे हुए है . पर इतने के बाद भी जबर इतने की क्या मजाल की होली के रंग एक हफ्ते से पहले उतर जाये . भला कोई जगह की ईद पर सफेद -काले लिबासो से खाली रह कर दिखा दे .
आने वाले हर शनिवार को आप पढ़गे मेरी लिखी इस अतरंगी कानपुर की सतरंगी “ कानपुर की घातक कथाएँ ‘” , अरे डरिये मत !!!! ये कहानिया सिर्फ नाम की घातक है , इनमे मारपीट , लूटपाट , बलत्कार कुछ नही है . ( ये घटनाये तो हमारा राष्ट्रीय चरित्र है ) हमारे यंहा इन से ज्यदा घातक है मुन्ना समोसा के यंहा गणेश की आँखों का माया की आँखों में लड़ जाना . क्रिकेट मैच की टिकट का जुगाड़ न लग पाना . तिवारिन चाची के लडके का “ मेहरिया का गुलाम बन जाना “तो बस इन सब हादसों को आप पढ़गे “ कानपुर की घातक कथाएँ ‘” में .
इसमें पात्र , घटनाये ,स्थान , चित्र , आचार – विचार , संचार , बोली- गोली , खुशबू -बदबू निखालिस 24 कैरेट कनपुरिया फ्लेवर में मिलेगी .
नोट : अभी ये सीरीज 4 अंको के लिए है , बाकी अगर आप आगे भी झेलने की ताकत रखेगे तो 400 अंक तक भी जा सकती है .