मृदुल पाण्डेय
हमारा उद्धव और विकास उस दौर में हुआ जब भारत श्वेत श्याम टेलीविजन से रंगीन के सफर पर चल पड़ा था , बड़े बुजुर्गो की माने तो इस दौर में ही कुछ बहुत बड़े लोगो के हाथ में मोबाईल नामक यंत्र भी दिखने लगा था , हमारे अवतार का दौर बदलाव का दौर था , और हम इन बदलावों से दूर छोटे से हरे भरे गांव में श्रीकृष्णा से शक्तिमान तक , छोटे से बड़े ख्वाबो तक आगे बढ़ते रहे। हर इंसान की तरह हमे भी समय ने बहुत कुछ दिया , और बहुत कुछ छीना भी। जो छीना उसमे गांव भी था , घर भी और अपने भी। । जो मिला उसमे कांच की बंद इमारतों के बीच target, growth, appraisal, meeting, भागमभाग और आप सब का प्यार है। समय के साथ बहुत कुछ छोड़ना पड़ा पर हिंदी में लिखना , बोलना , हर रात सपने में आने वाला गांव के खेत , खलिहान और अपने अंदर बहुत मुश्किल से बचा पाया बचपना नही छोड़ पाया . मजेदार बात ये की मुझे खुद नही मालूम की हमने लिखना कब शुरू किया , शायद तब जब ये नही मालूम था की प्यार क्या है लेकिन दिल टूटने का एहसास जरूर हो गया था , या शायद तब जब ज़िंदगी के कुछ अंधरे हादसों को इतने करीब से देखा की उन्हें किसी से बयां नही कर पाया , तो कागज कलम से दोस्ती कर ली। एक वक्त तक खुद को ही अलग अलग रूपों में आपके सामने लाता रहा , इतनी थोड़ी सी ज़िंदगी में जो देखा समझा उसे अल्फाजो में लपेट आपको समझाता रहा , फिर अचानक से लगा की हमारे हर तरफ न जाने कितने किस्से बिखरे हुए है , कभी हंसती तो कभी रुलाती है ज़िंदगी , कभी लगता है बस अब एक नई शुरुवात और कभी अब सब खत्म करती ज़िंदगी , कभी उम्मीदों की रोशनी से नहायी तो कभी निराशा के अंधेरे में डूबी ज़िंदगी ...........सीलन भरी, चुभती, सहलाती, खुशबूदार ज़िंदगी, लेकिन हरदम चलने वाली ज़िंदगी तो बस दोस्तों ज़िंदगी के इन्ही हजारों रंग के अफसानों को अपने अल्फाज दे आप के सामने रख दिया .खुशियो