उसकी आँखे अंदर तक धँस चुकी थीं, कम रोशनी में देख ले तो बच्चे डर जायें, बालों में कब तेल लगाया था याद भी नहीं, सर धोये हफ्तों गु़ज़र गये, Zoology, Botany, Physics, Chemistry, Organic, Physical, Inorganic सारी किताबों में जगह-जगह हल्दी के निशान लगे हुऐ थे, दाल , चावल, लहसुन मसालों की महक रह रह कर किताबों से आती.
प्रतियोगिता भयानक कठिन थी, उसकी ही तरह हज़ारों और लङकियाँ डॉक्टर बनना चाहती थीं, छोटे शहर में लङकियों को आठवीं से स्कूटी नहीं मिलती, लेडी बर्ड की सायकल मिल गयी तो माता-पिता को संपन्न समझ लीजिये.
बेङियाँ तोङने का, सपने देखने का, अपना अस्तित्व बनाने का एक ही ज़रिया है, डॉक्टरनी बन जाओ, बहुत परिश्रम लगेगा, कामयाब न हो सकीं तो B.A. , MA. BsC. BEd कराकर शादी करा दी जायेगी, फिर बच्चे सँभालो, बहुत प्रोग्रेसिव हो गये तो स्कूल की टीचर बन जाने देंगे, लेकिन रोटियाँ तब भी बेलनी होंगी, बच्चे फिर भी पैदा करने होंगे और लङका ही पैदा करना होगा,
डॉक्टरी का सपना लङकियों के लिये पिंजरे का वो छोटा सा गेट है जिससे निकल गये तो ज़िंदगी शायद थोङी बेहतर बन जाये।
बारहवीं के साथ उसने डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा दी , सफलता नहीं मिली, पिंजरा बंद हो गया, माँ ने बहुत ज़ोर दिया, पिताजी से लङ गयीं, शायद मार भी खाई, लेकिन सवाल उस आखिरी मौके का था, बहुत जद्दोजहद और हीला-हवाली के बाद एक साल की मोहलत और मिली, बिटिया ने जान लगा दी, आखिरी मौका था, माँ की आँखों में आँसू के साथ उम्मीदें भी छलछला रहीं थीं, बेटी को असफल होने पर माँ जैसी ज़िंदगी मिलने का डर था…
साल भर की कङी मेहनत के बाद पेपर अच्छे गये, इस बार सलेक्शन की पूरी उम्मीद थी, आज रिजल्ट आ रहा था , सुबह से ही एक अजीब सी बैचेनी ने उसे घेर रखा था।
आशा , निराशा , सपने , डर , घुटन , आजादी इन सब के बीच में उसने अपना रोल नंबर डाला और एंटर। …………
वो अवाक् थी , निशब्द थी , आँखों के में आंसू थे और चेहरे पर जीत की ख़ुशी , बिना कुछ कहे उसने माँ को गले लगा लिया , उसने टॉप किया था , पुरे प्रदेश में वो दूसरे स्थान पर थी ....
घुटन का कुहरा छट चूका था , और खुशियो की धूप दस्तक दे रही थी , अब वो लोगो को ज़िंदगी बाटने चल पड़ी थी नई राहो पर ...
समाप्त