दिल्ली में मिले अप्रत्याशित विजय से जहाँ केजरीवाल और उनके नजदीकी नेताओं की बांछें खिल गयीं वहीं कुछ ऐसे नेता इस आपाधापी में पीछे रह गए, जिन्होंने पार्टी के लिए दिन रात मेहनत किया| उन्हें कुछ खास हासिल नहीं हुआ| कुछ ऐसे भी नेता पार्टी में आये हैं जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए सब कुछ छोड़ कर आये हैं| कमसे कम उन्हें तो ऐसा ही लगता है| अगर ऐसा नहीं होता तो खेतान, संजय सिंह और आशुतोष सरीखे नेता क्यों कर योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के बारे में अनाप सनाप बकते| याद कीजिये कभी योगेन्द्र यादव को कौटिल्य कहा जाता था; जिन्होंने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए अथक प्रयास किये| योगेन्द्र यादव आला दर्ज़े के विद्वान व्यक्ति हैं और परिस्थितियों पर सटीक आकलन करना उनकी खासियत रही है, पर राजनीति की कुटिल चाल ने उन्हें भी सकते में डाल दिया है| प्रशांत भूषण केश लड़ते हैं तो ठीक है पर सत्ता में भागीदारी उन्हें कैसे देंगे केजरीवाल? यह सब इस लिए हो रहा है क्योंकि केजरीवाल ने अपने आपको विधाता मान लिया है| तो इनकी राजनीति भला दूसरों से अलग कैसे हो गयी| बात यह है कि दिल्ली अगले तीन साल में ही राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव करेगी| अब ये सब नेता जोकि चुनावों से बहार थे या चुनाव न लड़ पाये न जीत पाये| इन्हें भी तो कुछ चाहिए कि नहीं? ऐसे तो अभी कुछ मिलाने वाला है नहीं; तो ये सब अभी से अपना अपना दावा ठोक रहें है और केजरीवाल (भोजपुरी में बोलें तो) मज़े लोक रहें हैं| वैसे ही उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारी मनीष सिसोदिया के सर पर दे रखी है| कहीं कुछ गड़बड़ी हुई तो बकरा तैयार है| अगर वो सीरियस होते तो सिसोदिया को सी एम भी बना सकते थे; पर 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना'| ये कुछ और नहीं; बस कुर्सी का खेल है| तो इस मामले में केजरीवाल भी वही राजनीति कर रहे हैं जिसका उन्होंने अब तक विरोध किया है या विरोध करने का नाटक किया है| वे तो कुछ खोनेवाले हैं नहीं| चाहो तो बच्चों की कसम लेलो| कुछ खोया है तो जनता ने; जो अब कुछ भी नहीं कर सकती, कम से कम पांच साल तक! तो, अभी इंतज़ार का मज़ा लीजिये...........!!
तबतक थोड़ा इनका मज़ा लीजिये:-
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या, आगे आगे देखिये होता है क्या?
आमदनी अठन्नी खर्च रुपैया-क्या होगा क्या होगा हाल? नतीजा ठन ठन केजरीवाल
अब पछताए होत का जब केजरी चुग गयो वोट?
कहते हैं न- पब्लिक है सब जानती है-राजा बना के खुद ख़ाक छानती है?
दिल्ली दिल है भारत का पर कभी नहीं आबाद हुई-आये गए कितने शासक पर कभी नहीं बर्बाद हुई|
तो आस मत खोइए; कहीं कुछ अच्छा हो ही जाये|
जय हिन्द!!