छेड़ दो तार ह्रदय का कोई
मन वीणा बजने दो
साज़-ए-मन आवाज़ दो कुछ तुम
नया गीत रचने को
गम का गीत गगन यह गाये
सदियों का महाराजा
खग मन हँस ले एकबार
तुम ऐसी धुन बजा जा
दृष्टिपात जब करता हूँ मैं
दसों दिशाओं की आँगन में
होता है जितना दृष्टिगोचर
भर जाता है वह सब मन में
रास ना आये रश्म का बंधन
तोड़कर उड़ना चाहे ये मन
एकबार तुम इधर भी देखो
सजा सपनों का सरगम
खींच रात का मानचित्र तू
साथ चलो लेकर वो प्यार
पतझड़ सदा न रहनेवाला
बहेगी अवश्यमेव वासंती बयार
गुनगुनायेगा मन तब कोई
खुशियों का तराना
कम से कम जीवन का
मिल गया बहाना
तुम सोच के कुछ भी लिखो
होता कौन मैं कहनेवाला
हाँ आये नज़र जो एकबार
मैं उसको हूँ पढ़नेवाला