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मगध के नए नन्द

13 फरवरी 2015

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कहते हैं कि जीवन के हर पहलु में चाहे राजनीति ही क्यों ना हो; थोड़ी शर्म तो होनी ही चाहिए| परन्तु जनता परिवार के वे नेता जिन्होंने जय प्रकाश नारायण के सहारे राजनीति में प्रवेश किया, उनके सिद्धांतों का समर्थन किया और उनको अपना आदर्श माना, ना कुर्सी को सिर्फ बपौती समझा; बल्कि जाति-धर्म के नाम पर अपनी अलग प्रकार की राजनीति शुरू कर दी और केवल अपने और अपने परिवार के महत्व को आगे रख कर कार्य किया है| परिवारवाद की गंगोत्री भले ही कांग्रेस हो पर इन नए नंदों ने तो पूरी गंगा को ही प्रदूषित कर दिया है| आज लगभग देश का बड़ा हिस्सा ऐसे ही परिवार वालों की मुट्ठी में है| नहीं तो मुलायम का समाजवाद, लालू का पिछड़ावर्ग, मायावती का आंबेडकर प्रेम, नीतिश का अतिपिछड़ा प्रेम-सब मिलकर सिर्फ मुस्लिम प्रेम किस प्रकार बन जाता है| २०१४ के लोक सभा चुनाव के पहले ये सब समझते थे कि मुसलमानों का इनसे बढ़कर बड़ा कोई शुभ चिंतक ही नहीं है; और लगभग सिर्फ इनकी राजनीति इसके लिए जिम्मेदार है कि उत्तर प्रदेश तथा बिहार से एक भी मुस्लिम नहीं जीता| शुक्र है; मुलायम ने तो कहा था कि अब मैं संसद में किनके साथ बैठूंगा; पर और किसी ने हिम्मत नहीं की| राज भले ही इन सबने इन मुसलमानों को मुर्ख बना कर किया परन्तु इनकी दशा सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया; सिवाय इसके कि कौम के कुछ दलालों को कुर्सी का साथी बना लिया| ये है इनकी जात| मुसलमानों में बहुसंख्यक की दुर्दशा के मुख्य दोषी ये ही राजनेता हैं| नीतिश कभी भी अपने बल पर बिहार में चुनाव नहीं जीते हैं| वे हमेशा भारतीय जनता पार्टी की कृपा से मुख्यमंत्री बने हैं| मोदी के उत्थान से जले नीतिश विधवा विलाप कर रहे हैं| उन्हें कुर्सी से कितना प्रेम है हाल के घटनाक्रम से ज़ाहिर होता है| नैतिकता और महादलित की बात करने वाले आज जंगल राज के मठाधीश श्री श्री १००००००००८ चाराचोर महाचालू श्रीमान जेल अधिपति लालू के चरणों में समर्पित हैं| कमसे कम ऐसे भी तो कुर्सी मिले| रही नैतिकता तो बाद में ठीक कर लेंगे| सालों बाद बिहार में एक ऐसी सरकार बनी थी; जो थोड़ा अलग और अच्छा काम कर रही थी, परन्तु नीतिश ने अपनी ईर्ष्या, हड़बड़ाहट, ज़िद, मूर्खता और महत्वाकांक्षा के कारण गुड़ गोबर कर दिया| थोड़ा संयम से काम लेना था और बिहार को बीमारी से निकालना चाहिए था| अब आगे अनिश्चित भविष्य बिहार का साथी है| कहीं ऐसा ना हो की यहाँ भी 'अच्छे दिन आने वाले हैं.....!' का जलवा चल जाये और ये भष्मासुर (लालू+नीतिश++++) मलवा बन जाएँ| कुछ भी हो; बिहार का स्वस्थ होना काफी ज़रूरी है| हमें क्या? जय बिहार! जय हिन्द!!

अमर प्रसाद की अन्य किताबें

अमर प्रसाद

अमर प्रसाद

यादवजी, इस भारत भूमि पर सबसे बड़ा साम्राज्य गंगा किनारे मगध में बना था| ऐसा दिल्ली में ना कभी हुआ था ना कभी होगा| इन नंदों को काल कवलित होना होगा| यही इनका प्रारब्ध है| कहते हैं ना, इतिहास अपने आप को दोहराता है|

14 फरवरी 2015

बृजेश यादव

बृजेश यादव

राजनीती है दोस्त .... सफाई हो तो डेल्ही जैसी ||

13 फरवरी 2015

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Eternal and unbouded

31 जनवरी 2015
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माना कि बेहद प्यार है मुझसे चाह्त की लय के सरगम पर हमें भी तो चाह्त है तेरी राग रिद्म के ऊपर ऊपर । खग मन उड़ ले प्रेम गगन में गगन जहाँ परवान चढ़ा है मन का पंछी अभी उड़ा, पर इधर बढ़ा या उधर बढ़ा है। ऐसे में कहीं भटक ना जाये पता नहीं; कब छोर वो पाये असीम गगन के अन्तर्मन में पाये कु

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महत्व खोते राष्ट्रीय पुरस्कार

5 फरवरी 2015
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शुरु से लेकर अब तक जितनी भी हस्तियों को ये पुरस्कार मिले हैं; लगभग हर बार इनके निष्पक्ष तथा समीचीन होने पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। इसप्रकार एक ऐसी व्यव्स्था ने पैर जमा लिया है कि अब किसी को भी कुछ भी मिल जाये किसी रच्नात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद करना सिर्फ समय की बर्बादी ही है। ये सारी प्रक्रिया राज

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ओ सावन के काले बादल

10 फरवरी 2015
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पुरवैया पछवा पर तिरते चारों ओर घुमा करते हो विश्व के कोने कोने जाकर दर्शन विश्व छटा का करते जल में थल में नील गगन में सबसे तो परिचय है तेरा दे देना सन्देश ये जाकर मिले कहीं जो साजन मेरा निशि दिन याद सताती उनकी अँखियाँ भर भर जाया करतीं बिरहन मैं काटूं हर रतिया नयन बसके सांवरिया को ऐ बदरा;

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मगध के नए नन्द

13 फरवरी 2015
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कहते हैं कि जीवन के हर पहलु में चाहे राजनीति ही क्यों ना हो; थोड़ी शर्म तो होनी ही चाहिए| परन्तु जनता परिवार के वे नेता जिन्होंने जय प्रकाश नारायण के सहारे राजनीति में प्रवेश किया, उनके सिद्धांतों का समर्थन किया और उनको अपना आदर्श माना, ना कुर्सी को सिर्फ बपौती समझा; बल्कि जाति-धर्म के नाम पर अपनी अल

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लड़ाई-अब अपने आप की खातिर

4 मार्च 2015
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दिल्ली में मिले अप्रत्याशित विजय से जहाँ केजरीवाल और उनके नजदीकी नेताओं की बांछें खिल गयीं वहीं कुछ ऐसे नेता इस आपाधापी में पीछे रह गए, जिन्होंने पार्टी के लिए दिन रात मेहनत किया| उन्हें कुछ खास हासिल नहीं हुआ| कुछ ऐसे भी नेता पार्टी में आये हैं जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए सब कुछ छोड़ कर आये हैं| क

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शिक्षा और स्वास्थ्य की सूरत

23 मार्च 2015
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"वर दे वीणावादिनी वर दे.........!" अमर कवि निराला की ओजस्वी पंक्तियाँ, आज भी मन को आह्लादित कर देती हैं| शिक्षा की देवी माँ सरस्वती की आराधना, अभिलाषा यही कि भारत से अशिक्षा का तिमिर तोम सदा के लिए विलुप्त हो जाये| सर्वत्र ज्ञान-विज्ञानं का प्रकाश हो| शिक्षा सर्व जन की पहुँच में तो हो ही, सबको आसानी

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येाग़

20 जून 2015
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मान चुका है जिसको ये जग ठान चुका है, व्रत को लगभग फिर हमसब क्यों रहेंगे पीछे अपनी अपनी मुट्ठी भींचे है भारत की योग विरासत लगती किसी किसी को आफत ये तो अपनी अपनी आदत किसी को ख़ुशी तो किसी को सांसत! पैदा सब माँ से ही होते एक सा हँसते एक सा रोते एक ही भूख और दुःख भी एक हँसी, ख़ुशी और दर्

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प्याज़ वंदना

27 अगस्त 2015
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है ना, यह कल ही की बात कितना आम था तेरा साथबस कोई भी पा सकता थारख सकता था, खा सकता थापर कैसा रंग बदले आजहो ना तुम भी दंग पियाज? लम्बा, गोल और चिपटा रूपबादामी तेरा रंग अनूप सबको कितना भाते थे तुमसस्ते में आ जाते थे तुमपर अब तो गिर गई है गाज़हो ना तुम भी दंग पियाज?पहले ही ऐसा होता था तुम्हे काटनेवाला

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बंधन मुक्त

22 सितम्बर 2015
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हम सोचकर, संकोच से पहुंचे वहां परकहने को कुछ ऐसी बातें थीं उनसेहम सोचकर, संकोच से, शरमाते हुएकह ही डाले; बात अपने मन कीसोचा था शायद बुरा मान जाएँ वोपर मैंने वहां देखी; उलटी बहती गंगा आस्वाशन मिला हमें, गले भी लगाये वोनतीजा ना जाने क्या होगा अब इसका?जो होगा सो होगा; हम इन्तजार करके चाहेंगे जीत अपनी ख

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भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!

25 सितम्बर 2015
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भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!ऋतु वसंत में मिलन पहला प्रेम का वो पहल पहला सरगम की लय का लहराना गीत सजा सुर पंचम तेरा !भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!उष्ण पवन का मेरे मन का मिलन उष्णता की आँगन में प्रेम का बिरवा फला फूला था औ' मधुर सहगान तेरा !भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम

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बुद्धजीवियों का बौधिक दिवालियापन

30 अक्टूबर 2015
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आज जो भी आज़ादी और अधिकार की बात करते हैं और खूब मज़े से जी रहे हैं. उनको कभी यह क्यों याद नहीं आया कि आखिर उनकी इस आज़ादी के लिए खून कौन बहा रहा है. शायद सब सहमत होंगे इस बात पर कि यह हमारी सेना के कारन ही संभव है. आज लगभग १५० दिनों से देश के पूर्व सैनिक जंतर मंतर पर ४३ साल पुरानी मांगों को लेकर भिखरि

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एकबार

3 नवम्बर 2015
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छेड़ दो तार ह्रदय का कोई मन वीणा बजने दो साज़-ए-मन आवाज़ दो कुछ तुम नया गीत रचने को गम का गीत गगन यह गाये सदियों का महाराजा खग मन हँस ले एकबार तुम ऐसी धुन बजा जा दृष्टिपात जब करता हूँ मैं दसों दिशाओं की आँगन में होता है जितना दृष्टिगोचर भर जाता है वह सब मन में रास ना आये रश्म का बंधन तोड़कर उड़ना चाहे ये

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संशय

13 नवम्बर 2015
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जो कुछ भी मैंने कल लिखा बन गयी     आज वो रचना कहाँ पता था कब बन जाये फाँस,       मेरा कुछ कहना लोग यहाँ     कितने होते हैंरच कथ कर भी बच जाते हैं हँस कर ख़ुशी  से जी लेते हैंनया प्रपंच और रच जाते हैंदोष भी दें तो    किनका दें हम उस मिज़ाज़ या इस समाज का?राह चला तो राहें   तन गयींघुम कर देखा आहें बन गयी

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झुँझलाहट में राह

21 नवम्बर 2015
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चुनाव नतीजा देख बिहार का जनमानस है दंग चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग सं प्र ग में भकुआईल ललुआ कुर्सी के खंखुआइल ललुआ कई तरह की जुगत भिड़ाया दिल्ली में बंगला न पाया बंगला से नाता जब टूटा ललुआ का तो जग ही लूटा खेला तब वो नंगा दांव बेटी को दिया लड़ा चुनावजीत गया जब दूसरा यादव लालू बना मिटटी का म

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छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली

5 दिसम्बर 2015
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सावन की घटा से या केशुओं की बदली से हवाओं के झोंकों परमस्त होके तिरती देखो अभी तारे सारे आँचल में भर ली....छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली!लहराता आँचल होया शरमाता मुखराबादलों के ढलते हीलो चाँद वहां निकला तिमिर तोम रजनी ने श्रृंगार कर ली....छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली!फिसलती सी स्निग्ध चंदा की ज्यो

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