आज जो भी आज़ादी और अधिकार की बात करते हैं और खूब मज़े से जी रहे हैं. उनको कभी यह क्यों याद नहीं आया कि आखिर उनकी इस आज़ादी के लिए खून कौन बहा रहा है. शायद सब सहमत होंगे इस बात पर कि यह हमारी सेना के कारन ही संभव है. आज लगभग १५० दिनों से देश के पूर्व सैनिक जंतर मंतर पर ४३ साल पुरानी मांगों को लेकर भिखरियों जैसे बैठे हैं, संसद से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक ने न सिर्फ इसे जायज़ ठहराया है बल्कि इसकी व्याख्या भी कर दी है; फिर भी उनकी सुध कोई क्यों नहीं लेता, जबकि आपकी हर आफत में वही आकर आपको सहारा ही नहीं देता बल्कि उससे बाहर भी निकलता है. यह कैसी कद्रदानी है की आप १२५ करोड़ लोगों का देश थोड़ा रुक कर सोचने को भी बाध्य नही. इन वीरों ने अपने शौर्य से पाये तमगों को लौटा दिया है और ये तथाकथित बुद्धिजीवी और भ्रामक व्यक्तित्व के लोग आज समाचारों में बने रहने के लिए देश द्वारा दिए या यूँ कहें की सेटिंग से पाये सम्मान को लौटा रहे हैं. किसीने आज तक चूं तक नहीं किया है इन बहादुर फौजियों और युद्ध में खेत हुए सैनिकों के परिवार के लिए. तो क्या यह दोगलापन नहीं है? आपको आज़ादी और अधिकार चाहिए मगर आप इतने कृतघ्न हैं कि अपनी आज़ादी के रखवाले के लिए कभी दो शब्द भी नहीं बोले. ऐसा कबतक चलेगा?