shabd-logo

शिक्षा और स्वास्थ्य की सूरत

23 मार्च 2015

264 बार देखा गया 264
"वर दे वीणावादिनी वर दे.........!" अमर कवि निराला की ओजस्वी पंक्तियाँ, आज भी मन को आह्लादित कर देती हैं| शिक्षा की देवी माँ सरस्वती की आराधना, अभिलाषा यही कि भारत से अशिक्षा का तिमिर तोम सदा के लिए विलुप्त हो जाये| सर्वत्र ज्ञान-विज्ञानं का प्रकाश हो| शिक्षा सर्व जन की पहुँच में तो हो ही, सबको आसानी से उपलब्ध भी हो जाये| हमारा संविधान भी यही कहता है| तो ऐसा क्या हो गया जिससे हम कहीं के नहीं रहे? आज़ादी से लेकर अब तक सरकारों ने शिक्षा के मद में लाखों करोड़ों खर्च किया और नतीजा वही ढाक के तीन पात| ऐसा क्यों? आखिर इसके लिए जिम्मेज़र कौन है? एक अकेला अंग्रेज मैकाले ने अपनी बुद्धि प्रयोग कर देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन कर के साम्राज्य का काम आसान कर दिया| भले ही उसका उद्देश्य देशी क्लर्क पैदा करना था मगर उसने अनजाने में हमें विश्व का सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी ज्ञाता देश बना दिया| आज देश अंग्रेजी के जानकारों से पटा पड़ा है, और यह नयी आर्थिक व्यवस्था का इंजन बन गया है| समय समय पर हमारी सरकारों ने शिक्षा को सर्वव्यापी और सर्वग्राही बनाने का प्रयत्न तो किया है, किन्तु यह उनकी प्राथमिकता में काफी पीछे रही है| पर उस पर जो पैसा खर्च होता है वह तो नदी के पानी जैसा बहकर बेकार हो जाता है| ऐसा नहीं है, ये तो वो राजनीतिज्ञ गटक जाते हैं जिनको डकार भी नहीं आती| और मज़े की बात तो यह है की भले ही सरकारी शिक्षा व्यवस्था लचर गयी हो इनकी दूकान तो खूब चलती है| आज के दौर में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जिसकी शिक्षा की दुकानदारी न हो| कमोवेश स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यही हाल है| हमारे नेताओं ने अच्छी तरह से समझ लिया है कि शिक्षा और स्वास्थ्य की दुकानदारी सर्वकालिक फायदेमंद है| गुणवत्ता निर्धारण किसी भी वस्तु या सेवा का अभिन्न अंग है| बहुत सारे अमले भी बना रखे हैं, मगर काम कोई भी नहीं करता| नतीजा, दोनों ही मोर्चे पर जनता ठगी जा रही है| इस देश में लोग शराब पीकर भी मर रहे हैं और हमारे बच्चे सरकारी मिडडे भोजन खाकर| दोनों में कोई खास अंतर नहीं है| आज़ादी से लेकर आजतक कोई भी नेता चाहे वह भ्रष्टाचारी हो या व्यभिचारी हो किसी तरह की कठोर सजा नहीं पाया है| यह हमारी न्याय व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है! तो किया क्या जाये कि कुछ सुधार हो? इसके लिए ज्यादा बड़े कदम उठाने कि जरूरत नहीं है, बल्कि छोटे-छोटे कदमों से न सिर्फ अपेक्षित फल पाये जा सकते हैं वरन आमूल परिवर्तन भी लाया जा सकता है: १. प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक तक का पाठ्यक्रम समान तो हो ही (स्थानीय भाषा को उचित सम्मान मिलना चाहिए) इनका पठन-पाठन केवल सरकार द्वारा स्थापित और संचालित विद्यालयों में हो और बड़े छोटे सबके लिए यही एक विकल्प होना चाहिए| इसी प्रकार स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार ग्रामीण, आंचलिक तथा जिला स्तर पर करके सरकार द्वारा सबके लिए उपलब्ध कराया जाये| इससे न सिर्फ इन सेवाओं कि गुणवत्ता बढ़ेगी वरन सरकार द्वारा इन मदों में खर्च राशि का सदुपयोग होगा| २. ऐसी योजनाएं बने जिससे शिक्षकों कि गुणवत्ता भी सुधरे, ये एक उत्प्रेरक का कार्य कर सकें| शिक्षकों की सेवा सुविधा और वेतन में गुणात्मक बदलाव की आवश्यकता है, जिससे कि मेधावी और योग्य शिक्षक इस पेशे की तरफ आकर्षित हों| इन दो क़दमों से हम कई चीज़ें हासिल कर सकते हैं; जैसे कि शिक्षा का स्तर बढ़ेगा और परीक्षा में नक़ल की जरूरत खत्म हो जाएगी, इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी, भेदभाव दूर होंगे और कालांतर में हमारे समाज को किसी भी प्रकार के आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ेगी| जय हिन्द!!

अमर प्रसाद की अन्य किताबें

1

Eternal and unbouded

31 जनवरी 2015
0
0
0

माना कि बेहद प्यार है मुझसे चाह्त की लय के सरगम पर हमें भी तो चाह्त है तेरी राग रिद्म के ऊपर ऊपर । खग मन उड़ ले प्रेम गगन में गगन जहाँ परवान चढ़ा है मन का पंछी अभी उड़ा, पर इधर बढ़ा या उधर बढ़ा है। ऐसे में कहीं भटक ना जाये पता नहीं; कब छोर वो पाये असीम गगन के अन्तर्मन में पाये कु

2

महत्व खोते राष्ट्रीय पुरस्कार

5 फरवरी 2015
0
0
0

शुरु से लेकर अब तक जितनी भी हस्तियों को ये पुरस्कार मिले हैं; लगभग हर बार इनके निष्पक्ष तथा समीचीन होने पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। इसप्रकार एक ऐसी व्यव्स्था ने पैर जमा लिया है कि अब किसी को भी कुछ भी मिल जाये किसी रच्नात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद करना सिर्फ समय की बर्बादी ही है। ये सारी प्रक्रिया राज

3

ओ सावन के काले बादल

10 फरवरी 2015
0
0
0

पुरवैया पछवा पर तिरते चारों ओर घुमा करते हो विश्व के कोने कोने जाकर दर्शन विश्व छटा का करते जल में थल में नील गगन में सबसे तो परिचय है तेरा दे देना सन्देश ये जाकर मिले कहीं जो साजन मेरा निशि दिन याद सताती उनकी अँखियाँ भर भर जाया करतीं बिरहन मैं काटूं हर रतिया नयन बसके सांवरिया को ऐ बदरा;

4

मगध के नए नन्द

13 फरवरी 2015
0
0
2

कहते हैं कि जीवन के हर पहलु में चाहे राजनीति ही क्यों ना हो; थोड़ी शर्म तो होनी ही चाहिए| परन्तु जनता परिवार के वे नेता जिन्होंने जय प्रकाश नारायण के सहारे राजनीति में प्रवेश किया, उनके सिद्धांतों का समर्थन किया और उनको अपना आदर्श माना, ना कुर्सी को सिर्फ बपौती समझा; बल्कि जाति-धर्म के नाम पर अपनी अल

5

लड़ाई-अब अपने आप की खातिर

4 मार्च 2015
0
1
1

दिल्ली में मिले अप्रत्याशित विजय से जहाँ केजरीवाल और उनके नजदीकी नेताओं की बांछें खिल गयीं वहीं कुछ ऐसे नेता इस आपाधापी में पीछे रह गए, जिन्होंने पार्टी के लिए दिन रात मेहनत किया| उन्हें कुछ खास हासिल नहीं हुआ| कुछ ऐसे भी नेता पार्टी में आये हैं जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए सब कुछ छोड़ कर आये हैं| क

6

शिक्षा और स्वास्थ्य की सूरत

23 मार्च 2015
0
1
0

"वर दे वीणावादिनी वर दे.........!" अमर कवि निराला की ओजस्वी पंक्तियाँ, आज भी मन को आह्लादित कर देती हैं| शिक्षा की देवी माँ सरस्वती की आराधना, अभिलाषा यही कि भारत से अशिक्षा का तिमिर तोम सदा के लिए विलुप्त हो जाये| सर्वत्र ज्ञान-विज्ञानं का प्रकाश हो| शिक्षा सर्व जन की पहुँच में तो हो ही, सबको आसानी

7

येाग़

20 जून 2015
0
4
3

मान चुका है जिसको ये जग ठान चुका है, व्रत को लगभग फिर हमसब क्यों रहेंगे पीछे अपनी अपनी मुट्ठी भींचे है भारत की योग विरासत लगती किसी किसी को आफत ये तो अपनी अपनी आदत किसी को ख़ुशी तो किसी को सांसत! पैदा सब माँ से ही होते एक सा हँसते एक सा रोते एक ही भूख और दुःख भी एक हँसी, ख़ुशी और दर्

8

प्याज़ वंदना

27 अगस्त 2015
0
2
0

है ना, यह कल ही की बात कितना आम था तेरा साथबस कोई भी पा सकता थारख सकता था, खा सकता थापर कैसा रंग बदले आजहो ना तुम भी दंग पियाज? लम्बा, गोल और चिपटा रूपबादामी तेरा रंग अनूप सबको कितना भाते थे तुमसस्ते में आ जाते थे तुमपर अब तो गिर गई है गाज़हो ना तुम भी दंग पियाज?पहले ही ऐसा होता था तुम्हे काटनेवाला

9

बंधन मुक्त

22 सितम्बर 2015
0
1
0

हम सोचकर, संकोच से पहुंचे वहां परकहने को कुछ ऐसी बातें थीं उनसेहम सोचकर, संकोच से, शरमाते हुएकह ही डाले; बात अपने मन कीसोचा था शायद बुरा मान जाएँ वोपर मैंने वहां देखी; उलटी बहती गंगा आस्वाशन मिला हमें, गले भी लगाये वोनतीजा ना जाने क्या होगा अब इसका?जो होगा सो होगा; हम इन्तजार करके चाहेंगे जीत अपनी ख

10

भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!

25 सितम्बर 2015
0
5
0

भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!ऋतु वसंत में मिलन पहला प्रेम का वो पहल पहला सरगम की लय का लहराना गीत सजा सुर पंचम तेरा !भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम चुम्बन और आलिंगन तेरा!उष्ण पवन का मेरे मन का मिलन उष्णता की आँगन में प्रेम का बिरवा फला फूला था औ' मधुर सहगान तेरा !भूल मैं कैसे जाऊं प्रीतम

11

बुद्धजीवियों का बौधिक दिवालियापन

30 अक्टूबर 2015
0
1
0

आज जो भी आज़ादी और अधिकार की बात करते हैं और खूब मज़े से जी रहे हैं. उनको कभी यह क्यों याद नहीं आया कि आखिर उनकी इस आज़ादी के लिए खून कौन बहा रहा है. शायद सब सहमत होंगे इस बात पर कि यह हमारी सेना के कारन ही संभव है. आज लगभग १५० दिनों से देश के पूर्व सैनिक जंतर मंतर पर ४३ साल पुरानी मांगों को लेकर भिखरि

12

एकबार

3 नवम्बर 2015
0
3
2

छेड़ दो तार ह्रदय का कोई मन वीणा बजने दो साज़-ए-मन आवाज़ दो कुछ तुम नया गीत रचने को गम का गीत गगन यह गाये सदियों का महाराजा खग मन हँस ले एकबार तुम ऐसी धुन बजा जा दृष्टिपात जब करता हूँ मैं दसों दिशाओं की आँगन में होता है जितना दृष्टिगोचर भर जाता है वह सब मन में रास ना आये रश्म का बंधन तोड़कर उड़ना चाहे ये

13

संशय

13 नवम्बर 2015
0
2
1

जो कुछ भी मैंने कल लिखा बन गयी     आज वो रचना कहाँ पता था कब बन जाये फाँस,       मेरा कुछ कहना लोग यहाँ     कितने होते हैंरच कथ कर भी बच जाते हैं हँस कर ख़ुशी  से जी लेते हैंनया प्रपंच और रच जाते हैंदोष भी दें तो    किनका दें हम उस मिज़ाज़ या इस समाज का?राह चला तो राहें   तन गयींघुम कर देखा आहें बन गयी

14

झुँझलाहट में राह

21 नवम्बर 2015
0
3
0

चुनाव नतीजा देख बिहार का जनमानस है दंग चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग सं प्र ग में भकुआईल ललुआ कुर्सी के खंखुआइल ललुआ कई तरह की जुगत भिड़ाया दिल्ली में बंगला न पाया बंगला से नाता जब टूटा ललुआ का तो जग ही लूटा खेला तब वो नंगा दांव बेटी को दिया लड़ा चुनावजीत गया जब दूसरा यादव लालू बना मिटटी का म

15

छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली

5 दिसम्बर 2015
0
1
0

सावन की घटा से या केशुओं की बदली से हवाओं के झोंकों परमस्त होके तिरती देखो अभी तारे सारे आँचल में भर ली....छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली!लहराता आँचल होया शरमाता मुखराबादलों के ढलते हीलो चाँद वहां निकला तिमिर तोम रजनी ने श्रृंगार कर ली....छन छन कर आती हुई चाँदनी रुपहली!फिसलती सी स्निग्ध चंदा की ज्यो

---

किताब पढ़िए