चुनाव नतीजा देख बिहार का जनमानस है दंग
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
सं प्र ग में भकुआईल ललुआ
कुर्सी के खंखुआइल ललुआ
कई तरह की जुगत भिड़ाया
दिल्ली में बंगला न पाया
बंगला से नाता जब टूटा
ललुआ का तो जग ही लूटा
खेला तब वो नंगा दांव
बेटी को दिया लड़ा चुनाव
जीत गया जब दूसरा यादव
लालू बना मिटटी का माधव
………और बन गया मलंग.............
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
देश-विदेश मोदी का जलवा
मिली थी सत्ता जैसे हलवा
चौड़ा सीना ताल थोक के
देख रहे सब साँस रोक के
शोर मचाया हड़बड़ धड़फड़
कई मुद्दों ने कर दिया गड़बड़
नासमझी में दिल्ली हारे
गड़े हुए मुर्दे उखाड़े
काम ना कोई ख़ास हुआ
मात्र मोदी प्रवास हुआ
बाहर ज्यों मोदी हुंकारें
देश में उतनी ही फूंकारें
चारों ओर विषैले बोल
खुल गया मोदी का पोल
............अंदर बना सुरंग...........
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
मूढ़ पराजित संगी जिनके
नोच दिए नीड के तिनके
टूट गया सपनों का अंडा
यह विकास का कैसा फंडा
आव ना देखा, ताव ना देखा
उस पीपल की छाँव ना देखा
जो सब को संरक्षण देता
नित-नित नए परीक्षण देता
मूक बना सब सह लेता था
कैसे भी वह रह लेता था
छेड़ उसी से दिया लड़ाई
यह कैसी बुद्धि है भाई
.......... राह में बढ़ गई जंग.............
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
सिंह गर्जना करके आये
तुम तो जमानस पर छाये
सबने था विश्वास किया
न्याय की कुछ ने आस किया
वादे किये थे बजा के डंका
फिर क्यों इसे बनाया लंका
बैठे तुम्हरे बगल विभीषण
छेड़े कर्कश राग हैं भीषण
लोमड़ी सी अब चाल क्यों
अपनी सेना से बवाल क्यों
भेड़िये खाएं नोच के बोटी
संरक्षक को सूखी रोटी
………यह कैसा है ढंग.............
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
ऐसे में तुम चले बिहार
करने महागठबंधन संहार
फिर से बड़बड़, फिर से हड़बड़
कुछ भी कहता देश का रहबर
महागठबंधन मजबूत हो गया
विकास बिहार का भूत हो गया
उठ गयी कांग्रेस मृतप्राय
लालू राबड़ी मज़े उड़ाएं
देखो चोर महंत बन गया
पूर्ण अक्षर हलंत बन गया
यह कैसा राग तुम छेड़ गए
करे धड़े पर पानी फेर गए
………कैसे कटी पतंग..........
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
सवा लाख कोटि का दान
बन गया जैसे हो अपमान
निंदा कारोबार बन गई
वो देखो सरकार बन गई
कुर्सी पर काबिज़ दम्भ हो गया
सुसाशन प्रारम्भ हो गया
बिन नीति का बना नीतीश
नियत खोट है मठाधीश
चूक गयी वह धरती अवसर
जिसने दिशा दिया है अक्सर
होना था जो महिसासुर मर्दन
उसके कुल का हुआ सम्वर्द्धन
............ जम गया उसका रंग..........
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग
उठो हार की करो मीमांसा
दे पाये जयचंद न झांसा
स्वच्छ रहे जो बहता रहता
नहीं, झूठ जो कहता रहता
हार हुई है नहीं विध्वंश
अभी भी काफी खड़े हैं कंस
देशहित में काम करो तुम
फिर से उज्ज्वल नाम करो तुम
सीख ही देती है हर बाधा
बढ़ा देती है कौशल ज्यादा
नेता हो नेतृत्व दो
राष्ट्र को व्यक्तित्व दो
.......... करो ना मन को तंग............
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग!!