29 जनवरी 2015
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एम्प्लॉय D
कभी तो याद आएंगे तुम्हे, क्या हुआ जो पा ना सके तुम्हे ! बचपन की याद दिलाएंगे तुम्हे, जानते है बहुत खुश हो तुम अपनी दुनिया में, गलती तो बस हमारी ही थी, जो जान से भी ज्यादा मुहोबत करते थे तुम्हे !!
अब तो थक गए है, मानते मनाने तुम्हे !!
कभी पाने की ज़िद थी, अब खोने का दर है छोड़ न दे इस हल में कही, तन्हा रहने का दर है बड़ी अजीब जद्दोजहद है कहा सुकून अब सब्र है ना मालूम कब साथ छोड़ दे सासे, कहा अब ज़िंदगी को सबर है
लोग बदल जाते है और दूसरो को बताना भूल जाते है ! बड़ी उम्मीद लगाये बैठे उनसे मिलने को, पर वो पहचानना भूल जाते है ! कभी पता न चला कब सुबह से शाम हुई इन गलियो में, आज वही उन गलियो में चलना भूल जाते है सही कहा वक्त-वक्त बात है दोस्तों, लोग अपनों को अपना कहना भूल जाते है !!!!
कहीं सुना था: सो गए बच्चे गरीब के जल्दी से ये सुनकर, फरिश्ते आते हैं ख्वाबों में रोटियां लेकर