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रामधारी सिंह दिनकर

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रामधारी सिंह 'दिनकर' (1908–1974) हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, लेखक और निबंधकार थे। वह विशेष रूप से वीर रस और राष्ट्रवादी भावनाओं से ओत-प्रोत कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों से गहराई से प्रभावित थीं। उनकी प्रमुख कृतियों में *"रश्मिरथी"*, *"उर्वशी"*, *"परशुराम की प्रतीक्षा"*, और *"संस्कृति के चार अध्याय"* शामिल हैं। "रश्मिरथी" महाभारत के पात्र कर्ण की गाथा है और इसे हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है। दिनकर को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म विभूषण प्रमुख हैं। उन्हें आधुनिक युग का 'राष्ट्रीय कवि' भी कहा जाता है।


"क्षमा शोभती उस भुजंग को "आज भी कितनी सटीक हैदिनकर जी की कविताओं में राष्ट्रीय चेतना समग्रता में दिखाई देती है। क्योंकि वह पहले भारतीयता के कवि हैं जो बाद में राष्ट्रीयता के रूप में पहचान बन कर प्रवृत

रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन चरित्ररामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित कवि, निबंधकार और लेखक थे, जिनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं। उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को ब

रामधारी सिंह दिनकर साहित्य के वह सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य के समान चमक थी। उनकी कविताएं सिर्फ़ उनके समय का सूरज नहीं हैं बल्कि उसकी रौशनी से पीढ़ियां प्रकाशमान होती हैं। पढ़ें

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक कवि व निबन्धकार थे। रामधारीसिंह जी का जन्म 23 सितम्‍बर 1908 ई में बिहार के बेगुसराय जिले के छोटे से गांव सिमरिया गांव में हुआ था । रामधारीसिंह जी के पिता

अनीश की पहली मुस्कानजब अनीश ने पहली बार मुस्कराया था,माँ की गोद में वो लाड़ से लिपटाया था।उसकी नन्हीं-नन्हीं आँखों में चमक थी,जैसे आसमान के तारों की कोई झलक थी।उसकी हंसी में छिपा था संसार सारा,हर आवाज

**डरावनी रात**  *(लड़की के संदर्भ में)*  रात थी गहरी, सन्नाटा था फैला,  आसमान में बादल काले थे छाए।  एक लड़की अकेली घर लौट रही थी,  दिल में था डर, आँख

**माँ, मुझे कोख में रहने दो**  *(माँ-बेटी का संवाद)*  "माँ, मुझे कोख में रहने दो,  मैं भी देखना चाहती हूँ दुनिया की रौशनी को।  मैं भी जीना चाहती हूँ,  

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