अपनी परछाई
कभी जिन्दगी की साम ढलने के वक्त
कुछ अहसास होता है अँधेरे का
कुछ सुकून सा देता है
वह पल चहचहाते उड़ते अपने घर को लौटते पंख
कुछ शांत से खड़े, पत्तो को संजोयें पेड़
कुछ वक्त के लिए होता है अहसास
अँधेरा घना होने से पहले
सूरज के डूबने के बाद
कुछ लालिमा आसमान की
देती है सुकून
फिर बढ़ता है अँधेरा
हमें दिखाई देती है परछाई
परछाई बढती है
आगोश में लेती है हमें अपनी ही परछाई
और खो जाता है इन्सान
अपने अंधेरें में....
- हरेश परमार
Dr. Haresh Parmar: Apni Parchhai